नीट परिणाम : सब्र की परीक्षा
NEET result: test of patience: हम एक युवा देश। युवाओं की आकांक्षाओं, उम्मीदों का देश। ये तय है कि युवा ही देश को आगे ले जाएंगे भले ही देश की कमान बूढ़ों के हाथों में हो। देश की 50 फीसदी से ज्यादा आबादी 25 वर्ष से कम उम्र वालों और 65 फीसदी से ज्यादा 35 वर्ष से कम उम्र वालों की है। 2020 में एक भारतीय की औसत उम्र 29 वर्ष आंकी गई थी। जबकि चीन में यह 37 और जापान में 48 वर्ष है। ये आंकड़े बताने के लिए काफी हैं कि हमारा देश कितना जवान है। लेकिन क्या सिर्फ जवान होना ही काफी है? जब तक जोश, उत्साह, उमंग और ज़ज़्बा न हो तो भला क्या जवानी और क्या बुढ़ापा? तो क्या हम अपने इर्दगिर्द जवानों में उम्र से इतर, जवानी के लक्षण पाते हैं? जवाब शायद ही हां में होगा। जोश, उमंग और उत्साह आये भी तो कैसे? यहां तो भविष्य और रोजगार की चिंता ही जवानों को समय से पहले बूढ़ा बना दे रही है। काम धंधा – नौकरियां हैं नहीं, हैं भी तो जबर्दस्त मारामारी है।
अमीरों को छोड़ दें, जिनका धन-भविष्य सुरक्षित है, जिन्हें नौकरी ढूंढने और फिर पाने के बाद उसे निभाने के लिए बरसों बरस एडिय़ां नहीं घिसनी पड़तीं। लेकिन मिडिल क्लास और उससे नीचे वाले युवाओं का जीवन तो संघर्ष से ही भरा रहता है। इस संघर्ष में तकलीफ और बढ़ जाती है जब ठगे जाने का एहसास होता है। और यही एहसास हमारा परीक्षा तंत्र लगातार कराता जा रहा है। पढ़ाई करने के लिए एडमिशन की परीक्षा, पढ़ाई करने के बाद की परीक्षा, फिर नौकरी पाने के लिए परीक्षा। हर जगह सिर्फ होड़ लगी हुई है। होड़ इतनी ज्यादा है कि उसका फायदा उठा कर उसे बिजनेस बनाने वालों, कमाई का जरिया बनाने वालों की भरमार हो गई है। ये भी जरायम का बड़ा फायदेमंद हिस्सा बन चुका है।
इसी का असर है कि देश में अक्सर ही पर्चे लीक होने, नकली परीक्षार्थी यानी मुन्नाभाई पकड़े जाने, रिजल्ट में गोलमाल किये जाने की खबरें आती रहती हैं। जिसके चलते परीक्षा रद्द करनी पड़ती हैं। ताज़ा मामला नीट परीक्षा का है। शायद ही पहले कभी देश के भावी डॉक्टर बनाने वाली परीक्षा में इतना विवाद हुआ हो। पेपर लीक, रिजल्ट में गड़बड़ी, ग्रेस मार्क, क्या क्या विवाद – आरोप नहीं लगे हैं। युवाओं का गुस्सा और फ्रस्ट्रेशन फूटा। सुप्रीमकोर्ट तक में केस गया है लेकिन अभी भी कोई ऐसा समाधान नहीं आया जो युवाओं को संतुष्ट कर सके।
पहले डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए पीएमटी, सीपीएमटी परीक्षा होती थी। 2017 में केंद्र सरकार ने नेशनल टेस्टिंग एजेंसी नाम की एक ऑटोनॉमस संस्था बना दी और राष्ट्र स्तर की सभी प्रतियोगी परीक्षाओं को कराने का काम उसे सौंप दिया। वैसे ऑटोनॉमस होने के बावजूद एनटीए संस्था शिक्षा मंत्रालय के अधीन है और इसके डायरेक्टर जनरल एक रिटायर्ड आईएएस हैं। ठीक चुनाव आयोग की तर्ज पर। खैर, जैसी रवायत है उसी का पालन करते हुए पहले एनटीए ने नीट परीक्षा पर लगे सभी आरोपों को खारिज कर दिया। लेकिन बिहार में तो पुलिस ने नीट पेपर लीक के आरोप में 13 लोग पकड़े हैं। वहां 30 – 30 रुपये में पर्चा बिका था। सो अब चीजें पकड़ में आने के बाद धीरे धीरे गलती मानी जाने लगी है और “किसी को बख्शेंगे नहीं” जैसे स्टैंडर्ड बयान मंत्री महोदय की तरफ से आने लगे हैं। लेकिन जो युवा बरसों की मेहनत करके, पैसा और एनर्जी खर्च करके इस
परीक्षा में बैठे, उनका क्या होगा? उनका तो भरोसा इस सिस्टम से अभी से उठ गया है।
सिर्फ नीट ही पहला मामला नहीं है। इससे पहले उत्तर प्रदेश में पुलिस भर्ती की परीक्षा पेपर लीक होने की वजह से रद कर दी गई। इस परीक्षा में 48 लाख परीक्षार्थियों ने भाग लिया था। उनपर क्या बीत रही है ये आप खुद अंदाज़ा लगा सकते हैं। ये भी जान लीजिए कि बीते पांच वर्षों में देश के 15 राज्यों में नौकरी की भर्ती वाली परीक्षाओं में पर्चा लीक के 41 मामले पाए गए थे। जो मामले पकड़ में नहीं आये उनका तो कहना ही क्या।
