Paddy Rot : राज्य में 214 करोड़ का धान सड़ा, एजेंसियों की लापरवाही, राज्य को बड़ा नुकसान –
रायपुर, प्रमोद अग्रवाल/ नवप्रदेश। छत्तीसगढ़ में जिस धान और चांवल के दम पर सरकारे बनती बिगड़ती है उस धान का इतना बुरा हाल होता (Paddy Rot) है यह जानने के लिए छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विपणन संघ के द्वारा किए गए टेंडर से जाना जा सकता है। जिसमें अब से तीन साल पहले खरीदे गए धान की अभी तक बिक्री न होने और लगभग 214 करोड़ रूपए का धान मनुष्य के खाने के खाने लायक न रहा जाने की जानकारी दी गई (Paddy Rot) है।
धान के हालात इतने खराब है कि तीन सालों से उसे लेने वाला कोई नहीं मिल रहा है। राज्य की धान एकत्रिकरण ईकाईयों की अनियमितत का यह जीता जागता उदाहरण है। लगभग 856553 क्विंटल धान वर्ष 2019-20 से राज्य की विभिन्न फड़ों में पड़ा हुआ है और उसका कोई लेवाल नहीं (Paddy Rot) है।
बताया जा रहा है कि कांग्रेस के किसी बड़े नेता के कहने पर अब इसे औने पौने दामों पर बेचे जाने के लिए टेंडर किया गया है। धान एकत्रिकरण की दोनों एजेंसियां वर्ष 2020-21 और 2021-22 सीजन में इतना धान खरीदी है और उसमें से कितने धान का उपयोग हो गया है यह भी अभी तक नहीं बता पाई है।
राज्य में 2400 सौ रूपए प्रति क्विंटल धान खरीदने का दावा करने वाली सरकार की एजेंसी छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विपणन संघ ने एक टेंडर निकाला है जिसे 29 जून को खोला जाना है। इस 74 पन्नों के टेंडर में बताया गया है कि राज्य के बिलासपुर, मुंगेली, बेेमेतरा, बलौदा बाजार, महासमुंद, रायपुर, सूरजपुर आदि जिलों में वर्ष 2019-20 को संग्रहित किए गए अमानक धान का विक्रय किया जाना है।
यह धान मानव उपयोग हेतु नहीं है तथा इसे पशु आहार उक्कूट आहार, औद्योगिक उपयोग और मैन्योर बनाने वाले ही खरीद सकते है। धान की कुल मात्रा 856553 क्चिंटल है जिसे 2181916 बोरे में रखा गया है। इस धान को बेचने के लिए इसे एफ वन, एफ टू, एफ थ्री इंडस्ट्रीयल यूज मेन्योर और डंपिंग कैटेगरी में बाटा गया है और क्रमश: 1213 रू., 1011 रू., 809 रू., 607 रू., और 202 रू., प्रति क्विंटल की दर से बेचा जाना तय किया गया है।
टेेंडर में नियम और शर्तें ऐसी बनाई गई है जिससे यह साफ परिलक्षित होता है कि यह किसी विशेष व्यक्ति को उपकृत करने के लिए बनाया गया है। ७४ पन्नों के इस टेंडर में पेज १८ से २५ तक एक परिशिष्ट लगाया गया है जिसे पैप्ट कहा गया है और यह परिशिष्ट अगेंंजी में बनाया गया है ताकि ज्यादातर लोग समझ ही न सके।
कीमतों के हिसाब से देखा जाए तो सड़ गए इस धान की कीमत लगभग २१४ करोड़ रूपए होती है और जिन बोरों में इन्हे रखा गया है उसकी कीमत लगभग ८ करोड़ रूपए होता है और जिस दर पर उसे बेचा जाना है उसकी कीमत इसके एक चौथाई के बराबर भी नहीं है। मतलब साफ है कि सरकार को इस मामले में लगभग १५० करोड़ रूपए का घाटा होना तय है वह भी तब जबकि उसकी मंशा के अनुरूप इस धान का निपटान हो जाएं।
बताया गया है कि यह धान जहां है जैसा है की तर्ज पर उठाया जाएगा, टेंडर के अनुसार कसडोल में १२२०३ क्विंटल, हथबंध में ३४१७० क्विंटल, देवरी में १३०५९० क्विंटल, देव नगर में २६०१५ क्विंटल, भरनीभाठा में १८६८९ क्विंटल, बिलहा में १०३९०८क्विंटल, मोपका में १३२०२७ क्विंटल, सेमरताल में ६५७१ क्विंटल, महासमुंद मेें २९९२९ क्विंटल, बागबहारा में ४२५३ क्विंटल, पिथौरा में १७७२९ क्विंटल, बसना में ६९ क्विंटल, सराईपाली में ६० क्विंटल,
