नवरात्रि 2024: घर में सुख-समृद्धि के लिए घटस्थापना से पहले करें ये 10 अहम बदलाव !

नवरात्रि 2024: घर में सुख-समृद्धि के लिए घटस्थापना से पहले करें ये 10 अहम बदलाव !

Navratri 2024: Make these 10 important changes before Ghatasthapana for happiness and prosperity at home!

Navratri 2024

Navratri 2024: हिंदू घर में मंदिर होता है और भगवान की नियमित पूजा भी निर्धारित होती है। कुछ लोग जल्दी में होते हैं और कुछ लोग पूजा-पाठ में घंटे-दो-घंटे बिता देते हैं। जैसा कि संत ज्ञानेश्वर कहते हैं, भगवान के पास एक क्षण भी खड़े रहो, तो मुक्तिदायक साधिया! बेशक दिल से की गई प्रार्थना हमें बचा लेगी। फिर अपनी पसंद के अनुसार कितना भी समय देना चाहिए। यह याद रखना चाहिए कि शुद्ध मूल्य महत्वपूर्ण है। साथ ही भगवान की पूजा करते समय गलतियों से बचना चाहिए और नियमों का पालन करना चाहिए! नवरात्रि 3 अक्टूबर से शुरू हो रही है, इसलिए घटस्थापना 2024 से पहले दिए गए बदलाव जरूर कर लें।

देवपूजा वैसे तो भगवान की आराधना है, लेकिन यह मन को एकाग्र करने का उपचार है। इसके पीछे का उद्देश्य भगवान को धूप, दीप, अगरबत्ती, गंध, अक्षत, पंचामृत स्नान कराकर पुष्प प्रवाहित होने तक भगवान की आराधना में मन को लगाना है। मन में चल रहे विचारों को शांत करने के लिए भजन-कीर्तन करना या सुनना शामिल किया जाता है। इस प्रकार से भगवान की पूजा करने पर ही आपको भगवान की पूजा का फल मिलेगा। घर में सुख-समृद्धि आती है। आइए जानते हैं उसके लिए 10 महत्वपूर्ण नियम।

देवपूजा (Navratri 2024) से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। इस ऊर्जा के अधिक कार्य करने के लिए मंदिर उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा में होना चाहिए। यदि संभव न हो तो उत्तर दिशा में उत्तर होना चाहिए। बीम की दिशा भी जांचें और आवश्यक परिवर्तन करें। भगवान की पूजा करते समय सदैव आसन ग्रहण करें। मंदिर अधिमानत: जमीन पर होना चाहिए। यदि जगह की कमी के कारण दीवार पर लगा हो तो खड़े होकर भी पैरों के नीचे बैठना चाहिए। अन्यथा आपका अर्जित पुण्य व्यर्थ चला जाता है।

हल्दी कुंकु और अक्षत जो भगवान को चढ़ाए जाते हैं उन्हें अलग रखना चाहिए और हल्दी कुंकु जो हम खुद को लगाते हैं या अक्षत के लिए उपयोग करते हैं उन्हें अलग रखना चाहिए। अक्षत होना चाहिए अर्थात अक्षत के रूप में चावल के दानों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। साथ ही सूखे माथे से भगवान की पूजा न करते हुए माथे पर गंध और कुंकम लगाएं और फिर पूजा के लिए बैठें। भगवान को स्नान कराते समय कलश से पंचपात्र में जल लें और दोनों में तुलसी के पत्ते डालें। देवताओं को जल डालकर स्नान कराएं। फिर साफ पानी से बूंद-बूंद करके पंचामृत या दूध से स्नान कराने के बाद देव को पोंछकर देव में रख दें।

पूजा के बर्तन तांबे, पीतल, चांदी या पंचधातु (Navratri 2024) से बने होने चाहिए लेकिन कांच, स्टील, एल्यूमीनियम का उपयोग नहीं करना चाहिए। फैंसी उपकरणों का उपयोग करने की तुलना में टिकाऊ उपकरणों का उपयोग करना बेहतर है। धातु के बर्तनों को समय-समय पर साफ करना भी आसान होता है। भगवान के सामने दीपक या समई को साफ रखें। ध्यान रखें कि इसमें गंदगी न हो। समय-समय पर बाती को बदलते रहें। शुद्ध तेल, घी का प्रयोग करें। एक ही लकड़ी से तेल और घी का दीपक न जलाएं। मंदिर में मोमबत्तियों का प्रयोग न करें।

सुबह घी निरंजन और शाम को समई तेल लगाएं। यदि दोनों दीपक एक ही समय जलाने हों तो भी दीपक से दीपक न जलाएं। एक अलग छड़ी का प्रयोग करें। यदि प्रतिदिन दीपक जलाना संभव न हो तो सप्ताह में एक बार या अमावस्या, पूर्णिमा यानी हर पखवाड़े में दीपक जलाएं। इसका मतलब है कि आपको अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ेगी और लाइटें साफ रहेंगी।

मंदिर में एक ही देवता की एक से अधिक मूर्ति न रखें। जिन मूर्तियों का उपयोग पूजा में नहीं किया जाता है उनका समय पर निपटान कर दें। मंदिर (Navratri 2024) में कम से कम पांच मूर्तियां रखें। बालकृष्ण, अन्नपूर्णा, शिवलिंग, गणपति, दत्तगुरु। इसके अलावा, यदि अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ या चित्र हैं, तो उन मूर्तियों को प्राथमिकता दें और कुछ लेकिन महत्वपूर्ण मूर्तियाँ रखकर उनकी पूजा करें। देवघर में मूर्ति या छवि क्षतिग्रस्त नहीं होनी चाहिए। यदि मूर्तियां टूटी हुई स्थिति में हैं तो उन्हें या तो विसर्जित करना या उसी समय उनकी मरम्मत कराना जरूरी है।

भगवान को जो फूल चढ़ाए जाते हैं उन्हें तीन अंगुलियों अंगूठे, मध्यमा और अनामिका का प्रयोग करके चढ़ाना चाहिए। फेंके हुए फूलों को हटा देना चाहिए। ताजे फूल बहने चाहिए। ताजे भोजन का भोग लगाना चाहिए। यदि और कुछ संभव न हो तो गुड़ वाले नारियल, गुड़ के दाने या सिर्फ दूध ही भगवान को अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं। देवारा में अन्नपूर्णा की मूर्ति को चावल की माला पहनाकर उसमें स्थापित करना चाहिए। अनाज उर्वरता का प्रतीक है। हम देवी को जो कुछ भी अर्पित करते हैं, वह उसे चार गुना होकर लौटाती है। अत: देवी का आसन धन-धान्य से परिपूर्ण होना चाहिए।

मंदिर में भगवान की मूर्ति (Navratri 2024) के साथ-साथ शंख की भी पूजा करनी चाहिए और शंख में जल भरकर पूरे मंदिर घर में छिड़कना चाहिए और जितना संभव हो उतनी ऊंची आवाज में शंख ध्वनि का उच्चारण करना चाहिए। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है। सकारात्मकता पैदा करता है। भगवान की पूजा करते समय स्तोत्र गाना चाहिए, मंत्रों का जाप करना चाहिए, 108 मनकों की माला जपनी चाहिए और कम से कम एक आरती बोलकर पूजा समाप्त करनी चाहिए। इन सभी चीजों में घंटे-दो घंटे नहीं लगते, थोड़ी सी तैयारी, सामग्री की योजना और शुद्ध-सात्विक भावना से देवपूजा यथोचित रूप से संपन्न हो सकती है।

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