Religious Dispute : देश के दिल दिल्ली में तनाव का माहौल
राजेश माहेश्वरी। Religious Dispute : श्रीहनुमान जन्मोत्सव पर दिल्ली के जहांगीरपुरी में जो कुछ हुआ, उसे सारे देश ने देखा और सुना। दिल्ली अभी पुराने दंगों से उभर नहीं पायी थी, और अब इस हिंसा ने फिर एक बार सोचने को मजबूर कर दिया है। दिल्ली देश की राजधानी है। देश के सांस्कृतिक विरासत की अनूठी मिसाल है। दिल्ली में विभिन्न धर्मों, जातियों और भाषाओं को बोलने वाले एक साथ रहते हैं। ऐसी अनूठी संस्कृति वाले शहर में हिंसा की घटना पूरे सिस्टम और समाज को कटघरे में खड़ा करती हैं।
चूंकि दिल्ली दुनिया के सबसे विशाल लोकतांत्रिक देश की राजधानी है, ऐसे में दिल्ली में घटने वाली हर घटना अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि बनाती और बिगाड़ती है। लेकिन चंद राजनीतिक दल अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिये देश में तनाव को बढ़ावा देने में लगे हैं। हिन्दू-मुस्लिम को लेकर राजनीति कोई नयी बात नहीं है, लेकिन इस राजनीति के चलते जो धुव्रीकरण हो रहा है, उसके नतीजे बेहद डरावने हैं।
पिछले कुछ वर्षों से विशेषकर हिंदू त्योहारों पर मध्यप्रदेश, गुजरात, झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक सामुदायिक और सांप्रदायिक टकराव हो रहे हैं। क्या ये किसी षडयंत्र का हिस्सा हैं? अथवा दंगों को प्रायोजित कराया जा रहा है? क्या पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया सरीखे अलगाववादी, जेहादी संगठन मुसलमानों को उकसा रहे हैं? आखिर शहरों में ही हिंदू-मुसलमान विभाजन इतना गहरा और व्यापक दिखाई क्यों देता है? गांवों में तो ऐसे टकरावों की स्थिति नहीं है। एकदम सामाजिक भाईचारा छिनता हुआ क्यों लग रहा है? मध्य प्रदेश के खारगोन से वाया दिल्ली होती हुई सांप्रदायिक हिंसा की तपिश कर्नाटक के हुबली तक जा पहुंची है।
राजधानी दिल्ली के जहांगीर पुरी इलाके में जो हिंसा भड़की (Religious Dispute) थी, उसमें गोलियां तक चलाई गईं। दंगाइयों की गोली ने पुलिस के एक उपनिरीक्षक को भी घायल कर दिया। वह उपचाराधीन हैं। घरों की छतों से औरतों ने भी पत्थर मारे, बोतलें फेंकी! मस्जिद, मदरसों से भी हमले किए गए। तलवारें लहराई गईं। यह पहली बार नहीं हुआ है। अलबत्ता इस बार नफरत की पराकाष्ठा रही है। यह हिंदुओं पर हमलों की पुरानी पद्धति रही है कि शोभा-यात्रा को निशाना बनाया जाता रहा है।
इस बार तो भद्दी गालियां भी दी गईं, जिन्हें लिखा नहीं जा सकता। धार्मिक विष इस कदर फैला कि उपद्रवियों ने श्रीराम और बजरंगबली के प्रति आस्थाओं पर सवाल किए। औरतें यह कहते सुनी गईं कि इन देवताओं की शोभा-यात्रा क्यों निकलने दी जाए? मुसलमानों को यह आपत्ति कब से होने लगी? वहीं मामले की निष्पक्ष जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इस बीच बीजेपी ने जहांगीपुरी हिंसा के पीछे रोहिंग्या मुस्लिमों का हाथ होने का आरोप लगाया है। अगर ऐसा है तो ये आंतरिक सुरक्षा के बड़ा खतरा है।
इन दिनों इस्लाम का ‘पाक महीना रमजान’ भी जारी है। कोई दंगा इस आधार पर नहीं भड़का कि गैर-इस्लामी लोगों ने रोजे या इफ्तारी को नापाक किया है। दिल्ली पुलिस ने जो तलवारें और पिस्टलें बरामद की हैं, आखिर वे कहां से आईं? क्या मुस्लिम घरों में इनका संग्रह पहले से ही तैयार रहता है? क्या हमले की सुनियोजित षडयंत्र तय की गई थी? पुलिस कमोबेश दिल्ली के संदर्भ में यह निष्कर्ष जरूर दे कि मुस्लिम घरों में हथियार मौजूद रहते हैं क्या? कई राज्यों में भड़की हिंसा के संदर्भ में यह सवाल उठता रहा है, लेकिन आज तक अनुत्तरित है।
