SC/ST Reservation Promotion : सुप्रीम कोर्ट का मानकों में दखल से इनकार, अगली सुनवाई 24 फरवरी को
नई दिल्ली। SC/ST Reservation Promotion : सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को प्रमोशन में आरक्षण को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान राज्यों को आंकड़े जुटाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि एससी/एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दिए जाने से पहले राज्यों को डेटा इकट्ठा करना चाहिए।
राज्य मात्रात्मक डेटा एकत्र करने के लिए बाध्य
उच्चतम न्यायालय ने प्रतिनिधित्व संबंधी वास्तविक आंकड़े जुटाए बिना अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के कर्मचारियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने के मानदंड में किसी प्रकार की छूट देने से शुक्रवार को इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने कहा कि आरक्षण देने से पहले प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता पर मात्रात्मक आंकड़े एकत्र करने के लिए राज्य बाध्य है।
शीर्ष अदालत ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने के लिए एम. नागराज (2006) और जरनैल सिंह (2018) की संविधान पीठ के फैसले में निर्धारित मानदंडों को कम करने से इनकार कर दिया। इन फैसलों में कहा गया है कि आवधिक समीक्षा के बाद प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आकलन के लिए मात्रात्मक आंकड़ों का संग्रह किया जाना अनिवार्य है।
कोर्ट ने आगे कहा कि पीठ के फैसले के बाद आरक्षण के लिए नया पैमाना नहीं बनाया जा सकता। कोर्ट ने ये भी कहा कि प्रतिनिधित्व के बारे में एक तय अवधि में समीक्षा होनी चाहिए। समीक्षा की अवधि क्या होगी कोर्ट ने इसे केंद्र पर छोड़ दिया है। जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मामले की सुनवाई (SC/ST Reservation Promotion) की। मामले की अगली सुनवाई 24 फरवरी को होगी।
शीर्ष अदालत ने रख लिया था अपना फैसला सुरक्षित
बता दें कि शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे को लेकर 26 अक्टूबर, 2021 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। केंद्र ने पहले पीठ से कहा था कि लगभग 75 वर्षों के बाद भी एससी और एसटी (SC/ST Reservation Promotion) के लोगों को अगड़ी जातियों के समान योग्यता के स्तर पर नहीं लाया गया है।
पिछली सुनवाई में पीठ ने ये भी कहा था कि वह अपने फैसले को फिर से नहीं खोलेगी। कोर्ट ने इसको लागू करने के फैसले को राज्यों पर छोड़ दिया था। कोर्ट ने कई सवाल पूछा था कि इतने दिनों तक सरकारी नौकरियों में ये व्यवस्था क्यों लंबित रखी गई?