संपादकीय: लोकतंत्र को लेकर राष्ट्रपति की चिंता

संपादकीय: लोकतंत्र को लेकर राष्ट्रपति की चिंता

President's concern about democracy

President's concern about democracy



President's concern about democracy: 18 वीं लोकसभा के पहले सत्र का शुभारंभ करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने अभिभाषण में सरकार की भावी योजनाओं की चर्चा की और इसके साथ ही उन्होंने नीट पेपर लीक मामले पर भी सरकार का दृष्टिकोण सामने रखा। पेपर लीक मामले को लकर विपक्ष ने सरकार को घेरने की तैयारी कर रखी है और इस सत्र के दौरान विपक्ष पेपर लीक मामले में सरकार को कटघरे में खड़ा करने की हर संभव कोशिश जरूर करेगा। उसे ऐसा करना भी चाहिए। क्योंकि यह लाखों छात्रों के भविष्य से जुड़ा मामला है।



सरकार को विपक्ष के आरोपों का जवाब भी देना होगा और सदन को यह भरोसा दिलाना होगा कि पेपर लीक मामले के दोषी लोग बख्शे नहीं जाएंगे और भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होने दी जाएगी। वर्तमान में चल रहे इस विषय को अपने अभिभाषण में शामिल कर राष्ट्रपति ने यह बता दिया है कि वे इसे लेकर कितनी चिंतित हंै। उन्होंने कहा है कि पेपर लीक पहले भी होते रहे हैं। इस बार जो हुआ है उसकी जांच की जा रही है और दोषी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही जरूर होगी। उन्होंने इस मामले को लेकर राजनीति करने वाले लोगों से आव्हान किया है कि वे दलगत भावना से ऊपर उठकर पेपर लीक मामले भविष्य में न हो इसके लिए एकजुट होकर काम करें।

राष्ट्रपति जब इस विषय पर बोल रही थी। तब विपक्ष के कुछ नेता शोर शराबा कर उनके अभिभाषण में व्यवधान डालने की कोशिश कर रहे थे जो उचित नहीं है। राष्ट्रपति ने अपने उद्बोधन में आपातकाल की भी चर्चा की और कहा कि 1975 में लगाए गए आपातकल के दौरान जनता पर जुल्म किए गए और लोगों के मौलिक अधिकार निलंबित किए गए थे। यह लोकतंत्र के इतिहास का काला अध्याय है। हमारे देश भारत को विश्व में लोकतंत्र की जननी कहा जाता है जो बेहद मजबूत है किन्तु हमारे देश के भीतर ही ऐसी ताकतें सक्रिय हैं। जो लोकतंत्र को कमजोर करने की साजिश रच रही है और तरह तरह की अफवाहें फैला रही है ऐसे लोगों से सावधान रहने की जरूरत है।

गौरतलब है कि भारत में लोकतंत्र को लेकर अक्सर विपक्षी पार्टियां सरकार पर यह आरोप लगाती रही हैं कि सरकार लोकतंत्र को खत्म करना चाहती है। यह भी कहा जाता है कि लोकतंत्र खतरे में पड़ गया है। किन्तु इसके लिए वे सरकार को जिम्मेदार ठहराती हैं यह बात सच है कि लोकतंत्र पर हमले का प्रयास होता रहा है। 1975 में लोकतंत्र पर सबसे बड़ा हमला किया गया था। जब देश में इमरजेंसी लागू कर दी गई थी और सभी विपक्षी नेताओं को जेल भेज दिया गया था।


उसे याद करके ही राष्ट्रपति ने लोकतंत्र को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है जो कि स्वाभाविक है। संसद सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी आपातकाल को लेकर अपने विचार व्यक्त किए थे। अब राष्ट्रपति ने भी अपने अभिभाषण में उसका जिक्र किया है। इससे प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस को तकलीफ हो सकती है क्योंकि कांग्रेस के शासनकाल में ही आपातकाल लगा था। बहरहाल राष्ट्रपति का अभिभाषण सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को नसीहत देने वाला रहा है।


राष्ट्रपति ने कहा है कि सदन में नीतियों का तो विरोध होना चाहिए लेकिन सदन की गरिमा का ध्यान रखा जाना भी जरूरी है और उन के काम में अवरोध पैदा करने से सभी को बचना चाहिए ताकि सदन सुचारू रूप से चल सके। उम्मीद की जानी चाहिए कि राष्ट्रपति की इस नसीहत को सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही गंभीरता से लेंगे।






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