संपादकीय: शरद पवार का राजनीति से सन्यास के संकेत
Sharad Pawar hints at retirement from politics: महाराष्ट्र के वयोवृद्ध नेता शरद पवार ने राजनीति से सन्यास के संकेत दिए हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान अपनी कर्म भूमि बारामती में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए शरद पवार ने कहा कि वे 14 बार चुनाव लड़ चुके हंै लेकिन अब मैं कोई चुनाव नहीं लडूंगा।
उनका कहना है कि कहीं तो आकर व्यक्ति को रूकना पड़ता है। शरद पवार वर्तमान में राज्यसभा सदस्य हैं और उनका कार्यकाल डेढ़ साल बचा है।
शरद पवार ने कहा कि डेढ़ साल बाद वे फिर से राज्य सभा जाएंगे या नहीं इस पर उन्हें सोचना पड़ेगा। शरद पवार ने चुनाव लडऩे से खुद को अलग करने के पीछे यह कारण बताया है कि वे नए लोगों को आगे बढऩे का अवसर देना चाहते हैं।
यदि शरद पवार इसी वजह से चुनावी राजनीति से संन्यास लेना चाहते हैं तो निश्चित रूप से उनका यह फैसला स्वागत योग्य है। वे उम्रदराज हो चुके हैं। वैसे तो राजनीति में रिटायरमेंट की कोई उमर तय नहीं है। आज भी भारतीय राजनीति में ऐसे नेता जिनके पांव कब्र में लटक रहे हैं वे भी कुर्सी से चिपके बैठे हैं।
ऐसी स्थिति में उम्रदराज शरद पवार यदि नए लोगों को मौका देने के लिए त्याग कर रहे हैं। तो निश्चित रूप से वे तमाम उम्रदराज नेताओं के सामने एक मिसाल पेश कर रहे हंै। शरद पवार ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में सब कुछ हासिल किया है।
वे महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री बनने वाले एक मात्र नेता रहे हैं। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री के अलावा वे केन्द्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। कांग्रेस से मतभेद गहराने के बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाई और महाराष्ट्र की राजनीति में हमेशा अपनी पकड़ मजबूत रखी।
यह अलग बात है कि उम्र के आखिरी पड़ाव में वे अपनी ही पार्टी पर मजबूत पकड़ नहीं रख पाए और उनके भतीजे अजीत पवार ने बगावत करके पार्टी तोड़ दी। यही नहीं बल्कि अजीत पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह भी हथिया लिया।
इस बड़े झटके के बाद भी शरद पवार नहीं टूटे और पिछले लोकसभा चुनाव के पूर्व अपनी पार्टी के नए नाम और नए चुनाव चिन्ह के साथ चुनाव मैदान में अपनी पार्टी को उतारा और दस लोकसभा सीटें जीतने में सफल हो गए। कहने का तात्पर्य यह है कि शरद पवार में अभी भी दमखम बाकी है लेकिन अब उन्होंने संभवत: अपने स्वास्थ्य के कारणों से चुनावी राजनीति से किनारा करने का फैसला किया है।
किन्तु वे अपनी पार्टी का मार्गदर्शन करते रहेंगे। वैसे भी शरद पवार पर्दे के पीछे से राजनीति करने के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में जब भाजपा और शिवसेना के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद की स्थिति निर्मित हुई और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद के लिए अड़ गए तब शरद पवार ने ही पर्दे के पीछे खेला किया और धुर विरोधी शिवसेना व कांग्रेस को एक ही छतरी के नीचे लाने में सफल हुए।
इस तरह उद्धव ठाकरे को उन्होंने मुख्यमंत्री बनवा दिया। इस बार फिर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांगेेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना के बीच टिकट बंटवारे को लेकर जो विवाद हुआ था।
वह भी शरद पवार के हस्तक्षेपके कारण खत्म हुआ है। बहरहाल ऐन महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान शरद पवार की इस घोषणा से उद्धव ठाकरे और कांग्रेस को झटका लग सकता है।