संपादकीय: महाविकास अघाड़ी में दरार
Rift in Mahavikas Aghadi: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद से महाविकास अघाड़ी में शामिल दलों के बीच टकरार शुरू हो गईथी और आखिरकार उसमें दरार पड़ ही गई। महाविकास अघाड़ी में शामिल समाजवादी पार्टी ने गठबंधन से अलग होने का ऐलान कर दिया।
गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव के दौरान ही टिकटों के बंटवारे को लेकर समाजवादी पार्टी ने असंतोष जताया था जो चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद विवाद का कारण बन गया। महाराष्ट्र के समाजवादी पार्टी नेता अबु आजमी ने शिवसेना यूबीटी पर हिन्दुत्व का मुद्दा उठाने का आरोप लगाते हुए अपनी पार्टी के गठबंधन से अलग होने की घोषणा कर दी है। अबु आजमी के आरोप पर पलटवार करते हुए आदित्य ठाकरे ने कहा है कि महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी ने भाजपा की बी टीम की तरह काम कर रही है।
कुल मिलाकर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी की जो शर्मनाक हार हुई है उसी वजह से उनमें तकरार हो रही है। इस गठबंधन में शामिल राजनीतिक पार्टियां अपने सहयोगी दलों पर ही अपनी हार का ठिकरा फोड़ रही है। उनके बीच आरोप प्रत्यारोप लगाने क दौर बदस्तूर जारी है।
शिवसेना यूबीटी के नेता यह आरोप लगा रहे है कि जहां उनके प्रत्याशी मैदान में थे वहां कांग्रेस पार्टी और शरद पवार की पार्टी के लोगों ने काम नहीं किया। ऐसा ही आरोप कांग्रेस भी लगा रही है। जबकि हकीकत तो यह है कि महाविकास अघाड़ी को महाराष्ट्र की जनता ने सिरे से खारिज कर दिया है।
दरअसल महाविकास अघाड़ी में शामिल दलों के नेताओं ने भले ही हाथ मिला मिले थे लेकिन उनके दिल नहीं मिल पाये थे। इस गठबंधन में शामिल तीनों ही दलों के नेता सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री पद हथियाने की होड़ में लगे हुए थे। यह सारा तमाशा महाराष्ट्र की जनता देख रही थी और उसने अपने वोट के जरिये इन अवसरवादियों को सबक सिखा दिया। नतीजतन साझे की हांडी चौराहे पर फूट गई।
अब तो उद्धव ठाकरे और शरद पवार को अपनी पार्टी का अस्तित्व बनाये रखने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इन दोनों ही पार्टियों के विधायकों का कब हृदय परिवर्तन हो जाये और वे पाला बदल ले इसका कोई भरोसा नहीं है। उद्धव ठाकरे और शरद पवार ने सपने में भी यह नहीं सोचा होगा कि उनकी पार्टी की ऐसी स्थिति होगी। इसके बाद भी उद्धव ठाकरे और उनके समर्थकों की हेकड़ी बरकरार है।
कहते है न कि रस्सी जल जाती है लेकिन बल नहीं जाता। कुछ ऐसा ही हाल उद्धव ठाकरे का है। जो अपनी महत्वकांक्षा के चलते महाअघाड़ी का हिस्सा बने थे और ढाई साल तक मुख्यमंत्री पद का सुख भोगा था। अब उन्हें इस बात का एहसास हो गया है कि हिन्दुत्व का मुद्दा छोडऩा उनकी सबसे बड़ी भूल थी।
इसलिए अब वे यह दावा कर रहे है कि उनकी पार्टी हिन्दुत्व के मुद्दे से पिछे नहीं हटी है उनके इस बयान का मतलब साफ है कि अब उनकी नजर बीएमसी सहित महाराष्ट्र के नगरी निकायों के होने वाले चुनाव पर टिकी हुई है। खासतौर पर बीएमसी चुनाव उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
उद्धव ठाकरे यह चुनाव महाविकास अघाड़ी से अलग होकर लडऩा चाह रहे है। क्योंकि यह उनकी प्रतिष्ठा का प्रश्न है यदि बीएमसी चुनाव में भी शिवसेना यूबीबी को करारी हार मिलती है तो उनकी पार्टी के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग जायेगा। देखना दिलचस्प होगा कि महाराष्ट्र के नगरी निकाय चुनाव में महाविकास अघाड़ी को कितनी सफलता मिल पाती है।