POCSO Disposal Rate : देश में पाक्सो मामलों के निपटान में छत्तीसगढ़ नंबर वन 189% निपटान दर, राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुना
POCSO Disposal Rate
बाल यौन शोषण मामलों (POCSO Disposal Rate) में न्याय दिलाने की दिशा में छत्तीसगढ़ ने देशभर में अभूतपूर्व उपलब्धि दर्ज की है। पाक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस) मामलों के निपटारे में प्रदेश शीर्ष पर पहुंच गया है।
सेंटर फॉर लीगल एक्शन एंड बिहेवियर चेंज फॉर चिल्ड्रन (सी-लैब) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2025 में छत्तीसगढ़ ने जितने नए पाक्सो मामले दर्ज किए, उससे लगभग दोगुने मामलों का निपटारा किया। यह उपलब्धि न्यायिक संवेदनशीलता, प्रशासनिक दक्षता और बाल सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता का महत्वपूर्ण संकेत मानी जा रही है।
देशभर में वर्ष 2025 के दौरान कुल 80,320 पाक्सो मामले दर्ज हुए और 87,754 मामलों का निपटारा हुआ, यानी राष्ट्रीय निपटान दर 109 प्रतिशत रही। वहीं छत्तीसगढ़ में पाक्सो निपटान दर (POCSO Disposal Rate) ने रिकॉर्ड स्थापित करते हुए 189 प्रतिशत का आंकड़ा छुआ।
प्रदेश में इस वर्ष 1,416 नए मामले दर्ज हुए और अदालतों ने 2,678 मामलों का निपटारा किया। राज्य ने न केवल नए मामलों का तेजी से समाधान किया, बल्कि वर्षों से लंबित मामलों को भी बड़े पैमाने पर समाप्त किया, जिसका प्रभाव न्यायिक प्रणाली पर व्यापक रूप से देखा गया।
देश बनाम छत्तीसगढ़ (2025 में पाक्सो आंकड़े)
देशभर में दर्ज मामले: 80,320
देशभर में निपटाए गए मामले: 87,754
निपटान दर: 109%
छत्तीसगढ़ में दर्ज मामले: 1,416
छत्तीसगढ़ में निपटाए गए मामले: 2,678
निपटान दर: 189% (देश में सर्वोच्च)
रिपोर्ट में बताया गया है कि अदालतों ने पाक्सो मामलों में तेज़ गति से सुनवाई करते हुए पुरानी लंबित फाइलों को प्राथमिकता दी। प्रदेश में लंबित मामलों की स्थिति भी तेजी से सुधार रही है छह से दस वर्ष पुराने सिर्फ 3 प्रतिशत मामले, पांच वर्ष पुराने 6 प्रतिशत और चार वर्ष पुराने 14 प्रतिशत मामले ही लंबित हैं। बाकी मामलों में तीन वर्ष से कम समय शेष है।
भारत में वर्ष 2023 तक कुल 2,62,089 पाक्सो केस लंबित थे, जिनके निपटान के लिए रिपोर्ट में 600 अतिरिक्त ई-पाक्सो अदालतों की अनुशंसा की गई है। इसके लिए निर्भया फंड का उपयोग करते हुए 1,977 करोड़ रुपये की लागत का अनुमान लगाया गया है।
इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन के निदेशक (शोध) पुरुजीत प्रहराज ने कहा कि बाल यौन शोषण जैसे संवेदनशील मामलों में तेज़ न्याय मिलना सिर्फ कानूनी उपलब्धि नहीं, बल्कि सामाजिक भरोसे की वापसी है। उनके अनुसार न्याय में हर दिन की देरी बच्चे के मानसिक आघात को और गहरा करती है, इसलिए इस गति को बनाए रखना नैतिक ज़िम्मेदारी है।
संवेदनशीलता, प्रतिबद्धता और प्रभावी न्यायिक प्रक्रिया के परिणामस्वरूप छत्तीसगढ़ आज पाक्सो मामलों के निपटान में देश का अग्रणी राज्य बनकर उभरा है।
