Offer From Ruling Party : डूबते जहाज से उड़ते कांग्रेसी

Offer From Ruling Party : डूबते जहाज से उड़ते कांग्रेसी

Offer From Ruling Party : Congressmen flying from sinking ship

Offer From Ruling Party

विष्णुगुप्त। Offer From Ruling Party : डूबते जहाज पर कौन पंक्षी बैठना चाहेगी? कांग्रेस डूबते हुए जहाज के समान है। इसीलिए कांग्रेस से बाहर जाने की होड़ लगी है। जिस पर कांग्रेस दांव लगाती है वही पार्टी छोड़कर चला जाता है। जैसे ही सत्ताधारी दल से कोई ऑफर आता है वैसे ही मजबूत कांग्रेसी भी पार्टी की बुराई कर छोड़ देता हैं। उत्तर प्रदेश में जिन लड़कियों को पोस्टर गर्ल बनाया था उनमें से कई लड़कियां कांग्रेस छोड़ चूकी हैं। कांग्रेस के बड़े नेता आरसीपीएन सिंह पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गये। पिछले समय में कांग्रेस छोडऩे वाले कोई एक नहीं बल्कि दर्जनों नेता हैं।

कुछ तो कांग्रेस छोड़कर केन्द्र में मंत्री और राज्यों में मुख्यमंत्री तक बन चुके हैं। इनमें ज्योतिरादित्य सिंधियां मोदी सरकार में मंत्री हैं तो हेमंता विस्व शर्मा असम के मुख्यमंत्री हैं। जिन राज्यों में कभी कांग्रेस की तूती बोलती थी उन राज्यों में कांग्रेस अब मुख्य विपक्षी पार्टी भी नहीं रही। इतना ही नहीं बल्कि कांग्रेस चैथे-पाचवें नंबर की पार्टी बन गयी है। इसका उदाहरण उत्तर प्रदेश और बिहार है। उत्तर प्रदेश में 1989 और बिहार में 1990 के बाद कांग्रेस सरकार नहीं बना पायी।

तमिलनाडु में अंतिम बार 1962 में कांग्रेस अपनी सरकार बनायी थी। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस 1977 से ही सत्ता से बाहर है। कांग्रेस वहीं पर सत्ता का दावेदार बनती है जहां पर भाजपा का अन्य विकल्प (Offer From Ruling Party) नहीं है। कई राज्यों में तो कांग्रेस से क्षेत्रीय और जातीय पार्टियां भी समझौता नहीं करती हैं, उनकी समझ है कि कांग्रेस के कारण उन्हें नुकसान ही नुकसान होगा। बिहार में लालू प्रसाद यादव की पार्टी इसका खामियाजा भुगत चुकी है। पिछले बिहार विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को जनाधार से बहुत ज्यादा सीटें लालू प्रसाद यादव की पार्टी ने दे दी थी। कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत बुरा हुआ। कांग्रेस के बूरे प्रदर्शन के कारण बिहार में नीतीश कुमार और भाजपा फिर से सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की थी।

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव कांग्रेस के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। कांग्रेस यह समझती है कि उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में अगर उसकी शक्ति बढ़ती है और उसका प्रदर्शन अच्छा रहा तो फिर कांग्रेस पुराने दिनों की ओर लौट सकती है, कांग्रेस फिर से देश की राजनीति की धूरी बन सकती है। इसीलिए कांग्रेस ने जनता द्वारा खारिज कर दिये गये राहुल गांधी की जगह प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी। प्रियंका गांधी में इन्दिरा गांधी की छवि कांग्रेस देख रही है।

प्रियंका गांधी भी बार-बार अपनी दादी इन्दिरा गांधी का उदाहरण देकर यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि उसमें दादी की तरह ही राजनीतिक प्रतिभा है। यह सही है कि प्रियंका गांधी का अंतिम ब्रम्हास्त्र है जिसको कांग्रेस चला चुकी है। सोनिया गांधी का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण अब उनका जनता के बीच बहुत ज्यादा सक्रिय होने की उम्मीद नहीं है जबकि राहुल गांधी फूके हुए कारतूस बन गये हैं। उटपटांग बयानों और अंगभीर सोच के कारण राहुल गांधी जनता के बीच लोकप्रिय नहीं बन पाये। राहुल गांधी का भाषण और बयानबाजी कांग्रेस को ही आहत व नुकसान करता है।

