संपादकीय: सवाल महिलाओं की सुरक्षा का
Question of women’s safety: देश की आधी आबादी आजादी के सात दशकों के बाद भी घर और बाहर दोनों जगह असुरक्षित हैं। ऐसे में महिलाओं की सुरक्षा का सवाल आज भी अबूझ पहेली बना हुआ है।
महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। इस मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बयान दिया है कि महिलाओं के खिलाफ अत्याचार और अपराध को रोक कर उनकी सुरक्षा देश की प्राथमिकता है।
महिलाओं (Question of women’s safety) के खिलाफ अपराध अक्षम्य पाप है और इसके लिए सबकी जवाबदेही तय होनी चाहिए और ऐसे अपराधियों का हिसाब किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना सही है लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि ऐसा कौन करेगा।
महिलाओं को अन्याय अत्याचार और अनाचार का शिकार होने से बचाना यह सरकार का दायित्व है। ऐसे पापियों को उनके किए की कड़ी से कड़ी सजा दिलाना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है।
ऐसा नहीं है कि सरकार अपनी यह जिम्मेदारी नहीं निभा रही है लेकिन व्यवस्था में कहीं न कहीं कोई तो कमी है। जिसकी वजह से अपराधियों को समय रहते सजा नहीं मिल पाती और अक्सर यह भी देखा गया है कि वे सस्ते में छूट जाते हैं।
जाहिर है जब तक इन दरिंदों के खिलाफ तत्काल सजा की व्यवस्था सुनिश्चित नहीं की जाएगी तब तक ऐसे अपराधों पर प्रभावी रूप से अंकुश नहीं लग पाएगा। नई दिल्ली की बहुचर्चित निर्भया कांड के बाद ऐसे हैवानों को जल्द से जल्द और कड़ी से कड़ी सजा देने की पूरे देश मेें पुरजोर मांग उठी थी।
उसके बाद महिला अपराधों को लेकर कुछ कड़े कानूनी प्रावधान किए गए थे। किन्तु निर्भया के हत्यारों को ही सजा देने मेें सात साल का लंबा समय लग गया था।
इसके बाद भी महिलाओं (Question of women’s safety) के खिलाफ अपराधों में कोई कमी नहीं आई है। उल्टे ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ती ही जा रही है। इसका मतलब साफ है कि तथाकथित कड़े कानूनों का भी अपराधियों में कोई खौफ नहीं है।
यदि वे अपने अंजाम से डरते तो बंगाल की राजधानी कोलकाता में एक डॉक्टर बेटी दरिंदगी का शिकार नहीं होती। और न ही उत्तरप्रदेश के अयोध्या और कन्नौज से लेकर महाराष्ट्र के बदलापुर तक मासूम बच्चियां हैवानियत की शिकार बनती।
अब समय आ गया है कि देश के कर्णधार ऐसी घटनाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त करने और ऐसी घटनाओं की कड़ी निंदा करने की जगह अपराधियों को जल्द से जल्द और सख्त से सख्त सजा दिलाने के लिए कारगर कदम उठाएं।
पूर्व में भी मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वालों को फांसी की सजा देने की मांग उठती रही है लेकिन सरकार ऐसे कड़े कानून बनाने के लिए सार्थक पहल नहीं कर पाई है।
इसके पहले की पानी सिर से ऊंचा हो केन्द्र सरकार को चाहिए की वह महिलाओं के प्रति अपराध के लिए और कड़े कानूनी प्रावधान करें ताकि अपराधियों में कानून का खौफ पैदा हो। उम्मीद की जानी चाहिए की कोलकाता की मानवता को शर्मसार करने वाली घटना से सबक लेकर केन्द्र सरकार अब कड़े कदम उठाने पर गंभीरता पूर्वक विचार करेगी।
सिर्फ जुबानी जमाखर्च करने से काम नहीं चलेगा यदि महिलाओं (Question of women’s safety) के खिलाफ अपराध अक्षम्य पाप है तो इसके लिए कठोरतम दंड का भी प्रावधान करना पड़ेगा तभी महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो पाएगी।