Shaurya Divas : स्व को खोजता भारत...

Shaurya Divas : स्व को खोजता भारत…

Shaury Divas: India Searching For Self...

Shaurya-Divas

शिवप्रकाश। Shaurya Divas : 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में एकत्रित रामभक्त कारसेवकों ने गुलामी के प्रतीक बाबरी ढांचे का ध्वंस कर दिया। यह ऐतिहासिक घटना भारत सहित समूचे विश्व को आश्चर्यचकित करने वाली थी। हिंदू समाज के मन में लंबे समय से यह पीड़ा थी कि उनके आराध्य देव के जन्मस्थान पर भगवान श्री राम की महिमा के अनुरूप मंदिर नहीं है। इसी पीड़ा के परिमार्जन के लिए सैकड़ों वर्षो से श्री राम जन्म भूमि की मुक्ति का संघर्ष चल रहा था। देश भर के सभी आस्थाओं से जुड़े संत समाज, राजा-महाराजाओं सहित सामान्य राम भक्त जनता की आहुति से यह यज्ञ पूर्ण हुआ।

विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में चलने वाले इस आंदोलन की व्यापकता से संपूर्ण देश परिचित ही है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद यह मुद्दा अपने निर्णायक पड़ाव पर पहुंचा। अब वहां भगवान श्री राम की महिमा के अनुरूप भव्य श्री राम मंदिर का निर्माण हो रहा है, जिसका शिलान्यास माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूजनीय सरसंघचालक डॉ मोहन राव भागवत, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित अनेक संतों एवं गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति में हुआ।

हमारे देश पर 327 ई0 पू0 सिकंदर का आक्रमण हुआ। उसके पश्चात अनेक बर्बर जातियां आक्रमणकारी के रूप में आयी। जिनके यूनानी, तुर्क, डच, फ्रेंच, शक, हुण, कुषाण, पुर्तगाली, मंगोल और अंत में अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से व्यापारकरने आए और समाज की कमजोरी के कारण यहां के शासक बन गए।अपने साम्राज्य को स्थापित करने के लिए इन सभी शक्तियों ने हिंसा एवं लूट का सहारा लिया।साथ ही इन सभी शक्तियों ने भारत के स्वाभिमान एवं आस्थाओं को कुचलने का कार्य किया।

देशभर में विखंडित असंख्य आस्था (Shaurya Divas) के प्रतीक इन प्रसंगों की याद दिलाते हैं। लगातार संघर्ष, कभी जय-कभी पराजय का दुष्परिणाम हुआ कि समाज अपना स्वाभिमान खोता गया। हिंदू समाज को उसके अतीत के गौरव को भुलाने के लिए बौद्धिक जगत में सुनियोजित षडय़ंत्र भी हुए।स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद स्वाभिमान जागरण का जो कार्य होना चाहिए था उसके स्थान पर गुलामी की मानसिकता से युक्त इतिहास शिक्षा के माध्यम से नई पीढ़ी को पढ़ाया जाता रहा।माक्र्स एवं मैकाले पुत्रोंका भारतीय समाज को भारतीयता से काटने का यह एक सुनियोजित षड्यंत्र था।

भारत में विदेशी शक्तियों से पोषित जहां यह षड्यंत्र चल रहा था, वहीं समाज में स्वाभिमान जागरण के प्रयास भी उसी गति से चल रहे थे।अपनी प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर से प्रेरणा लेकर अनेक व्यक्ति, समूह एवं संगठन इस दिशा में अग्रसर हुए। इन प्रयासों का ही परिणाम था कि स्वतंत्रता के आंदोलन का मूल मंत्र स्वधर्म, स्वभाषा एवं संस्कृति बनी।

