Indepth: चावल उपार्जन के नए नियमों से किसानों-मिलरों के लिए नया संकट
प्रमोद अग्रवाल
रायपुर। New crisis for farmers and millers: किसान आंदोलन पर अडिय़ल रुख अख्तियार किए हुए केन्द्र सरकार द्वारा कृषि उत्पादों को लेकर नित नए फरमान जारी किए जा रहे हैं। प्रयास यही किया जा रहा है कि किसी भी तरह से कृषि उत्पाद को खरीदने से बचा जाएं और एन केन प्रकारेण कृषि कार्यों में उद्योगपतियों की भागीदारी को बढ़ाया जाए।
केन्द्र सरकार (New crisis for farmers and millers) ने पूरे देश में एक आदेश जारी कर भारतीय खाद्य निगम के अंतर्गत की जाने चावल की खरीदी पर रोक लगा दी है। जारी आदेश में यह कहा गया है कि वह केन्द्र सीएमआर में चावल का संग्रहण तभी करेगा जबकि उस चावल में प्रति क्विंटल एक किलो फोर्टीफाइड चावल मिलाया जाएं। फोर्टीफाइड चावल एक तरह का उद्योगों में निर्मित चावल है, जो चावल की कनकी को पाउडर बनाकर उसमें पौष्टिक तत्व का मिश्रण कर चावल स्वरूप में बनाया जाता है।
यह आर्टिफिशियल चावल चॉक मिट्टी के रंग का होता है और इसमें प्रति दस ग्राम विटामिन बी9, विटामिन बी 12, आयरन 42.5 मि.ग्रा., फोलिक एसिड 12.5 एमसीजी, विटामिन बी 12 , 1.25 एमसीजी मिला होता है। देश में लगभग 10 से 12 इंडस्ट्रीज इसका उत्पादन कर रही है, जिनकी क्षमता इतनी भी नहीं है कि वे छत्तीसगढ़ जैसे राज्य की भी जरूरत पूरी कर सकें।
केन्द्र सरकार (New crisis for farmers and millers) के इस नियम के लागू होने के बाद से दस तरह के चावल की कीमतों में बेहद उछाल आ गया है। नियम लागू होने के पहले फोर्टीफाइड राइस प्रति किलो पचास रुपए था जो अब 70 से 75 रुपए किलो बेचा जा रहा है।
सवाल यह है कि जब तक यह चावल नहीं मिलाया जाएगा तब तक विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा उपार्जित धान और उससे बनाए चावल का क्या होगा। देश में चावल का उपार्जन बंद हो जाने की स्थिति में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत वितरित होने वाले चांवल की व्यवस्था कैसे होगी? राज्यों द्वारा ब्याज पर ऋण लेकर समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान की मात्रा का निपटान नहीं होने से उसकी वजह से होने वाले घाटे की प्रतिपूर्ति कैसे होगी।
राजनैतिक समीकरण से देखा जाए तो चावल उत्पादक राज्यों- छत्तीसगढ़, ओडिशा, बंगाल, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र आदि में गैर भाजपा सरकारें काबिज हैं और छत्तीसगढ़ में धान के समर्थन मूल्य में राजीव न्याय योजना के तहत ज्यादा कीमत दिए जाने और उसका व्यापक प्रचार होने से केन्द्र नाराज है।
फोर्टीफाइड राइस (New crisis for farmers and millers) बनाने का प्लांट लगाने हेतु लगभग एक से डेढ़ करोड़ की लागत आती है और प्लांट की मशीनों का सबसे बड़ा सप्लायर चीन है। यदि यह नियम लागू रहता है तो भारत को बड़ी मात्रा में चीन से आयात करना होगा। इस सीजन में केन्द्र द्वारा धान संग्रहण के लिए बोरे नहीं देने के कारण चावल उपार्जन नए बोरे के नाम से पहले ही नहीं हो पा रहा था।
यह नियम लागू हो जाने से देश में चावल बनाने वाले राइस मिलरों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। साथ ही इन राइसमिलों में कार्यरत श्रमिकों को भी रोजी रोटी के संकट का सामना करना पड़ेगा। चावल की कनकी से निर्मित होने वाले फोर्टीफाइड राइस के कारण पशु चारे की समस्या भी उत्पन्न होगी। क्योंकि चावल की कनकी मिलना बंद हो जाएगी साथ ही शराब उद्योगों को भी संकट का सामना करना पड़ेगा।
फोर्टीफाइड चावल (New crisis for farmers and millers) की आड़ में चाकी चावल और नरली चावल की मिलावट का दौर भी शुरू होगा और इसकी क्वालिटी का परीक्षण करने वाला क्वालिटी कंट्रोलर भ्रष्टाचार करेगा। बिना किसी पूर्व सूचना और इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किए यह नियम लागू होने से संबंधित राज्य कैसे निपटेंगे और इस गतिरोध का अंत कैसे होग यह भविष्य के गर्भ में है।