पुलिस ने 21 से ज्यादा आरोपियों को अदालत के सामने पेश किया था, जिनमें दो को ही मात्र एक दिन के लिए पुलिस हिरासत में भेजा गया है, शेष न्यायिक हिरासत में हैं। राजधानी में 2020 में भी दंगा किया गया था। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए इन दंगों में 53 लोगों की मौत हो गई थी, करीब 700 लोग घायल हुए थे। कई लोगों के लापता होने की भी खबर है। इस दौरान करोड़ों रुपये की संपत्तियों का नुकसान भी हुआ। कई के खिलाफ आईपीसी की अलग-अलग धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया। क्या उसी की कड़ी में मौजूदा दंगे हैं या कोई अन्य कारण हैं? ठोस निष्कर्ष सामने आना चाहिए।
नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो (एनसीआरबी) मुताबिक 2017 में भारत में 90,394 दंगे दर्ज हुए थे, जिसमें 723 को सांप्रदायिक माना गया। अगर वर्ष 2017 के पूरे आंकड़ों को देखिए तो औसत तौर पर रोज हर तरह दंगे के 161 मामले हुए और रोज 247 लोग उनके शिकार बने। ़एनसीआरबी के मुताबिक भारत में साल 2000 से 2013 के बीच हर साल औसतन 64,822 दंगे हुए हैं।
हालांकि लोकसभा में सरकार ने खुद एक सवाल के जवाब में बताया वर्ष 2017 के खत्म होते होते 2920 सांप्रदायिक घटनाएं हुईं, जिसमें 389 लोग मारे गए तो 8890 घायल हो गए। गृह मंत्रालय ने ये जानकारी लोकसभा में 06 फरवरी 2018 में दी। संसद में दंगों को लेकर हुई बहस में गृह मंत्रालय को ओर से बताया गया कि ज्यादातर सांप्रदायिक दंगे सोशल मीडिया पर आपत्ति जनक पोस्ट, लिंग संबंधी विवादों और धार्मिक स्थान को लेकर हुए हैं।
देशवासी देख रहे हैं कि राज्यों में चुनाव से पहले सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की जो कुत्सित कोशिशें होती हैं, वे समाज में भय का वातावरण बना देती हैं। एक आम आदमी को लगता है कि देश का वातावरण कितना विषैला हो गया है लेकिन चुनाव संपन्न होते ही सन्नाटा पसर जाता है। जाहिर है यह कटुता कृत्रिम है और इसके राजनीतिक लक्ष्य होते हैं। ऐसा पहले बार नहीं है कि बहुसंख्यकों व अल्पसंख्यकों के त्योहार आसपास गुजरे हैं।
लेकिन हाल-फिलहाल इनको लेकर टकराव की घटनाएं विचलित करती हैं। सवाल यह भी है कि आजादी को अमृत महोत्सव मनाते वक्त हम धार्मिक सहिष्णुता का पाठ नागरिकों को क्यों नहीं पढ़ा पाये। नि:संदेह देश के सांप्रदायिक सौहार्द को खराब करने में राजनीतिक दलों की बड़ी भूमिका रही है, लेकिन इस तथ्य को बहुसंख्यक व अल्पसंख्यक समाज को भी गंभीरता से लेना होगा कि किसी भी तरह का धुव्रीकरण अंतत: सामाजिक समरसता के लिये घातक होता है। यह जानते हुए कि बहुसंख्यकों व अल्पसंख्यकों, दोनों को इस देश में ही रहना है तो बेहतर है कि मिलजुल कर रहें।
निस्संदेह, इस हिंसा के राजनीतिक निहितार्थ (Religious Dispute) भी हैं। विद्वानों का मत है कि सांप्रदायिकता भारत के राष्ट्रीय एकीकरण की दिशा में सबसे बड़ी बाधा है, क्योंकि यह विचारधारा अन्य समुदायों के विरुद्ध अपने समुदाय की आवश्यक एकता पर जोर देती है। भारत में सांप्रदायिकता का प्रयोग सदैव ही धार्मिक और जातीय पहचान के आधार पर समुदायों के बीच सांप्रदायिक घृणा और हिंसा के आधार पर विभाजन, मतभेद और तनाव पैदा करने के लिये एक राजनीतिक प्रचार उपकरण के रूप में किया गया है।