Panchayati Systems : लोकतंत्र की बुनियादी आधार हैं पंचायती व्यवस्थाएं |

Panchayati Systems : लोकतंत्र की बुनियादी आधार हैं पंचायती व्यवस्थाएं

Panchayati Systems: Panchayati systems are the basic basis of democracy

Panchayati Systems

विकास कुमार। Panchayati Systems : पंचायती व्यवस्थाओं को स्थानीय प्रशासन का मूल आधार स्तंभ माना जाता है। भारत में प्राचीन काल से ही स्थानीय स्वशासन का प्रावधान मिलता है। भारतीय लोकतंत्र में आजादी के बाद से ही पंचायती व्यवस्थाओं को महत्व दिया जाने लगा था। यही कारण है कि भारतीय संविधान के निर्माताओं ने इसके लिए अलग से प्रावधान जोड़े थे। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है जिसमें चुनाव आयोग के 2019 के सूची के अनुसार ,लगभग 90 करोड़ मतदाता पंजीकृत हैं।

रूरल कनेक्शन नेटवर्क के अनुसार, पूरे देश में 239000 ग्राम पंचायतें हैं, जो संविधान के सातवीं अनुसूची में वर्णित राज्य सूची का विषय है। इनके प्रबंधन, वित्तीय व्यवस्था ,निर्वाचन एवं संरचना की व्यवस्था का दायित्व राज्य सरकार पर निर्भर होता है।भारत की शासन व्यवस्था तीन स्तर पर कार्य करती है। जिसमें तीसरा स्तर स्थानीय स्वशासन (पंचायती व्यवस्था) हैं।

भारतीय संविधान के भाग 4 अनुच्छेद 40 में इससे संबंधित उपबंध थे जो प्रवर्तनीय प्रक्रिया नहीं थी।पंचायती व्यवस्थाओं को संवैधानिक दर्जा देने के पीछे राज्य संघात्मक व्यवस्था का उल्लंघन बताकर इसके पक्ष में नहीं थे। यही कारण रहा कि राजीव गांधी जी का 64 वां संशोधन (1989) और वी0पी0 सिंह का संवैधानिक प्रयास (1 जून 1990) असफल रहा। पंचायतों को संवैधानिक दर्जा 1992 और 1993 में 73 वे संवैधानिक संशोधन के द्वारा दिया गया था जिसमें नरसिम्हा राव जी ने अथक प्रयास किया था।

इनके चुनाव कराने की जिम्मेदारी राज्य निर्वाचन आयोग की होती है जिसका उपबंध भारतीय संविधान का अनुच्छेद 243 का (्य) करता है।कुछ राज्यों ने इसके चुनाव की घोषणा कर दिया है क्योंकि संविधान था इनका कार्यकाल 5 वर्ष रखा गया है जिसका प्रावधान भारतीय संविधान का अनुच्छेद 243( श्व) ही करता है। सभी प्रत्याशी शासनादेश का इंतजार कर रहे हैं और अपनी -अपनी सुविधानुसार तैयारियां भी आरंभ कर दिया है।मतदाताओं और प्रत्याशियों के मध्य वार्तालाप प्रारंभ हो चुका है परंतु संवाद प्रारंभ नहीं हुआ, क्योंकि संवाद की प्रक्रिया तो चुनाव में अक्सर रिक्त रहती है। संवाद की स्थिति में ना ही मतदाता है और ना ही प्रत्याशी।

राजनीतिक दलों के बड़े-बड़े नेताओं का भी इन चुनावों में आगमन होगा जिससे वह अपनी उपलब्धियां गिनाते हैं।मतदाता भी सुनकर आनंदित होता है और बाद में नेता जी जिंदाबाद भी बोलता है क्योंकि वह भूल चुका होता है कि हमारी स्थानीय समस्याएं लोन के पैसों का कमीशन, आवास कमीशन ,सड़क और पानी की समस्याएं क्या है? शिक्षा और स्वास्थ्य तो इन चुनावों में गौड मुद्दे बन जाते हैं । प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति और अन्य सभी स्थानीय कार्य मतदाता भूल चुका होता है और मुखिया भी उसी को बना देता है, जिसका कोसों इनसे संबंध नहीं होता। इन चुनाव में उम्मीदवारों का उद्देश्य और कार्य अनुभव भी नहीं पूछा जाता जिसका कारण जागरूकता की कमी कहें या शिक्षा का अभाव ।

