Supreme Court On Additional Witness : सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला - CrPC धारा 311 के तहत अतिरिक्त गवाह को अभियोजन गवाह के रूप में बुलाया जा सकता है…

Supreme Court On Additional Witness : सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला – CrPC धारा 311 के तहत अतिरिक्त गवाह को अभियोजन गवाह के रूप में बुलाया जा सकता है…

नई दिल्ली, 19 मई 2025 | Supreme Court On Additional Witness : ऑनर किलिंग से जुड़े एक अहम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई महत्वपूर्ण गवाह अभियोजन पक्ष द्वारा किसी कारणवश नहीं बुलाया गया हो, तो उसे CrPC की धारा 311 के तहत मुकदमे के किसी भी चरण में अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में बुलाया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 इस प्रक्रिया की पूरक है।

सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच का फैसला

जस्टिस सुधांशु धूलिया और पीके मिश्रा की डिवीजन बेंच ने तमिलनाडु के कन्नगी-मुरुगेसन ऑनर किलिंग केस में यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि:

CrPC की धारा 311 अदालत को यह शक्ति देती है कि वह किसी भी व्यक्ति को अतिरिक्त गवाह के रूप में बुला सकती है, चाहे साक्ष्य की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी (Supreme Court On Additional Witness)हो।

इस शक्ति का प्रयोग स्वप्रेरणा से या किसी भी पक्ष के आवेदन पर किया जा सकता है।

यदि कोई व्यक्ति महत्‍वपूर्ण प्रत्यक्षदर्शी है और अभियोजन पक्ष द्वारा गलती से उसे गवाह सूची में शामिल नहीं किया गया हो, तो उसे अभियोजन गवाह के रूप में जांचा जा सकता है।

अदालती गवाह बनाम अभियोजन गवाह: कोर्ट की व्याख्या

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:

यदि कोई गवाह अदालत द्वारा अदालती गवाह के रूप में बुलाया जाता है, तो उसकी क्रॉस-एग्ज़ामिनेशन पर कुछ सीमाएं होती हैं।

लेकिन यदि वही गवाह अभियोजन पक्ष द्वारा बुलाया गया हो, तो Chief Examination, Cross Examination और Re-examination की प्रक्रिया सामान्य रूप से चलती है।

क्या है कन्नगी-मुरुगेसन ऑनर किलिंग मामला?

वर्ष 2003 में दलित युवक मुरुगेसन और वन्नियार समुदाय की लड़की कन्नगी ने अंतरजातीय विवाह किया था।

लड़की के परिवार ने इसे “परिवार की प्रतिष्ठा पर दाग” माना और 7 जुलाई 2003 को दोनों को जहर पिलाकर मार डाला।

उनके शवों को जला दिया गया ताकि सबूत मिटाया जा (Supreme Court On Additional Witness)सके।

यह मामला तमिलनाडु के पहले ऑनर किलिंग मामलों में गिना जाता है।

न्यायिक कार्यवाही का सारांश

CBI ने जांच के बाद आरोपपत्र दाखिल किया।

ट्रायल कोर्ट (2021):

लड़की के भाई को मौत की सज़ा

पिता समेत 12 अन्य को आजीवन कारावास

हाई कोर्ट (2022):

मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदला

10 अन्य की सज़ा बरकरार, 2 बरी

सुप्रीम कोर्ट (2025):

सभी 11 दोषियों की अपील खारिज

मुरुगेसन के पिता व सौतेली मां को ₹5 लाख का मुआवज़ा देने का निर्देश

 महत्वपूर्ण कानूनी निष्कर्ष

CrPC की धारा 311 और साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 को एक साथ पढ़ा जाना चाहिए।

गंभीर अपराधों में न्यायहित के लिए अदालतों के पास व्यापक अधिकार हैं कि वे आवश्यक साक्ष्यों की पुनरावृत्ति या नए गवाह को बुलाने का आदेश दे सकें।

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