संपादकीय: संभल हिंसा पर राजनीति अनुचित
Politics on violence is inappropriate: उत्तरप्रदेश के संभल में स्थित एक मस्जिद के सर्वे के दौरान वहां भड़की हिंसा दुखद है। इस हिंसा में पांच लोगों की मौत के बाद हालात बेकाबू हो गये और वहां अघोषित कफ्यू जैसा माहौल बन गया है। भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई है जिसकी वजह से हालात काबू में है लेकिन अभी भी स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है।
उग्र भीड़ द्वारा सर्वे टीम और पुलिस बल पर हमला करने और आगजनी करने की घटना को लेकर पुलिस ने समाजवादी पार्टी के एक सांसद तथा एक विधायक के बेटे पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज की है। अब तक सीसीटीवी कैमरों से हुई पहचान की वजह से पच्चीस लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
जबकि बड़ी संख्या में अज्ञात लोगों के खिलाफ केस इदर्ज किया गया है। इस संवेदनसील मामले को लेकर सियासत की जा रही है। जो कतई उचित नहीं है।
संभल में शांति स्थापना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके लिए सभी राजनीतिक पार्टियों को दलगत भावना से उपर उठकर संभल में शांति की बहाली के लिए संवेद प्रयास करना चाहिए। किन्तु राजनीतिक पार्टियां इस हिंसा की आग में अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में मसगूल है।
संभल हिंसा को लेकर भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के नेता एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे है। कुछ नेता तो अनरगल बयानबाजी कर आग में घी डालने का काम रहे है। जिससे संभल में स्थिति सुधरने की जगह और खराब हो सकती है।
संभल हिंसा को लेकर नेताओं को बेतुकी बयानबाजी करने से बाज आना चाहिए। शासन और प्रशासन पर भरोसा रखना चाहिए। जो संभल हिंसा की जांच करा रहा है। और जांच के बाद यह स्पष्ट हो जायेगा कि संभल हिंसा के पिछे किसका हाथ है।
इस हिंसा की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए और इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही भी सुनिश्चित की जानी चाहिए। ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पूनरावृत्ति न हो।