संपादकीय: नदी जोड़ो परियोजना में लाएं तेजी
Speed up river linking project: इस साल मानसून ने देश के आधे से ज्यादा हिस्से में तबाही मचा दी है। पिछले एक सप्ताह के दौरान उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, असम और महाराष्ट्र सहित राजस्थान और गुजरात में भी बाढ़ के हालात निर्मित हो गए हैं। इन राज्यों की नदियां खतरे के निशान को पार कर रही हैं। जिसकी वजह से जन धन की हानि हो रही है। अब तक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
सिर्फ असम में ही 78 लोगों की मौत हो चुकी है। भारी बारिश और बाढ़ के कारण 25 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। जिनके लिए लगभग 600 रिलीफ कैंप बनाने पड़े हैं। इंसान तो इंसान लाखों जानवर भी इससे प्रभावित हुए हैं। कमोबेश यहीं स्थिति उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की भी है।
उत्तराखंड में तो लगातार भू-स्खलन की घटनाएं हो रही हैं। जिसकी वजह से चार धाम यात्रा रोकनी पड़ी है। प्रकृति का यह प्रकोप वाकई हैरत अंगेज है। इसकी वजह भी हम लोग ही हैं जो प्रकृति से छेड़छाड़ करने से बाज नहीं आ रहे हैं। पर्यावरण संतुलन गड़बड़ाने के कारण कभी सूखा तो कभी बाढ़ के रूप में प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं।
हमारा आपदा प्रबंधन तंत्र भी इसे रोकने में असफल हो जाता है। बारिश का मौसम अभी शुरू हुआ है। अभी से ऐसी स्थिति है तो आने वाले दिनों में यदि और ज्यादा बारिश होगी तो स्थिति किस कदर विकराल रूप धारण कर लेगी। इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
आने वाले सालों में तो ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण असंतुलन के कारण स्थिति और भी भयावह होने की आशंका जताई जा रही है। ऐसे में अब यह आवश्यक हो गया है कि भारत में नदियों को जोडऩे का अभियान तेज किया जाए और इसे जल्द से जल्द मूर्त रूप दिया जाए।
इससे जिन राज्यों में ज्यादा बारिश होती है और बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है वहां की नदियों का पानी ऐसे राज्यों में आसानी से पहुंचाया जा सकेगा। जो सूखे की चपेट में आते हैंं। यह ठीक है कि नदी जोड़ो अभियान (Speed up river linking project) एक बेहद खर्चीला अभियान है लेकिन प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए इस अभियान को आगे बढ़ाना ही होगा।
गौरतलब है कि लगभग डेढ़ सौ साल पहले ब्रिटिश शासन काल में एक अंग्रेज इंजीनियर ने भारत की प्रमुख नदियों को आपस में जोडऩे की परिकल्पना की थी। आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने भी नदियों को जोडऩे की परियोजना पर मंथन किया था, किन्तु इस पर राज्यों की सहमति नहीं बन पाई।
इसके बाद नदी जोड़ो परियोजना (Speed up river linking project) पर विचार करना ही बंद कर दिया गया था। 1999 में तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने नदी जोड़ो परियोजना पर काम शुरू किया।
इसके लिए 5 लाख करोड़ की परियोजना बनाई गई, किन्तु उस पर काम शुरू होने से पहले ही एनडीए सरकार सत्ता से बाहर हो गई। मनमोहन सिंह के नेतृत्व में बनी यूपीए सरकार ने नदी जोड़ो परियोजना को ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया। क्योंकि इसके लिए विभिन्न राज्यों की सरकारों ने सहमति नहीं दी थी।
मनमोहन सिंह सरकार ने इस परियोजना पर सब की सहमति बनाने की कोशिश भी नहीं की और तात्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने तो नदी जोड़ो परियोजना को विनाशकारी योजना बताकर इस परियोजना पर पलीता लगा दिया।
2014 में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी तो पीएम मोदी ने एक बार फिर नदी जोड़ो परियोजना पर काम शुरू किया। किन्तु पिछले एक दशक के दौरान कुछ ही राज्यों में दो तीन नदियों को आपस में जोडऩे के काम की शुरूआत हो पाई।
नतीजतन यह महत्वकांक्षी परियोजना अधर में ही लटकी रही और अब तो इसकी लागत बढ़कर दो गुनी से भी ज्यादा हो चुकी है। बहरहाल अब समय आ गया है कि नदी जोड़ो परियोजना पर तेजी से काम किया जाए।