EXCLUSIVE : एससी, एसटी को पदोन्नति में आरक्षण की राह आसान, पढ़ें ‘सुप्रीम’ फैसला
- -कर्नाटक पदोन्नति एक्ट 2018 की संवैधानि वैद्यता को रखा बरकरार
- -आरक्षण का विरोध करने वालों की पुनर्विचार याचिका खारिज
नई दिल्ली/नवप्रदेश। पदोन्नति में आरक्षण (reservation in promotion) के मामले में देश भर के अनुसूचित जाति व जनजाति (sc and st) वर्ग के लए उम्मीद की किरण जगी है। सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने 30 जुलाई 2020 को कर्नाटक राज्य के बीके पवित्रा 2 मामले में दिए अपने फैसले (decision) में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग को दिए गए परिणामी वरिष्ठता के साथ पदोन्नति में आरक्षण (reservation in promotion) की संवैधानिक वैद्यता को बरकरार रखा है।
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साथ ही आरक्षण का विरोध करने वालों के द्वारा लगाई गई उस याचिका को भी खारिज कर दिया जिसमें बीके पवित्रा 2 मामले में शीर्ष अदालत के पहले के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गई थी। सोशल जस्टिस एंड लीगल फाउंडेशन के विनोद कुमार कोशले ने यह जानकारी दी है। कोशले ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका में परिणामी वरिष्ठता के लिए क्रीमीलेयर की अवधारणा की अनुपयुक्तता पर अपीलकर्ताओं के दावे को पूरा पूरी तरह से खारिज कर दिया है। उक्त पुनर्विचार याचिका में आये निर्णय (decision) से स्पष्ट होता है कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति में क्रीमीलेयर कांसेप्ट लागू नहीं होगी एवं परिणामी वरिष्ठता के साथ पदोन्नति में आरक्षण मिलता रहेगा।
सु्प्रीम कोर्ट का पहले का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने बी के पवित्रा – 2 बनाम भारत सरकार मामले पर पर दिनांक 10 मई 2019 को दिए अपने फैसले में कर्नाटक में सरकारी सेवकों के लिए परिणामी वरिष्ठता के साथ पदोन्नति में आरक्षण (राज्य की सिविल सेवा पदों के लिए) अधिनियम 2018 की संवैधानिक वैद्यता को बरकरार रखा था ।
अब ये कहा शीर्ष अदालत ने
उक्त निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- ‘हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि रिव्यू पिटिशन में आरक्षण अधिनियम 2018 की संवैधानिक वैद्यता को चुनौती देने वाले तत्वों की कमी है। बी के पवित्रा प्रथम निर्णय के बाद राज्य सरकार ने नागराज प्रकरण में संविधान पीठ द्वारा दिये गए फैसले के अनुरूप डेटा को एकत्र करने व विश्लेषण करने की कवायद की है। पदोन्नति में आरक्षण अधिनियम 2002 के सम्बंध जो कमी देखी गई थी उसे पदोन्नति में आरक्षण नियम 2018 में ठीक कर दिया गया। यह नागराज प्रकरण व जनरैल सिंह प्रकरणों के निर्णयों का पालन करती है । आरक्षण अधिनियम 2018 संविधान के अनुच्छेद 16(4 ए) द्वारा प्रदत्त शक्ति को प्रभावी करने का एक वैध अभ्यास है।
सुप्रीम कोर्ट लाइव
याचिकाकर्ताओं की दलील
रिव्यु पिटीशन में अपील कर्ताओं ने आग्रह किया था कि नागराज बनाम भारत सरकार और जनरैल सिंह बनाम लक्ष्मीनारायण गुप्ता के मामलों में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा निर्धारित बाध्यकारी सिद्धांतों पर बी के पवित्रा 2 प्रकरण में विचार नहीं किया गया है। इसे बड़ी बेंच की खंडपीठ को भेज देना चाहिए था।
यह भी आग्रह किया गया कि अन्य बातों के साथ आरक्षण नियम 2018 के पूर्वप्रभावी आवेदन और परिणामी वरिष्ठता के लिए क्रीमी लेयर की अवधारणा की अनुपयुक्तता पर न्यायालय के निष्कर्षों में त्रुटि है।
सुप्रीम कोर्ट की दो टूक
रिव्यू पिटिशन को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि- हम पुनर्विचार याचिकाओं के तत्वों से गुजर चुके हैं। पुनर्विचार याचिकाओं में आग्रह किए गए प्रत्येक आधार की न्यायिक समीक्षा मेरिट में किया गया है। समीक्षा क्षेत्राधिकार के मानकों के अनुरूप हस्तक्षेप को उचित ठहराने के लिए हम रिकॉर्ड पर कोई स्पष्ट त्रुटि नहीं पाते हैं इसलिए रिव्यु पिटीशन खारिज की जाती है।
दोनों फैसलों के मायने
बकौल कोशले, कर्नाटक स्टेट के बीके पवित्रा 2 मामले में दिनांक 10 मई 2018 व रिव्यु पिटीशन पर दिनांक 30 जुलाई 2020 में आए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने पूरे देश मे अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग को पदोन्नति में रिजर्वेशन बहाल करने रास्ता तैयार कर दिया है। इससे दोनो समाज के पदोन्नति में आरक्षण के लिए उम्मीद की किरण जगी है।