स्वदेशी का उपयोग एवं वंदे मातरम जिसकी प्रेरणा बनी। श्री राम मंदिर का आंदोलन भी स्वाभिमान जागरण का ही उदाहरण है। सुप्त हिंदू समाज जैसे-जैसे जागृत होकर स्व को खोजने का प्रयास कर रहा है, तब उसके मस्तिष्क में सभी घटनाएं स्वप्न के समान झंकृत हो रही हैं।इसको स्मरण आ रहा है कि किस प्रकार साम्राज्यवादी ताकतों ने उसके श्रद्धा स्थान, उसके महापुरुष एवं राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हों के साथ व्यवहार किया।

उसके स्वभाषा, स्वधर्म के लिए लडऩे वाले महापुरुषों को बौनाएवं आक्रमणकारियों को आदर्श बनाने का प्रयास हुआ है। स्व का यह जागरण अब समाज के प्रत्येक क्षेत्र में प्रकट हो रहा है, जो होना अपेक्षित भी है।इतिहास, विज्ञान, कला, गणित आदि सभी क्षेत्रों में यह भारतीयता का जागरण भी प्रकट हो रहा है।

सोमनाथ का पुनरुद्धार, विलिंगडन अस्पताल का नाम राममनोहर लोहिया, इर्विन अस्पताल का नाम जयप्रकाश नारायण, बम्बई से मुंबई, मद्रास से चेन्नई, कलकत्ता से कोलकाताप्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा रॉस द्वीप का नाम बदलकर सुभाष चंद्र बोस द्वीप, इलाहाबाद का नाम प्रयागराज, भोपाल में हबीबगंज रेलवे स्टेशन के स्थान पर गोंड रानी कमलापति, दिल्ली में औरंगजेब रोड का नाम ए0 पी0 जे0 अब्दुल कलाम रोड, अयोध्या को वैश्विक शहर का गौरव (Shaurya Divas), दिव्य काशी भव्य काशी का विकास यह सभी स्वाभिमान जागरण के ही उदाहरण है।

आयुर्वेद, योग की स्वीकृति इसी जागृति का परिणाम है 7 दुनिया के जिन-जिन देशों में आक्रमणकारी शक्तियों ने वहां की संस्कृति एवं पहचान को मिटाने का प्रयास किया। समाज की जागृति के परिणामस्वरूप वहां भी इस स्व का जागरण हुआ है।इतिहास की अनेक घटनाएं हमको इसका स्मरण कराती हैं।ब्रिटिश साम्राज्य वादियों ने श्रीलंका का नाम सीलोन कर दिया था।श्रीलंका की सरकार ने 1972 में उस नाम को बदलकर पुन: श्रीलंका कर दिया।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी को विभाजित कर दो भाग पश्चिमी एवं पूर्वी जर्मनी बना दिया था।बर्लिन में एक बड़ी दीवार खड़ी कर दी गयी। 9 नवंबर 1989 में वहां की जनता ने उसको गिरा दिया। जर्मनी पुन: एक हो गया। 15वीं शताब्दी में रानी इसाबेला एवं ओ राजा फर्डिनेंड के नेतृत्व में स्पेन के सामान्य खंडित चर्चों का पुनर्निर्माण एवं आक्रान्ताओं द्वारा खंडित अवशेष से मुक्ति भी इसी स्व के जागरण का उदाहरण है।

उपरोक्त समस्त उदाहरण अपने देश एवं विदेश में स्व जागरण की श्रृंखला में हुई अनेक घटनाओं में से कुछ हैं। इतिहास इस बात का साक्षी है कि औपनिवेशिक, साम्राज्यवादी ताकतों ने विश्व में जहां भी इस प्रकार की घटनाएं की, उन सभी स्थानों पर समाज अपने स्व को लेकर खड़ा हुआ।समाज ने अपने प्रतिमान एवं श्रद्धा के स्थानों को खोजा।

ये घटनाएं किसी धर्म एवं व्यक्ति के विरोध में न होकर स्व का स्वाभाविक प्रकटीकरण है। समाज मे देशभक्ति एवं स्वाभिमान को जागृत करते हुए हम आजादी के अमृत महोत्सव में स्वराज्य से स्वतंत्र की ओर बढ़े एवं अपने देश को विश्व में सुरक्षित, अग्रणी एवं आत्मनिर्भर बनाएं।

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