SC ST Act : बैंकों की गिरवी संपत्ति पर एससी-एसटी एक्ट लागू नहीं हो सकता – हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पणी
SC ST Act
SC ST Act : दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) अत्याचार निवारण अधिनियम का उपयोग किसी बैंक को उसकी वैध गिरवी संपत्ति पर अधिकार प्रयोग करने से रोकने के लिए नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि यह अधिनियम सामाजिक अन्याय और भेदभाव के मामलों में लागू होता है, न कि वित्तीय संस्थानों के वैध लेनदेन पर।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की एकल पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए एक्सिस बैंक, उसके प्रबंध निदेशक (MD) और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) के खिलाफ राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा शुरू (SC ST Act) की गई कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगा दी। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 5 फरवरी 2026 निर्धारित की है।
पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया एससी-एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(F) और 3(1)(G) इस मामले में लागू नहीं होतीं, क्योंकि ये धाराएं केवल तब उपयोग में लाई जा सकती हैं जब किसी व्यक्ति की भूमि पर गलत कब्जा या अवैध बेदखली की स्थिति हो। बैंक द्वारा गिरवी रखी संपत्ति पर अधिकार प्रयोग करना एक वैध प्रक्रिया है, जिसे कानून का उल्लंघन नहीं माना जा सकता।
अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी बैंक को ऋण की वसूली या गिरवी संपत्ति नीलामी के अधिकार से वंचित करना अधिनियम की मूल भावना के विपरीत होगा। न्यायालय ने यह भी कहा कि आयोग का दायरा केवल सामाजिक उत्पीड़न या भेदभाव के मामलों तक सीमित है, न कि बैंकिंग लेनदेन से जुड़े विवादों तक।
यह मामला एक्सिस बैंक द्वारा वर्ष 2013 में सूर्यदेव अप्लायंसेज लिमिटेड को स्वीकृत ₹16.69 करोड़ के ऋण से जुड़ा है। यह ऋण महाराष्ट्र के वसई में स्थित एक संपत्ति के विरुद्ध गिरवी (SC ST Act) रखकर लिया गया था। उधारकर्ता के भुगतान न करने पर वर्ष 2017 में खाते को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) घोषित कर दिया गया। इसके बाद संपत्ति के स्वामित्व को लेकर दीवानी विवाद खड़ा हुआ और एक व्यक्ति ने इसे एससी/एसटी आयोग के समक्ष ले जाकर बैंक पर कार्यवाही की मांग की।
हाई कोर्ट ने आयोग की इस कार्रवाई को अधिकार क्षेत्र से परे (beyond jurisdiction) माना और कहा कि बैंक के वैध वसूली अधिकार को इस तरह की शिकायत के आधार पर नहीं रोका जा सकता। अदालत ने आयोग को निर्देश दिया कि वह इस प्रकार के वित्तीय विवादों पर विचार न करे, क्योंकि यह संवैधानिक ढांचे के अनुरूप नहीं है।
