संपादकीय: यूपी में भाजपा की हार पर मंथन

संपादकीय: यूपी में भाजपा की हार पर मंथन

Reflection on BJP's defeat in UP

BJP's defeat in UP


BJP’s defeat in UP : लोकसभा चुनाव निपट गए हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार एनडीए की सरकार भी बन गयी है। किन्तु अभी तक देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में भाजपा की पराजय के कारणों की तलाश की जा रही है। भाजपा के लिए उत्तरप्रदेश में सीटें कम होना गंभीर चिंता का विषय है। इसे लेकर भाजपा लगातार मंथन कर रही है।

इस बारे में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी मेें भाजपा के प्रदर्शन को लेकर समीक्षा की है और वे इन नतीजों पर पहुंचे हैं कि उत्तरप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में कम से कम 100 भाजपा (BJP’s defeat in UP ) विधायकों के टिकट काटना जरूरी है।

योगी आदित्यनाथ के इस फैसले से स्पष्ट हो गया है कि भाजपा को लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में जो नुकसान उठाना पड़ा है। उसकी एक बड़ी वजह टिकट वितरण में सावधानी न बरतना है।

जिन सांसदों के प्रति उनके क्षेत्र में असंतोष था उन्हें फिर से प्रत्याशी बनाए जाने के कारण भाजपा (BJP’s defeat in UP ) को कम से कम पंद्रह सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। इनमें आधा दर्जन केन्द्रीय मंत्री भी शामिल थे। जिन्हेें चुनाव में शर्मनाक हार मिली है। यदि भाजपा अपने सांसदों और मंत्रियों के रिपोर्ट कार्ड को गंभीरता से लेती और ऐसे सांसदों को रिपीट नहीं करती तो भाजपा को ज्यादा सीटें मिल सकती थी।

फैजाबाद सीट पर भी भाजपा ने पूर्व सांसद लल्लू सिंह को रिपीट करने का जो जोखिम उठाया था। उसी के कारण वहां भाजपा को हार मिली है। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ फैजाबाद लोकसभा सीट से लल्लू सिंह को फिर से प्रत्याशी बनाए जाने के पक्ष में नहीं थे।

किन्तु भाजपा ने अति आत्मविश्वास के चलते लल्लू सिंह को ही टिकट थमा दी और वे चुनाव हार गए फैजाबाद लोकसभा सीट जहां अयोध्या विधानसभा भी आती है वहां से भाजपा की हार को लेकर न सिर्फ उत्तरप्रदेश में बल्कि पूरे देश में गलत संदेश गया।

उत्तरप्रदेश में भाजपा (BJP’s defeat in UP ) को इसलिए भी नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि भाजपा ने दूसरी पार्टियों से आए नेताओं को तरजीह दी। नतीजतन भाजपा के निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ताओं में असंतोष फैल गया इसलिए उन्होंने पार्टी प्रत्याशी के लिए उतनी मेहनत नहीं की जितनी उनसे अपेक्षा की गई थी।

दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के मुिखया अखिलेश यादव की रणनीति भाजपा पर भारी पड़ गई। उन्होंने पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों को एकजुट करने के लिए के जो टीडीए फार्मूला बनाकर सोशल इंजीनियरिंग की थी।

वह कारगर साबित हुई बसपा प्रमुख मायावती से उनका वोट बैंक नहीं संभाला गया। उसमें समाजवादी पार्टी ने सेंध लगा दी। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी 37 सीटें जितने मेें सफल हो गई और कांग्रेस पार्टी को भी 6 सीटों पर विजय मिल गई।

उत्तरप्रदेश भाजपा को जो करारा झटका लगा है। उसकी समीक्षा के बाद भाजपा नेतृत्व को अपनी रणनीति में बदलाव करना ही पड़ेगा। क्योंकि दो साल बाद उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव होने हैं।

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा चुनाव के परिणामों से सबक ले लिया है और उन्होंने अभी से इस बात के संकेत दे दिए है कि वे कम से कम 100 विधायकों की टिकट काटने की भाजपा हाई कमान से अनुशंसा करेंगे। इसके साथ ही भाजपा हाई कमान को चाहिए कि वह उत्तरप्रदेश भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की भी छुट्टी कर दें जिनकी वजह से यूपी में संगठन कमजोर पड़ा है।

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