हालांकि पंचायती व्यवस्थाओं (Panchayati Systems) से स्थानीय निकायों में सुधार भी हुआ है परंतु उन सभी परियोजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता जो ग्रामीणों के लिए होती हैं। ऐसे में सभी मतदाताओं को चाहिए कि जातिवाद, धर्म, क्षेत्रवाद और व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने वाले ‘केवल’ प्रत्याशी को ना चुनकर सार्वजनिक आकांक्षाओं में खरे उतरने वाले प्रत्याशी का चयन करें। जब स्थानीय स्तर पर सुधार होगा तभी यह प्रक्रिया आगे बढ़ सकेगी। मतदाता को अपने मत का प्रयोग स्वेच्छा और सोच विचार कर करना चाहिए जिससे 5 वर्षों के लिए योग्य नेता के निर्देश लागू हो सके और स्थानीय संस्थाओं की स्थिति मजबूत हो जिससे अन्य स्तरों पर भी सुधार हो।

आज लगभग पूरे देश में पंचायती राज पद्धतियों का गठन किया जा चुका है ,परंतु वास्तविक स्थिति में उतनी आत्मनिर्भर निर्भरता देखने को नहीं मिली, जितना कि इसको लागू करने के समय सपना देखा गया था। आरक्षण का प्रावधान पंचायती पद्धतियों में अनुच्छेद 243 क (ष्ठ,4) किया तो गया है, परंतु उसका पूरा लाभ ना महिलाएं ले पाती पाती हैं और ना ही नीचे तबके के वर्ग, क्योंकि आज भी कई पूर्वाग्रह प्रवृत्तियों से प्रेरित होकर ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान किया जाता है द्य जब पंचायती व्यवस्था सुदृढ़ और आत्मनिर्भर बनेगी तभी भारत का लोकतंत्र और मजबूत होगा द्य सुधार की प्रक्रिया ग्रामीण से ही शुरू हो सकती है। महिलाएं सरपंच तो बन जाती हैं परंतु वह प्रशासन नहीं चलाती हैं प्रशासन उसके पति द्वारा चलाया जाता है।

एससी एसटी वर्ग का व्यक्ति सरपंच तो बन जाता है परंतु प्रशासन किसी धनाढ्य लोगों द्वारा चलाया जाता है। आज भी कई राज्य ऐसे हैं जिन्होंने पंचायती व्यवस्थाओं को उनके संपूर्ण विषयों को हस्तांतरित नहीं किया है। पंचायत के चुनाव में भी छल और बल से काम लिया जाता है। किस व्यक्ति की पहुंच शासन प्रशासन के ऊपर तक होती है प्रमुख पदों पर वही आसीन होता है। यही कारण है कि जिन उद्देश्य से भी का निर्माण किया गया था वह पूरा नहीं हो पा रहा है।

गांव के विकास के नाम पर करोड़ों का फंड सरकारों के द्वारा दिया जाता है, परंतु उसका संपूर्ण लाभ गांव के सही व्यक्ति पर नहीं खर्च होता है।यही कारण रहा कि आज तक पंचायती व्यवस्था (Panchayati Systems) पूर्णतया आत्मनिर्भर और उन संपूर्ण सपनों को साकार नहीं कर सकी जिनके लिए इनको संगठित किया गया है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि पंचायती राज को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयास करें और इस प्रयास में सबसे बड़ा कदम हो सकता है शिक्षा। बिना शिक्षा के जागरूकता संभव नहीं है और जब नागरिक और मतदाता जागरूक होंगे तभी यह सब संभव हो पाएगा।

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