संपादकीय: मुफ्त की योजनाओं पर सुको की नाराजगी

Suko's displeasure over free schemes
Suko’s displeasure over free schemes: चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपने चुनावी घोषणा पत्रों में मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली जो घोषणाएं की जाती हैं उस पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है। गौरतलब है कि वोट कबाडऩे के लिए राजनीतिक पार्टियां मुफ्त रेवड़ी कल्चर को अपना रही है और उनके बीच मुफ्तखोरी वाली योजनाओं की घोषणा करने की होड़ लग गई है। हाल ही में हुए नई दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस ने एक से बढ़कर एक ऐसी घोषणाएं की थी।
महिला सशक्तिकरण के नाम पर आम आदमी पार्टी ने महिलाओं को हर महीना इक्कीस सौ रूपये देने की घोषणा की थी तो तत्काल बाद भाजपा और कांग्रेस ने भी महिलाओं को पच्चीस सौ रूपये महीना देने की घोषणा कर दी थी इसी तरह महिलाओं को मुफ्त में बस यात्रा करने की घोषणा से लेकर और भी कई लोकलुभावन घोषणाएं की गई थी। इसके पहले भी जिन राज्यों में चुनाव होते रहे हैं वहां राजनीतिक दलों के बीच मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली ऐसी घोषणाओं की प्रतिस्पर्धा होती रही है।
आज स्थिति यह है कि हर राजनीतिक पार्टी फ्री रेवड़ी कल्चर को आगे बढ़ा रही है। उन्हें इस बात की कतई कोई चिंता नहीं होती की इस तरह की घोषणाओं को अमलीजामा पहनाने से राज्यों की और देश की अर्थव्यवस्था के डगमगाने का खतरा उत्पन्न हो जाता है। पंजाब, हिमाचलप्रदेश और कर्नाटक में ऐसी ही घोषणाओं के कारण उन राज्यों पर लगातार कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। स्थिति यह है कि उन सरकारों के पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के भी लाले पड़ रहे हैं। विकास कार्यो को विराम लग गया है। इस वजह से उन राज्यों के सामने गंभीर वित्तीय संकट पैदा हो गया है।
जिसकी वजह से वे पेट्रोल डिजल के दामों में वृद्धि कर रहे हैं और आम जनता पर नए नए कर लगा रहे हैं। यह मध्यम वर्ग के उन करदाताओं के साथ क्रूर मजाक है जो टैक्स पटाते हैं और उनके गाढ़े खून पसीने की कमाई को राजनीतिक दल वाले मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली योजनाओं के क्रियान्वयन पर लुटाते हैं।
फ्री रेवड़ी कल्चर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कई बार गंभीर चिंता व्यक्त की थी और इसे देश की अर्थव्यवस्था के लिए घातक बताया था लेकिन उनके पार्टी भाजपा भी फ्री रेवड़ी कल्चर को अपना रही है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर देश की अर्थव्यवस्था को चौपट करने वाली ऐसी घोषणाओं पर कौन रोक लगाएगा। सुप्रीम कोर्ट (Suko’s displeasure over free schemes) ने भी इसे गंभीरता से लिया है और एक याचिका पर सुनवाई के दौरान मुफ्त के वादे करने पर गहरी नाराजगी जाहिर करते हुए यह कड़ी टिप्पणी की है कि यदि लोगों को मुफ्त में राशन और पैसे मिलते रहेंगे तो इससे लोगों में काम करने की इच्छा ही खत्म हो जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया है कि क्या हम इस तरह से परजीवीओं का एक वर्ग तैयार नहीं कर रहे हैं? सुप्रीम कोर्ट की इस तल्ख टिप्पणी के बाद अब उम्मीद की जानी चाहिए कि केन्द्र सरकार फ्री रेवड़ी कल्चर पर रोक लगाने के लिए कारगर कदम उठाने पर गंभीरतापूर्वक विचार करेगी। किन्तु इसके लिए सभी राजनीतिक पार्टियों के बीच आम सहमति कायम करना आसान नहीं होगा।
दरअसल मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली घोषणाए राजनीतिक पार्टियों के बीच वोट कबाडऩे का ब्रम्हास्त्र बन चुकी है जिसका उपयोग कर वे मतदाताओं को अपने पक्ष में मतदान के लिए प्रेरित करते हैं। तरह तरह के प्रलोभन परोसकर सत्ता पर आसानी से काबिज हो जाते हैं। इसलिए इस मुद्दे पर आम सहमति तो शायद ही बने अलबत्ता केन्द्र सरकार चाहे तो इस बारे में कड़े कानूनी प्रावधान करके फ्री रेवड़ी कल्चर को खत्म कर सकती है।