Rare Species For Smuggling : तस्करी के लिए पहली पसंद है ये जानवर, बेशकीमती है इसका मांस, बनती हैं दुर्लभ दवाएं
नई दिल्ली, नवप्रदेश। दशकों से दुनियाभर के देशों में इस जीव की तस्करी हो रही है जो सांप, छिपकली की तरह दिखने वाला ये जीव स्तनधारी जीवों की श्रेणी में आता है और तस्करी के जरिए पैंगोलिन चीन या फिर वियतनाम पहुंच रहे हैं।
यहां इस जीव की दवाएं बनाई जाती हैं, जो काफी महंगे दामों पर चीन के कोने-कोने में अमीरों तक पहुंचती (Rare Species For Smuggling) हैं। हालत ये हुई कि पैंगोलिन विलुप्त होने वाले जीवों की श्रेणी में पहुंच गए।
इसे भारत में सल्लू सांप, चीटींखोर भी कहा जाता है। जानकारों के मुताबिक, पैंगोलिन धरती पर लगभग 60 मिलियन सालों से महज चीटियां खाकर अपना जीवन यापन करता आ रहा है।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की माने तो दुनियाभर में वन्य जीवों की अवैध तस्करी के मामले में अकेले ही 20 फीसदी योगदान पैंगोलिन का (Rare Species For Smuggling) है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, यह जानवर आपको काट नहीं सकते और इंसानों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। पर शिकारियों के लिए यह आसान शिकार हैं।
आपको बता दें कि जब उन्हें खतरे का एहसास होता है तो वे गेंद की तरह अपने शरीर को मोड लेते हैं। इसे टाइगर नहीं खा पाता क्योंकि इसके शरीर पर स्केल की एक परत होती (Rare Species For Smuggling) है।
पैंगोलिन को हिंदी में वज्रशल्क भी कहते हैं। हाल ही में यह मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में मिला था। महंगा होने की वजह से बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी तस्करी की जाती है। एक पैंगोलिन की कीमत 10 से 15 लाख तक जाती है।
गहरे-भूरे या पीले-भूरे रंग के दुर्लभ प्रजाति के पैंगोलिन की हड्डियों और मांस का इस्तेमाल अस्थमा से लेकर कैंसर जैसी कई तरह की बीमारियों की दवा बनाने में किया जाता है। इनका सबसे ज्यादा इस्तेमाल चीन (China) में होता है।