संपादकीय: वोटर लिस्ट रिविजन को लेकर बवाल

Ruckus over voter list revision
Editorial: बिहार विधानसभा चुनाव के पहले भारतीय निर्वाचन आयोग में बिहार के वोटर लिस्ट के रिविजन का काम शुरू कराया है। वोटर लिस्ट का रिविजन वैसे तो पूरे में होना है लेकिन अभी फिलहाल बिहार में चार माह बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इसलिए सबसे पहले बिहार में ही मतदाता सूची का गहन परीक्षण किया जा रहा है। इसके बाद जिन जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे वहां भी यह काम कराया जाएगा और धीरे धीरे पूरे देश में वोटर लिस्ट का रिविजन होगा।
यह एक समान्य प्रक्रिया है। जिसका कभी किसी ने विरोध नहीं किया। किन्तु इस बार बिहार में वोटर लिस्ट रिविजन को बडा मुद्दा बनाकर महागठबंधन ने इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। यह ठीक है कि वोटर लिस्ट रिविजन के प्रावधानों पर विपक्ष को आपत्ति हो सकती है लेकिन उसे न्यायालय में चुनौती देनी चाहिए। वोटर लिस्ट रिविजन के मुद्दे को लेकर विभिन्न विपक्षी पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की है। इस पर 10 जुलाई सुनवाई होने जा रही है।
ऐसे में जबकि यह मामला न्यायालय के अधीन है तो इसे लेकर आंदोलन करना समझ से परे है। एक दिन बाद ही इस पर सर्वोच्च न्यायलय विचार करने जा रहा है फिर इसे लेकर बिहार बंद कराने का क्या औचित्य है? सीधी सी बात है कि राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों के नेता चुनाव आयोग के खिलाफ आंदोलन करके अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं। बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की अगुवाई में महागठबंधन के हजारों कार्यकर्ताओं ने बिहार की राजधानी पटना में मार्च निकाला और निर्वाचन आयोग के कार्यालय में जाकर एक ज्ञापन सौंपा।
बिहार बंद के दौरान राजद और कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने पूरे बिहार में जगह जगह चक्का जाम किया और कुछ स्थानों पर रेल भी रोकी गई। जिससे बिहार का जन जीवन प्रभावित हुआ। यातायात बाधित करने से लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। समझ में नहीं आता कि सरकार से लड़ाई का खामियाजा आम जनता को भुगतने से महागठबंधन को क्या लाभ मिलेगा। जहां तक वोटर लिसट रिविजन के विरोध का प्रश्र है तो चुनाव आयोग ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि यह काम पूरी पारदर्शिता के साथ कराया जा रहा है।
इस काम में सभी राजनीतिक पार्टियों के हजारों बीएलओ की भी मदद ली जा रही है। इसलिए यह कहना उचित नहीं है कि निर्वाचन आयोग कोई मनमानी कर रहा है। गौरतलब है कि तेजस्वी यादव ने इस मुद्द को लेकर निर्वाचन आयोग पर निशाना साधा है और यह आरोप लगाया है कि निर्वाचन आयोग केन्द्र सरकार के इशारे पर काम कर रहा है और बड़ी संख्या में गरीबों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के वोट का अधिकार छीनने जा रहा है। यह वोट बंदी है। जिसका पूरा विपक्ष विरोध कर रहा है। उल्लेखनीय है कि बिहार में 7 करोड़ 90 लाख मतदाता हैं जिनमें से पांच करोड़ मतदाताओं को सिर्फ फार्म भरना है उन्हें कोई प्रमाण नहीं देना है। वे अपने फार्म ऑनलाइन भी भर सकते हैं।
विवाद सिर्फ लगभग ढाई करोड़ मतदाताओं को लेकर है जिनसे प्रमाण मांगा जा रहा है। दरअसल देश के अन्य राज्यों की तरह ही बिहार में भी बांग्लादेशी और रोहिंग्या बड़ी संख्या में घुसपैठ कर चुके हैं। ऐसे लोगो से ही कागज मांगे जा रहे हैं। जिसपर विपक्ष आपत्ति दर्ज करा रहा है। इस बीच पिछले 6 दिनों में ही किशनगंज क्षेत्र से 1 लाख 27 हजार लोगों ने आवासीय प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किये हैं। इसी से स्पष्ट है कि वहां बड़ी संख्या में लोग अवैध रूप से रह रहे हैं। रही बात राशनकार्ड और आधार कार्ड की तो वह बनवा लेना चुटकी बजाने जैसा असान काम है।
बंगाल से लेकर बिहार और झारखंड तक बड़ी संख्या में घुसपैठियों ने आधारकार्ड व राशनकार्ड बनवा रखे हैं और सरकार की सभी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। ऐसे घुसपैठियों की पहचान के लिए ही पूरे देश में वोटर लिस्ट रिविजन का काम कराने का निर्णय निर्वाचन आयोग ने लिया है और यह उसके अधिकार क्षेत्र में भी आता है ऐसे में वोटर लिस्ट रिविजन को लेकर विपक्ष सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने के लिए ही यह बवाल खड़ा कर रहा है। जबकि सुप्रीम कोर्ट में उसकी आपत्ति पर सुनवाई होने जा रही है और जल्द ही सुप्रीम कोर्ट का इस फैसला भी सामने आ जाएगा।