संपादकीय : चुनावी नतीजे पर सवालिया निशान अनुचित
Question mark on election results inappropriate: महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा के चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम को लेकर महाविकास अघाड़ी के नेता इस पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। जो कतई उचित नहीं है।
झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस का गठबंधन चुनाव जीत गया है। इसलिए वह चुनाव परिणाम आईएनडीआईए को कबूल है। किन्तु महाराष्ट्र में आईएनडीआईए को करारी हार का सामना करना पड़ गया तो वे अपनी इस पराजय को पचा नहीं पा रहे हैं और चुनाव में गड़बड़ी की आशंका जता रहे हैं।
सबसे ज्यादा आपत्ति तो शिवसेना यूबीटी के नेताओं को है। जो मुंगेरी लाल की तरह सत्ता में आने का सपना देख रहे थे। इनके नेता उद्धव ठाकरे तो खुद को भावी मुख्यमंत्री मानकर चल रहे थे। एकनाथ शिदें वाली असली शिवसेना को नकली बता रहे थे। और महाराष्ट्र की सत्ता में फिर से आने का ख्वाब देखते हुए एकनाथ शिंदे और उनके गुट के अन्य नेताओंं को सबक सिखाने की बात कर रहे थे। वे अपने विराधियों को महाराष्ट्र द्रोही करार दे रहे थे।
उनकी देखा देखी उनके खास सिपाहसलार संजय राउत भी पूरे चुनाव के दौरान विवादास्पद बयानबाजी करते रहे और उद्धव ठाकरे के ही मुख्यमंत्री बनने का दावा ठोकते रहे। उनके बड़बोलेपन की वजह से ही शिवसेना यूबीटी को इस चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा। उसने मात्र 19 सीटें ही जीती।
इनमें से भी 10 सीटें उन्हें इसलिए मिल पाई की वहां से महाराष्ट्र नौ निर्माण सेना के प्रत्याशी भी मैदान में थे। जिन्होंने अच्छे खासे वोट बटोरे। यदि राज ठाकरे की पार्टी मनसे इन सीटों पर चुनाव नहीं लड़ती तो उनको मिलने वाले वोट भाजपा को चले जाते ऐसी स्थिति में शिवसेना यूबीटी मात्र 9 सीटों पर सिमट कर रह जाती।
महाविकास अघाड़ी को मिली शर्मनाक हार के कारणों का विश्लेषण करने की जगह चुनाव परिणाम पर संदेह जताकर संजय राउत जैसे नेता पता नहीं क्या हासिल करना चाहते हैं। चुनाव परिणाम महाराष्ट्र की जनता को स्वीकार नहीं है। यह जनता का फैसला नहीं है नतीजों में कुछ तो गड़बड़ है।
उनके इस बयान का मतलब साफ है कि वे महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम को गलत करार दे रहे हंै। और चुनाव आयोग पर उंगली उठा रहे हैं।
दरअसल विपक्षी दलों की यही दिक्कत है कि वे मीठा मीठा गपगप और कड़वा कड़वा थू थू वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए जहां उन्हें जीत मिलती है उसे वे लोकतंत्र की जीत बताते है और जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ता है। वहां वे ईवीएम पर और चुनाव आयोग पर अपनी हार का ठीकरा फोडऩे लगते हैं।
कायदे से उन्हें इस जनादेश को विनम्रता पूर्वक स्वीकार करना चाहिए और अपनी हार के कारणों की समीक्षा कर उन कमियों को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। किन्तु ऐसा न कर वे जनादेश का अपमान करते हैं। जिसका उन्हें भविष्य में भी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।