संपादकीय: जेपीसी का विरोध समझ से परे

संपादकीय: जेपीसी का विरोध समझ से परे

Opposition to JPC is beyond comprehension

Opposition to JPC is beyond comprehension

Editorial: संसद के मानसून सत्र में सरकार ने 130वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया है जिसका विपक्ष ने लोकसभा और राज्यसभा में जमकर विरोध किया था। लोकसभा में तो तृणमुल संसदों ने उक्त विधेयक को फाड़कर गृहमंत्री अमित शाह के उपर फेक दिया था। बहरहाल सरकार ने 130वां संसोधन विधेयक जेपीसी को सौंप दिया है और इसके लिए संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में विस्तृत चर्चा कराने की बात कहीं है। किन्तु सबसे पहले तृणमुल कांग्रेस ने जेपीसी में शामिल होने से इनकार कर दिया। टीएमसी सुप्रीमों और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि यह विधेयक संविधान विरोधी है। इसलिए इसके लिए गठित जेपीसी में तृणमुल कांग्रेस शामिल नहीं होगी।

ममता बनर्जी की देखा-देखी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यंत्री अखिलेश यादव ने भी जेपीसी का बहिष्कार करने की घोषणा कर दी है। उनका कहना है कि कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है इसमें केन्द्र सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। यह संघीय ढांचे के प्रतिकुल है। इस विधेयक के कानून बन जाने से इसका राजनीतिक बदले की कार्रवाई के रूप में दुरूपयोग हो सकता है। इसलिए समाजवादी पार्टी भी जेपीसी का हिस्सा नहीं बनेगी। नई दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी जेपीसी के बहिष्कार का एलान किया है। उनका भी कहना है कि यह विधेयक संविधान विरोधी है।

गौरतलब है कि अरविंद केजरीवाल जब शराब घोटाले के आरोप में 175 दिनों तक जेल में थे और वहीं से उन्होंने सरकार चलाई थी। उपमुख्यमंत्री मनिष सिसोदिया और उनके एक दो मंत्री भी जेल की हवा खां चुके है और उन्होंने भी लंबे समय तक अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया था। जाहिर है इस विधेयक के पारित हो जाने और कानून की शक्ल अख्तियार कर लेने से अब कोई भी मंत्री, मुख्यमंत्री और यहां तक की प्रधानमंत्री भी यदि किसी अपराध के आरोप में 30 दिनों तक जेल में रह जाते है तो उन्हें पद मुक्त कर दिया जाएगा। इस विधेयक का विरोध समझ से परे है। देश में 24 राज्यों में भाजपा की या उसके सहयोगी दलों की सरकारें है। केन्द्र में भी भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की सरकार हैं। जबकि आईएनडीएआईए की मु_ी भर राज्यों में ही सरकार है। ऐसे में यह कानून बन जाने से एनडीए के नेताओं पर ज्यादा तलवार लटकेगी। इसके बावजूद विपक्षी पार्टियां इस विधेयक का विरोध कर रही है और इसके लिए गठित जेपीसी का बहिष्कार करने लगी है।

अभी तक प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोले है। उसने यह स्पष्ट नहीं किया है कि वह जेपीसी का हिस्सा बनेगी या नहीं। अन्य विपक्षी पार्टी भी इस मुद्दे को लेकर पशोपेश में है। हो सकता है कि टीएमसी, सपा और आम आदमी पार्टी के दबाव में आकर कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियां भी जेपीसी का बहिष्कार कर दें। यदि ऐसा हुआ तो यह विपक्ष के लिए ही नुकसान देह साबित होगा। भाजपा आसानी से जेपीसी में भी इस विधेयक को हरि झंडी दिखाने में सफल हो जाएगी।

बेहतर होगा कि सभी विपक्षी पार्टियां जेपीसी का हिस्सा बनें और उसकी बैठक में इस विधेयक को लेकर अपनी आपत्ति पुरजोर ढंग से पेश करें। ताकि इस विधेयक में यदि कोई विसंगति नजर आती है तो उसे दूर किया जा सके और फिर संसद के शीतकाली सत्र में इस विधेयक पर विस्तृत चर्चा हो सके। किंतु विरोध के नाम पर ही कुछ विपक्षी पार्टियां अब जेपीसी का बहिष्कार कर रही हैं। आम आदमी पार्टी का विरोध तो समझ में आता है क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली का मुख्यमंत्री रहते उस समय भी नैतिकता के नाते अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया था। जब उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में लगभग पांच महिने जेल में रहना पड़ा था।

केजरीवाल बिलकुल नहीं चाहेंगे कि ऐसा कोई कानून बने कि भविष्य में फिर कभी यदि उन्हें या उनकी पार्टी के मंत्रियों को जेल जाना पड़ें तो वे पद से हटे। किन्तु अन्य विपक्षी पार्टियों का विरोध वाकइ हैरत की बात हैं। इस विधेयक के और जेपीसी के विरोध का मतलब है कि चोर के दाढ़ी में तिनका है। इस विधेयक को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार और बंगाल दौरे के दौरान विपक्षी पार्टियों पर जमकर निशाना साधा था और कहा था कि जो सरकारें भ्रष्टाचार में लिप्त रहती है वहीं इस विधेयक का विरोध कर रही हैं।

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