…तो क्या भाजपा के दूसरे नंदकुमार साय बनने जा रहे विजय बघेल!
यशवंत धोटे
रायपुर/नवप्रदेश। Vijay Baghel: भारतीय जनता पार्टी ने जब से दुर्ग सांसद विजय बघेल को पाटन विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया हैं तब से राजनीतिक गलियारों में एक ही आशंका तैर रही है कि क्या विजय बघेल भाजपा के दूसरे नंदकुमार साय बनने जा रहे है? कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहते अजीत जोगी के सामने चुनाव लड़े नंदुकमार साय का राजनीतिक हश्र जगजाहिर हैं।
दरअसल साय उस समय भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे और अब 23 साल की नये राज्य में राजनीतिक यात्रा के बाद वे कांग्रेस की सरकार में केबीनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त नेता हैं और आने वाले चुनाव के लिए टिकिट के दावेदार भी। छत्तीसगढ़ के अल्प राजनीतिक इतिहास में यह तो कही नहीं दिख रहा हैं कि कोई मुख्यमंत्री अपनी सीट से चुनाव हारा हो। फिर आने वाले चुनाव में भाजपा कोई इतिहास रच दे तो अलग बात है।
लेकिन ये इतिहास रच देने के बाद विजय बघेल कही मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार हो गए तो? इसीलिए यह आशंका तैर रही है कि विजय बघेल भी कही नंदकुमार साय की गति को ही प्राप्त तो नहीं हो जाएंगे। दरअसल इस चुनाव में भाजपा की तैयारिया तो ऐसे दिख रही है कि 2018 में 15 साल की सरकार वाली पाटी जब चुनाव लड़ रही थी तब भी इतनी तैयारीं नहीं दिख रही थी। या यंू कह सकते है अतिआत्मविश्वास और आत्ममुुग्धता ने पार्टी को 50 से 15 सीटों पर ला दिया।
किसान ने याद दिला दी लंबित बोनस
इस चुनाव में भाजपा के लिए भरोसे का संकट मुंह बाए खड़ा है। इसका प्रमाण एक वायरल वीडियो में पार्टी को मिल गया। पाटन के भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल संगठन महामंत्री भूपेन्द्र सवन्नी के साथ जनसंपर्क कर रहे थे तो एक किसान ने दो साल के लम्बित बोनस की याद दिला दी और साथ में हमर कका वाला एक उलाहना भी दे दिया। दरअसल 2018 के चुनाव में जाने से पहले भाजपा ने किसानों का दो साल का बोनस रोक कर मोबाइल बांट दिए थे।
किसानों की मांग थी कि हमें मोबाइल नहीं बोनस चाहिए। इधर कांग्रेस के घोषणा पत्र में न केवल 2500 रूपए प्रति क्विन्टल धान की खरीदी का वादा था बल्कि बचा हुआ दो साल का बोनस भी देने का था। हालांकि साढ़े चार साल में वो दो साल का बोनस तो नहीं दिया लेकिन वादे के मुताबिक 2500 रूपए क्विन्टल धान खरीदी जारी है। निकट भविष्य में यह लम्बित बोनस दिया जाएगा या नहीं अब तक सरकार की ओर से कुछ संकेत नहीं है लेकिन भरोसे और न्याय की कसौटी के बूते चुनाव में जा रही कांग्रेस को भाजपा शराब और गोबर पर बहुआयामी विधाओं से घेर रही है।
कांग्रेस की पीच पर खेल रही भाजपा
छग की राजनीति में किसान और धान कितना अहम है इस बात को समझने के लिए भाजपा को 15 साल लग गए। अब भाजपा कांग्रेस पर छत्तीसगढिय़ा वाद का आरोप तो लगा रही है लेकिन कांग्रेस की पीच पर खेल भी रही है। अब हम आते है भाजपा की चौकाओ साइक्लाजी पर। भाजपा यह मानकर चल रही है कि 21 सीटों के प्रत्याशी घोषित कर विरोधियों पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बना ली।
21 में से 15 सीट जीतने का दावा करने वाली भाजपा की रणनीति है कि सांंसद विजय बघेल को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सामने मैदान में उतार कर उन्हें इंगेज कर दिया गया है। हालांकि अब तक एकतरफा जीत का दावा करने वाला कांग्रेस का पोलिटिकल थिंक टेंक अब अन्कम्फर्टेबल महसूस करने लगा है।
केंद्रीय एजेंसियों की धमक
राज्य में ठीक चुनाव से पहले केन्द्रीय जांच एजेसियों की धमक से सत्ता व संगठन के राजनीतिक समीकरण गडबड़ाने लगे है। हमने खबर की शुरूआत नंदकुमार साय से की थी और उन्हीं पर खबर खत्म कुछ ऐसी होती है कि राज्य की 34 फीसदी आदिवासी आबादी के लिए 90 में 29 विधानसभा सीटे आरक्षित है और कांग्रेस के पास अभी 27 सीटें है। कम से कम 20 सीटें ऐसी है जहा आदिवासी वोट 20 से 40 हजार है। और नंदकुमार साय अब यह बताते घूम रहे है कि कांग्रेस में आदिवासी सुरक्षित है और भाजपा में भरोसे का संकट है।
इसलिए पाटन के भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल भी मेरी गति को प्राप्त हो सकते हैं। अर्थात उनका राजनीतिक हश्र भी मेरे जैसा हो सकता है। फर्क सिर्फ इतना है कि मैं 34 फीसदी आबादी वाले समाज का 3 बार का सांसद था और विजय बघेल 6 फीसदी सामाजिक भागीदारी वाले एक बार के सांसद हंै। इसके बाद विजय बघेल को किसी भी चुनाव में टिकिट की चाहत नहीं रखनी चाहिए।