संपादकीय: महाअघाड़ी गठबंधन में दरार
Rift in Maha Aghadi alliance: एक ओर जहां राष्ट्रीय स्तर पर आईएनडीआईए के टूटने का खतरा उत्पन्न हो गया है वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र में महाअघाड़ी गठबंधन में दरार पड़ गई है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाअघाड़ी की करारी पराजय के बाद से महाअघाड़ी गठबंधन में शामिल कांग्रेस, शिवसेना यूबीटी और शरद पवार की पार्टी के बीच मतभेद गहराने लगे थे और इसके नेता महाअघाड़ी की हार के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे थे।
इन तीनों ही दलों के बीच दूरियां बढ़ती जा रही थी और अब शिवसेना यूबीटी ने खुद को महाअघाड़ी से अलग करने की घोषणा कर दी है। मुंबई सहित महाराष्ट्र की सभी नगरीय निकायों में शिवसेना यूबीटी ने अकेले अपने दम पर चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया है। शिवसेना यूबीटी के नेता और राज्यसभा सदस्य संजय राउत ने इसकी घोषणा करते हुए कहा है कि यह फैसला स्थानी स्तर पर पार्टी को मजबूत करने के लिए लिया गया है ताकि पार्टी कार्यकर्ताओं को ज्यादा से ज्यादा अवसर मिल सके। उन्होंने तो यह भी कहा है कि महाअघाड़ी का गठबंधन सिर्फ महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव तक ही था।
अब विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद इससे यह गठबंधन खत्म हो गया है। शिवसेना यूबीटी के अलग होने के बाद अब यह देखना होगा कि नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी मिलकर चुनाव लड़ती है या वे भी अपनी अलग राह चुनती है। यदि महाअघाड़ी गठबंधन का अस्तित्व खत्म हो जाता है और इसमें शामिल तीनों ही पार्टियां अकेले अपने दम पर चुनाव समर में उतरने का फैसला लेती हैं तो निश्चित रूप से इसका फायदा महायुति गठबंधन को होगा जिसमें शामिल भाजपा, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी एकजुट हैं और तीनों ने ही मिलकर महाराष्ट्र के नगरीय निकाय चुनाव में सीटों के बंटवारे पर सहमति जाहिर कर दी है। वैसे महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों इस बात की भी अटकलें लगाई जा रही है कि उद्धव ठाकरे एक बार फिर भाजपा के साथ आने की तैयारी कर रहे हैं।
ऐसे ही कयास शरद पवार की पार्टी को लेकर भी लगाये जा रहे हैं। उद्धव ठाकरे और शरद पवार दोनों ही नेताओं के बयान इस ओर संकेत कर रहे हैं कि वे भाजपा के साथ गठबंधन करने को आतुर हैं। शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत ने ऐसी संभावना को नकारा भी नहीं है उनका कहना है कि राजनीति में कोई किसी का न तो स्थाई दोस्त होता है और न ही स्थाई दुश्मन होता है ऐसे में राजनीति में कुछ भी होना संभव है।
वास्तव में उद्धव ठाकरे अब पछता रहे हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के लिए दशकों पुरानी भाजपा से दोस्ती तोड़ ली थी और विपरीत विचारधारा वाली कांग्रेस तथा शरद पवार की पार्टी के साथ गठजोड़ कर लिया था। जिसका खमियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। न सिर्फ उन्हें मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा बल्कि उनकी पार्टी ही टूट गई यहां तक की पार्टी का नाम और चुनाव सिन्ह भी एकनाथ शिन्दे के नेतृत्व वाले शिवसेना के पास चला गया।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना यूबीटी की जो शर्मनाक पराजय हुई थी उससे उद्धव ठाकरे ने सबक सिखा है और अब नगरीय निकाय चुनाव को मद्देनजर रखकर उन्होंने महाअघाड़ी से नाता तोड़ लिया है अब वे फिर से भाजपा के साथ गठबंधन की कवायद कर सकते हैं लेकिन अब उन्हें भाजपा अपनी शर्तों के साथ ही शामिल करने पर विचार करेगी। दरअसल उद्धव ठाकरे ने महाअघाड़ी से किनारा कर अपने पत्ते खोल दिये हैं।
भाजपा यह जान गई है कि उद्धव ठाकरे अब उधर नहीं जा रहे हैं इसलिए अब वह उन्हें भाव नहीं देगी। बहुत संभव है कि भाजपा उनके साथ गठबंधन करने से ही इंकार कर दे। भाजपा को अब न तो शिवसेना यूबीटी की जरूरत है और न ही शरद पवार की पार्टी की आवश्यकता है। इसलिए भाजपा इनके लिए आसानी से अपने दरवाजे नहीं खोलगी पिछले दिनों केन्दी्रय गृह मंत्री अमित शाह ने इन दोनों ही नेतओं को धोखेबाज करार दिया था।
इसी से स्पष्ट है कि भाजपा शिवसेना यूबीटी और शरद पवार की पार्टी के प्रति अभी भी नरम रूख अख्तियार करने के लिए तैयार नहीं है बहरहाल यह देखना दिलचस्प होगा कि शिवसेना यूबीटी ऐकला चलो रे की नीति से उसे नगरीय निकाय चुनाव में कितना लाभा होता है या उस पार्टी को और अधिक नुकसान उठाना पड़ता है।