रायपुर के तिलदा में ५८९१९ क्विंटल, जौंदा में ९७९४० क्विंटल, मुंगेली में २०७८३ क्विंटल, गीतपुरी में ७१८४ क्विंटल, लोरमी में १२५५९ क्विंटल, बेमेतरा के लेंजवारा के दो फड़ों में क्रमश: १२२७५६ क्विंटल और ५८२३९ क्विंटल धान अमानक होकर सड़ चुका है। यह कुल मात्रा ८५६५५३ क्विंटल है, इसे बेचने का एक प्रयास पहले भी किया गया था लेकिन वह भी असफल रहा था।
लगभग दो साल से विभिन्न संग्रहण केन्दों में पड़ा यह धान सड़ता रहा लेकिन किसी भी एजेंसी ने इसके निपटान के बारे में कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। सूत्रों ने बताया है कि दिल्ली के किसी कांग्रेस के बड़े नेता के इशारे पर इसे शराब बनाने वाले किसी कंपनी को दिए जाने की कोशिश की जा रही है इसलिए टेंडर में कई ऐसी शर्ते जोड़ी गई है जिनके कारण कोई भी आसानी से टेंडर न भर सकें।
टेंडर भरने के लिए प्रिक्वालिफिकेशन की जो शर्ते बनाई गई है उन्हे बहुत सारे सर्टिफिकेट इकट्ठे करने के लिए कहा गया है और यदि कोई व्यक्ति और संस्था यह करने के बावजूर टेंडर भरने जाता है तो विपणन संघ के अधिकारी उसे टेंडर भरने से रोक रहे है और उन्हे सरकार का भय दिखाया जा रहा है।
बताया गया है कि टेंडर भरना तो ऑनलाईन है लेकिन जो उसका प्रिक्वालिफिकेशन बिड है वह ऑफलाईन है और उसे विपणन संघ के अधिकारियों द्वारा सर्टिफाई कराया जाना है। टेंडर में यह भी नहीं बताया गया कि यदि कोई फर्म इस धान को उठा लेती है तो वह मानव खाने के लिए इसका उपयोग करेगा तो उसे कैसे रोका जा सकेगा। उसके लिए सिर्फ इसमें एक शपथ पत्र देना है कि खरीदने वाली फर्म इसका मानव खाने के लिए उपयोग नहीं करेगा लेकिन भारत में शपथ पत्र के जरिए कितने नियमों का पालन होता है यह जगजाहिर है।
राज्य की धान संग्रहण योजना देश में सबसे बड़ी कृषि योजना है जिसके अंतर्गत राज्य के ७५ प्रतिशत लोग जुड़े हुए है। राज्य की सरकार देश में धान खरीदी का समर्थन मूल्य २५०० रू. देने का दावा करती है और किसानों को लाभ पहुंचा रही है लेकिन उस किसान से खरीदे हुए धान का क्या हश्र हो रहा है यह इस सड़ते हुए धान को देख कर समझा जा सकता है। इस घाटे की प्रतिपूर्ती कैसे होगी और इसके लिए दोषी लोगों पर क्या कार्यवाही होगा यह सरकार को बताया चाहिए।
वर्ष २०१९-२० में खरीदे गए धान की जब यह हालत है तो वर्ष २०२०-२१ और २०२१-२२ में धान का रिकार्ड संग्रहण किया गया है जिसके बारे में पूछे जाने पर राज्य की खरीदी एजेंसी द्वारा कभी भी जवाब नहीं दिया जाता है। इन वर्षों में खरीदे गए धान का भी क्या यही हश्र हो रहा है यह सवाल भी बड़े जोर शोर से उठ रहा है।
राज्य में विपक्ष की भूमिका निभा रही भारतीय जनता पार्टी द्वारा इस मामले में चुप्पी साधे रहना यह दर्शाता है कि वह भी राज्य सरकार से मिली भगत करके चल रही है ताकि उनके कार्यकाल में किया गया ३६ हजार करोड़ का नान घोटाला यह सरकार दबाकर रखें। कुल मिलाकर राज्य के सरकारी अमले द्वारा राज्य को जबरदस्त रूप से नुकसान पहुंचाया जा रहा है और उनपर कार्यवाही न होना यह दर्शाता है कि राज्य सरकार का उसे समर्थन हासिल है।