PMGSY Bastar Connectivity : बस्तर की सड़कों पर आई उम्मीद की रौशनी, अब गांवों से सीधे शहर तक सफर आसान

PMGSY Bastar Connectivity

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कभी कीचड़ और धूल से भरे रास्तों के लिए पहचाने जाने वाले बस्तर (PMGSY Bastar Connectivity) की सुदूर आदिवासी बसाहटें अब पक्की, चौड़ी और टिकाऊ सड़कों से जुड़ चुकी हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) ने यहां के ग्रामीण जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल दी है। शासन की कटिबद्धता और सतत प्रयासों के कारण अब बस्तर की वह धरती, जो पहले बरसात में दुनिया से कट जाती थी, आज शहरों और बाजारों से सीधे जुड़ी है।

वर्ष 2000-01 से शुरू हुई इस विकास यात्रा में अब तक बस्तर जिले में डामरीकृत, सीमेंट-कांक्रीट और नवीन तकनीकों से बनी 2,388.24 किलोमीटर लंबी सड़कों का निर्माण पूरा किया गया है। इन सड़कों पर 856 करोड़ 80 लाख रुपये से अधिक की राशि व्यय की गई है। ये सड़कें केवल यात्रा का साधन नहीं, बल्कि बस्तर के जनजीवन की जीवनरेखा बन चुकी हैं।

दरभा, बास्तानार और लोहंडीगुड़ा जैसे वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित इलाकों में बनीं इन सड़कों ने 1,420 बसाहटों को पहली बार शहरों से सीधा संपर्क दिया है। पहले जहाँ किसी बीमार व्यक्ति को अस्पताल तक पहुंचाने में कई घंटे लगते थे, वहीं अब एम्बुलेंस गांव के आंगन तक पहुंच रही है। स्कूल जाने वाली बच्चियाँ अब प्लास्टिक में किताबें लपेटकर चलने के बजाय बस और टैक्सी से स्कूल जा रही हैं।

वनांचल में उत्पादित महुआ, चार, इमली, जंगली शहद और बांस से बने हस्तशिल्प अब जगदलपुर, रायपुर और बिलासपुर के बाजारों तक पहुंच रहे हैं। इससे ग्रामीणों की आमदनी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। किसानों की कृषि और उद्यानिकी उपज अब आसानी से बाजार तक पहुंच रही है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था (PMGSY Bastar Connectivity) को नई मजबूती मिली है।

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत जिले में कुल 451 सड़कें स्वीकृत हुई थीं, जिनमें से सभी पूरी हो चुकी हैं। फेज-1 में 426 सड़कों से 1,993.51 किलोमीटर, फेज-2 में 5 सड़कों से 94.35 किलोमीटर और फेज-3 में 20 सड़कों से 300.38 किलोमीटर का निर्माण कार्य संपन्न हुआ है। इसके साथ ही 42.30 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित 16 वृहद पुल भी पूरे किए गए हैं। ये पुल अब स्थानीय लोगों के लिए केवल यातायात का माध्यम नहीं, बल्कि आपदा के समय जीवनरक्षक साबित हो रहे हैं।

बारिश और बाढ़ के दिनों में जहाँ पहले नाव ही सहारा हुआ करती थी, अब ये पुल गांवों को अलग-थलग पड़ने से बचा रहे हैं। यही नहीं, नई सड़कों के बनने से पर्यटन को भी नया जीवन मिला है। चित्रकोट जलप्रपात, तीरथगढ़ और कुटुमसर गुफाएं अब सीधे जुड़ गई हैं, जिससे ईको-टूरिज्म और होमस्टे को बढ़ावा मिला है।

वर्ष 2025-26 में भी विकास की यह यात्रा जारी रहेगी। पीएम-जगुआ और पीएमजीएसवाई फेज-4 के तहत 295 नई बसाहटों का सर्वेक्षण जीओ रोड ऐप और ड्रोन तकनीक (PMGSY Bastar Connectivity) की मदद से पूरा किया गया है। इनमें से 87 सड़कों का विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन (DPR) तैयार कर केंद्र सरकार को भेजा जा चुका है। नई सड़कों में जलवायु-अनुकूल डिजाइन, सौर ऊर्जा से संचालित स्ट्रीट लाइट और वर्षा जल संचयन जैसी सुविधाएं भी जोड़ी जा रही हैं, ताकि विकास टिकाऊ और पर्यावरण-संवेदनशील हो।

ग्रामीणों की कहानियां इस बदलाव की गवाही दे रही हैं। दरभा ब्लॉक के ककनार गांव की 65 वर्षीय बुधरी बाई बताती हैं, “पहले बीमारी में बेटा कंधे पर उठाकर ले गया था, अब गाड़ी आती है, दवा मिलती है, जिंदगी बचती है।” तोकापाल की छात्रा कविता नाग कहती हैं, “अब कॉलेज जाने में डर नहीं लगता, सड़क है तो सपना भी है।” स्थानीय व्यापारी रामू कश्यप मुस्कुराते हुए कहते हैं, “पहले महुआ और इमली बिचौलिए सस्ते में ले जाते थे, अब खुद ट्रॉली से बाजार पहुंचाते हैं, दाम भी अच्छा मिलता है।”

पीएमजीएसवाई ने बस्तर की तस्वीर पूरी तरह बदल दी है। इन सड़कों ने जहां विकास की रफ्तार बढ़ाई है, वहीं ग्रामीणों में आत्मविश्वास और उम्मीद भी जगाई है। स्वास्थ्य, शिक्षा, व्यापार और रोजगार हर क्षेत्र में इसका असर दिख रहा है। अब बस्तर कह रहा है, “हम पीछे नहीं, मुख्यधारा के साथ कदम मिलाकर चल रहे हैं।” यह सिर्फ सड़क नहीं, बल्कि उस सोच की यात्रा है जिसने जंगलों के बीच छिपी बसाहटों को भारत की विकास कहानी से जोड़ा है।

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