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में प्रियंका गांधी ने मुद्दे तो अच्छे उठाये हैं, कई मुद्दों पर प्रियंका की सक्रियता भी अच्छी और उल्लेखनीय रही है। योगी-भाजपा के पांच साल के शासनकाल के दौरान अखिलेश यादव और मायावती की राजनीतिक सक्रियता बहुत ही सीमित और बयानबाजी की ही रही थी। पर राहुल और प्रियंका ने विपक्ष की भूमिका निभायी। खासकर बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के खिलाफ राहुल-प्रियंका की सक्रियता बहुत ही ज्यादा थी और योगी-भाजपा की परेशानी बढ़ाने वाली थी। पर सोच में एकरूपता नहीं होने के कारण प्रियंका और राहुल बलात्कार के खिलाफ कोई जनांदोलन नहीं तैयार कर सके। राहुल-प्रियंका की सोच में एकरूपता क्यों और कैसे नहीं है? इस पर भी गंभीरता के साथ पड़ताल करने की जरूरत है।

उत्तर प्रदेश में बलात्कार की बढती घटनाओं पर इनकी सक्रियता तो उल्लेखनीय होती है और महिला सुरक्षा इनकी जरूर झलकती है। पर कांग्रेस शासित राज्यों में जब उत्तर प्रदेश से भी बर्बर और अमानवीय घटनाएं घटती हैं, बलात्कार की घटनाएं शर्मसार करती है तो फिर राहुल-प्रियंका की बोली खामोश रहती है। कांग्रेस शासित राज्यों जैसे राजस्थान और पंजाब में बलात्कार की घटनाओं पर भी अगर राहुल और प्रियंका आक्रोश जताते तो फिर विश्वसनीयता बन सकती थी। राजस्थान के प्रतियोगी परीक्षार्थियों के विद्यार्थियों द्वारा लखनउ में कांग्रेस कार्यालय पर धरणा देने जैसे प्रसंग पर खामोशी आत्मघाती जैसी ही है। युवाओं में संदेश यह गया कि सिफ यूपी में ही स्वार्थ की राजनीति के कारण महिला और युवाओं के प्रश्न कांग्रेस उछालती है।

कांग्रेस की (Offer From Ruling Party) इस स्थिति के लिए किसे जिम्मेदार माना जायेगा? सबसे पहले कांग्रेस की इस स्थिति के लिए वंशवादी राजनीति ही जिम्मेदार है। अब सोनिया गांधी खानदान में कोई करिशमा करने की शक्ति नहीं रही। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को नयी पीढ़ी स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं है। इसके अलावा कांग्रेस की मुस्लिम परस्त राजनीति भी जिम्मेदार है। चुनाव के समय में कांग्रेस द्वारा बुर्का का समर्थन करना घाटे का राजनीतिक सौदा है।

पंजाब में कांग्रेस का मुस्लिम नेता का यह कहना कि हिन्दुओं को सभा तक नहीं करने दिया जायेगा, हिन्दुओं के अस्तित्व को सीधे चुनौती तक दे देना और इस पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का खामोश रहना, सीएए कानून के विरोध में खड़े मुस्लिम नेताओं को प्रत्याशी बनाना, हिन्दुत्ववादी को हिंसक और बर्बर बताने आदि वाली चालें कांग्रेस की कब्र खोद रही है। इसका सीधा लाभ भाजपा उठाती है। हिन्दू वोटर कांग्रेस से घृणा करने लगता है। कांग्रेस हिन्दुओं को लगातार दंगाई और हेवान तथा खतरनाक बताती रहेगी और हिन्दू कांग्रेस का वोट करते रहेंगे? यह अब संभव नहीं है। यूपी विधान सभा चुनाव का परिणाम एक बार फिर इस बात का प्रमाण दे देगा।

कांग्रेस की मजबूती कैसे संभव है? कांग्रेस की मजबूती एंथोनी समिति की रिपोर्ट में निहीत है। पर प्रियंका गांधी और राहुल गांधी सहित अन्य कांग्रेसी भी एंथोनी कमिटी की रिपोर्ट पढऩा ही नहीं चाहते हैं। अगर ये एंथोनी कमिटी की रिपोर्ट को पढ़ लें और आत्मसात कर लें तो फिर कांग्रेस मजबूत हो सकती है। एंथोनी कमिटी कहती है कि कांग्रेस को अति मुस्लिम वाद से बचना होगा, हिन्दुओं का भी विश्वास जीतना होगा। सिर्फ मुस्लिम समुदाय के भरोसे कांग्रेस सत्ता हासिल नहीं कर सकती है।

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