संपादकीय: पीएम मोदी की खरी-खरी
PM Modi’s candid words: भारतीय संविधान के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष में लोकसभा में संविधान पर हुई दो दिवसीय विशेष चर्चा का जवाब देते हुए पीएम मोदी ने कांग्रेस को आईना दिखा दिया। चर्चा की शुरूआत विपक्ष की ओर से कांग्रेस की नवनिर्वाचित सांसद प्रियंका गांधी ने की थी और चर्चा के अंत में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भारतीय संविधान पर अपने विचार रखे थे।
उन्होंने सदन में मनु स्मृति और संविधान की प्रति लहराते हुए आरोप लगाया था कि भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार भारतीय संविधान का गला घोटने की कोशिश कर रही है और मनु स्मृति के अनुसार देश चलाना चाहती है। इसी तरह के आरोप समाजवादी पार्टी के सांसद अखिलेश यादव तथा तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा आदि ने भी लगाये थे और सरकार पर निशाना साधा था।
गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान जब भाजपा ने अबकी बार चार सौ पार का नारा दिया था तब कांग्रेस सहित आईएनडीआई में शामिल सभी राजनीतिक दलों ने इस नारे को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया था और यह आरोप लगाया था कि भाजपा इस बार चार सौ पार का नारा इसलिए लगा रही है ताकि वह प्रचंड बहुमत से सरकार बना सके और संविधान को बदल सके। तथा आरक्षण को खत्म कर सके।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी हर चुनावी सभा में भारतीय संविधान की प्रति लहराते थे और भाजपा पर संविधान बदलने का आरोप लगाते थे। भाजपा इसका कोई काट नहीं कर पाई और भाजपा सहित एनडीए की सीटें कम हो गई। जबकि विपक्ष मजबूत होकर उभरा, यही वजह है कि संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्ष ने सरकार से मांग की थी कि वह संविधान पर संसद में विशेष चर्चा कराए।
विपक्ष ने सोचा था कि वह संविधान पर चर्चा के दौरान एक बार फिर सरकार को कटघरे में खड़ा करने में सफल होगी। किन्तु विपक्ष के नेता आधी अधूरी तैयारी के साथ लोकसभा में आये थे। और संविधान पर चर्चा के दौरान उन्होंने सिर्फ जुबानी जमा खर्च किया। वे वही बात सदन में दोहराते रहे जो वे चुनाव के दौरान जनसभाओं में कहते रहे है। उन्होंने कुछ भी नया नहीं कहा जबकि सत्ता पक्ष के नेता पूरी तैयारी के साथ सदन में पहुंचे थे। और अनुराग ठाकुर से लेकर ललन सिंह तक सत्ता पक्ष के नेताओं ने विपक्षी सांसदों के आरोपों की धज्जियां उड़ाकर रख दी।
इस चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने लगभग दो घंटों के धाराप्रवाह उद्बोधन में विपक्ष की और खासतौर पर कांग्रेस की बखिया उधेड़कर रख दी। पीएम मोदी ने कांग्रेस का कालाचिठ्ठा खोल दिया। उन्होंने कहा कि जो कांगे्रस आज भारतीय संविधान की रक्षा करने की दुहाई दे रही है। उसने लगातार संविधान का गला घोटा है।
इसकी शुरूआत तो देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ही की थी जो आजादी के बाद मनोनीत प्रधानमंत्री बने थे और उन्होंने अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगाने का प्रस्ताव सांसद से पारित कराया था। यही नहीं बल्कि कांग्रेस तो खुद अपनी पार्टी के संविधान को स्वीकार नहीं कर पाई है। पार्टी के संविधान के मुताबिक उस समय देश की 12 कांग्रेस सीट प्रदेश कमेटियों ने सरदार वल्लभ भाई पटेल के पक्ष में मतदान किया था।
एक भी कमेटी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के पक्ष में वोट नहीं दिया था। इसके बावजूद सरदार वल्लभ भाई पटेल की अवहेलना करके पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया गया था। ऐसी पार्टी जो अपने पार्टी के संविधान को ही नहीं मानती वह भारतीय संविधान की परवाह कैसे करेगी।
पीएम मोदी ने तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक के कार्यकाल में हुए संविधान संशोधन की चर्चा करते हुए कहा कि इन लोगों ने अपनी सत्ता बचाने के लिए और तुष्टीकरण के लिए संविधान में कई बार संसोधन किये है। उन्होंने कहा कि संविधान में संशोधन हमारी सरकार ने भी किये है लेकिन वे देश की एकता को मजबूत बनाने के लिए और वंचित वर्ग को उसके अधिकार देने के लिए किये है।
पीएम मोदी की इस खरी-खरी के बाद विपक्ष में सन्नाटा पसर गया। कांग्रेस के नेताओं ने सोचा कुछ था और हो गया और कुछ पीएम मोदी ने कांग्रेस की कई पीढिय़ों के कारनामों को उजागर कर विपक्ष की बोलती बंद कर दी। खासतौर पर उन्होंने आपातकाल का जिक्र करते हुए कहा कि 1975 में तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सिर्फ अपनी सत्ता बचाने लिए देश पर आपातकाल थोप दिया था। और इस दौरान लोगों के मौलिक अधिकार छीन लिये थे और प्रेस पर भी प्रतिबंध लगा दिया था।
भारतीय संविधान पर यह सबसे बड़ा हमला था। ऐसी कांग्रेस पार्टी के मुंह से भारतीय संविधान की बात शोभा नहीं देती। कुल मिलाकर संसद में भारतीय संविधान पर विशेष चर्चा कराने की मांग करके कांग्रेस में आ बैल मुझे मार वाली कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है।
यदि कांग्रेस ने संविधान पर चर्चा की पेशकश की थी तो उसे पूरी तैयारी के साथ चर्चा में भाग लेना था। कांग्रेस ने अभी भी ऐसे कई वरिष्ठ नेता हैं जो संविधान पर चर्चा के दौरान सरकार को घेर सकते थे। किन्तु उन्हें मौका नहीं दिया गया और जिन्हें मौका मिला वे इस अवसर का लाभ नहीं उठा सके। उल्टे अपनी किरकिरी करा गये।
राज्यसभा में भी संविधान पर चर्चा के दौरान विपक्ष के नेता सरकार को घेरने में सफल हो पाएंगे इसकी उम्मीद कम हुई है। यदि विपक्ष के नेता पूरी तैयारी के साथ इस चर्चा में भाग लेते तो निश्चित रूप से भारतीय संविधान के 75 साल पूरा होने पर संसद मेंं संविधान पर सार्थक चर्चा हो पाती और विपक्ष की ऐसी फजीहत ही नहीं होती।