2022 में रेलवे भर्ती परीक्षा के परिणामों में गड़बड़ी की शिकायत को लेकर खूब हिंसक बवाल हुआ था। इस परीक्षा में लगभग 35,200 से अधिक पदों के लिए 7,00,000 से ज्यादा उम्मीदवार बैठे थे। राजस्थान में 2018 के बाद से 12 भर्ती परीक्षाएं रद की जा चुकी हैं। कई परीक्षा तो आखिरी घड़ी में रद की गईँ। क्यों? वही पेपर लीक का रोग। गुजरात में 2015 के बाद से राज्य बिना पेपर लीक के एक भी भर्ती परीक्षा आयोजित करने में सक्षम नहीं हुआ है।
मध्यप्रदेश के व्यापम स्कैम की परतें तो आज तक नहीं खुल सकीं हैं। 2013 में इसका भंडा फूटा था। हजारों नौकरियां फर्जी तरीकों से हासिल की गईं, कितने ही मेडिकल एडमिशन भ्रष्ट तरीके से लिये गए। 13 तरह की परीक्षाओं को आयोजित करने वाले व्यापम संगठन में क्या क्या नहीं हुआ।
घोटाले में नेता, हर स्तर के अधिकारी और व्यवसायी शामिल थे। इस स्कैम ने दर्जनों लोगों की जान तक ले ली है। 2022 में सीबीआई ने आईआईटी में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा में सेंध लगाने के आरोप में एक रूसी हैकर को गिरफ्तार किया था। ये हैकर किसी कोचिंग संस्थान के लिए काम करता था। शायद दुनिया में भारत ही एकमात्र देश है जहां परीक्षा में बेईमानी के खिलाफ केंद्रीय और राज्यों के कानून हैं जिनमें सख्त सजाओं का प्रावधान है। 2023 में उत्तराखंड और गुजरात ने सख्त कानून बनाया।
राजस्थान, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश भी ऐसे कानून बना चुके हैं। राज्य ही नहीं, केंद्र सरकार ने सरकारी नौकरियों और सार्वजनिक कॉलेजों में प्रवेश के लिए परीक्षाओं में नकल रोकने के लिए “एग्जाम माफिया” के खिलाफ एक सख्त कानून बनाया है जिसके तहत तीन से 10 साल की जेल की सजा का प्रावधान है। इसमें दस लाख रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक का जुर्माना भी है।
माफिया को टारगेट करने वाला कानून केंद्र सरकार और उसकी परीक्षण एजेंसियों द्वारा आयोजित परीक्षाओं पर लागू है। अब इस कानून की परीक्षा की घड़ी है क्योंकि नीट एक संघीय परीक्षा है जिसे संघीय एजेंसी यानी एनटीए ने कराया है। सो क्या एनटीए के जिम्मेदारों पर नया कानून लगाया जाएगा? सवाल ये भी है कि क्या सिर्फ कानून बनाने, सख्त सजा बनाने से बीमारी ठीक हो जाएगी। शायद नहीं।
क्योंकि हर अपराध के लिए हमारे पास पहले से ही ढेरों कानून हैं फिर भी कौन से अपराध घटे हैं? अपराध खत्म होना तो बहुत दूर की बात है। सज़ा के सिस्टम पर संदेह इसलिए उपजता है क्योंकि जब भी पेपर लीक होते हैं, रिजल्ट में बेईमानी पकड़ी जाती है तब जो भी धरपकड़ होती है, उसमें बहुत निचले स्तर के कर्मचारी और उसी लेवल के धंधेबाज धरे जाते हैं। परीक्षा बोर्ड के आला अधिकारियों पर कोई आंच नहीं आती। जिनकी जिम्मेदारी थी कि परीक्षा एकदम फूलप्रूफ रहे उनको छुआ तक नहीं जाता। ये पहले ही मान लिया जाता है कि परीक्षा या भर्ती बोर्डों के आला अफसर बेदाग होते हैं, अपराध करने वाले नीचे के होते हैं। परीक्षा कराने वाले का बहुत ऊंचा स्थान होता है।
एक जज की तरह। उसे गलत और सही का निर्णय लेना होता है। इसीलिए परीक्षा का पूरी तरह निष्पक्ष, स्वतंत्र और बेदाग होना परम् आवश्यक है। लेकिन ये असलियत से कोसों दूर नजर आती है। युवा जब हताश निराश हो जाते हैं, जब सिस्टम से उनका भरोसा उठ जाता है, जब उन्हें नौकरी पाने के लिए गलत रास्तों को अख्तियार करना पड़ता है, तब जब भी वो इस सिस्टम का हिस्सा बनते हैं तो अपना बदला भ्रष्टाचार करके इस समाज से निकालते हैं। ये चक्र किसी समाज और देश को न कभी सफल-संभ्रांत-सुव्यवस्थित बना पाया है न कभी बना पायेगा।
युवाओं का आक्रोश इसी लोकसभा चुनाव में साफ साफ नजर आया है। उन्होंने या तो वोट ही नहीं डाले और अगर डाले भी तो सत्तापक्ष के खिलाफ जा कर डाले। ये सब्र की परीक्षा का कालखंड है। इसे समझ जाएंगे तो आगे बढ़ पाएंगे नहीं तो बर्बाद होने से कोई परीक्षा रोक नहीं पाएगी।