संयुक्त किसान मोर्चा का “भारत बंद” आव्हान, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने किया बंद का समर्थन
रायपुर/नवप्रदेश। संयुक्त किसान मोर्चा ने 27 सितंबर को भारत बंद का आह्वान किया है। बंद का समर्थन करने कांग्रेस ने भी कदम बढ़ाया है। यही कारण है कि सोमवार को छत्तीसगढ़ में भी बंद का असर दिखाई देगा।
संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन बीते 10 माह से जारी है। संयुक्त किसान मोर्चा का दावा है कि भारत बंद के समर्थन में कई अन्य किसान संगठन भी शामिल हो रहे हैं और इनकी संख्या करीब 100 है। किसान संगठनों ने राष्ट्रीय राजनीतिक दलों, ट्रेड यूनियनों, किसान संघों, युवाओं, शिक्षकों, स्टूडेंट्स, महिलाओं, मजदूर संघों से भी 27 सितंबर,सोमवार को आहूत भारत बंद को सफल बनाने की अपील की है।
इसी कड़ी में संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन से जुड़े सभी घटक संगठनों और छत्तीसगढ़ किसान सभा तथा आदिवासी एकता महासभा ने कल 27 सितंबर को आयोजित ऐतिहासिक भारत बंद के आह्वान पर छत्तीसगढ़ बंद को सफल बनाने की अपील की है।
कांग्रेस ने किया बंद का समर्थन
कांग्रेस ने केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसान संगठनों द्वारा बुलाए गए ‘भारत बंद’ को समर्थन देने की घोषणा की। साथ ही प्रदर्शन कर रहे किसानों से वार्ता बहाल करने की मांग उठायी। कांग्रेस प्रवक्ता सुशिल आनंद शुक्ला ने कहा कि कांग्रेस पार्टी और उसके सभी कार्यकर्ता किसान संगठनों व किसानों द्वारा 27 सितंबर को बुलाए गए शांतिपूर्ण भारत बंद का समर्थन करेंगे।
तीन कानूनों का है विरोध
किसान संगठनों ने कहा है कि किसानों का ऐतिहासिक संघर्ष किसान विरोधी तीन कानूनों को खत्म करने व सभी किसानों व कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की वैधानिक गांरटी का कानून बनाने के लिए है, लेकिन अब यह आंदोलन हमारी अर्थव्यवस्था को कॉरपोरेटों द्वारा हथियाने के ख़िलाफ़ तथा राष्ट्रीय सम्पदा, संघात्मक ढांचे व भारत की एकता की रक्षा और भारतीय लोकतंत्र को पुनर्जीवित करने के लिए जारी राष्ट्रीय अभियान के केंद्र में आ गया है।
मजदूरों-किसानों पर थोपा गया कानून
छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम तथा छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने कहा कि किसान विरोधी कानूनों के ख़िलाफ़ देशव्यापी किसान संघर्ष के 10 माह पूरे होने जा रहे हैं। कोरोना संकट के दौरान किये गए दमनात्मक हमले भी इस आंदोलन की धार को कुंद नहीं कर पाए। मोदी सरकार ने जिस तरह श्रम कानूनों को निरस्त कर देश के मजदूरों को बंधुआ गुलामी की ओर धकेलने वाली चार श्रम संहिता को मजदूरों पर थोपा है, उसके कारण अब यह आंदोलन साझे मजदूर-किसान आंदोलन के रूप में विकसित हो रहा है, जिसका लक्ष्य इस देश को कॉरपोरेट गुलामी के चंगुल से बचाना है।
बंद की रणनीति तैयार
किसान संगठनों ने कहा है कि देशव्यापी भारत बंद को कांग्रेस और वामपंथी दलों सहित सभी गैर-भाजपा धर्मनिरपेक्ष विपक्षी दलों का समर्थन मिलना इस आंदोलन द्वारा उठाये जा रहे मुद्दों की प्रासंगिकता को ही रेखांकित करता है। पूरे प्रदेश में गांव-गांव में किसानों के, और शहरों व कस्बों में मजदूरों के साथ संयुक्त विरोध प्रदर्शन के साथ ही सड़कों पर चक्का जाम कर सार्वजनिक परिवहन व यातायात को भी बाधित किया जाएगा। विभिन्न जिलों व संगठनों द्वारा इसकी योजना बनाई जा चुकी है। किसान नेताओं ने अपने संयुक्त बयान में कहा है कि यदि इस देश की आम जनता और विशेषकर मजदूरों और किसानों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ती और इसके लिए मोदी सरकार इस आंदोलन द्वारा उठाई गई जायज मांगों को नहीं मानती, तो घरेलू मांग में और ज्यादा गिरावट आएगी तथा देश की अर्थव्यवस्था और ज्यादा संकट में फंसेगी। इस संकट से अडानी-अंबानी तो मालामाल होंगे, लेकिन करोड़ों लघु व्यवसायी बर्बाद हो जाएंगे।
केंद्र की दमनकारी नीति
किसान नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार जिन नीतियों पर चल रही है, उसकी अभिव्यक्ति केवल राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं हो रही है, बल्कि स्थानीय समस्याओं के और जटिल होने के रूप में भी प्रकट हो रही है। इसलिए कल का आंदोलन वनाधिकार कानून, मनरेगा, विस्थापन और पुनर्वास, आदिवासियों के राज्य प्रायोजित दमन और 5वी अनुसूची और पेसा कानून जैसे मुद्दों को केंद्र में रखकर भी आयोजित किया जा रहा है।