Navpradesh Political: बघेल वर्सेस बघेल का नरेटिव सेट कौन कर रहा है?
यशवंत धोटे
रायपुर/नवप्रदेश। bhupesh baghel and vijay baghel: छत्तीसगढ़ की राजनीति में यह जग जाहिर हैं कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और भाजपा सांसद विजय बघेल रिश्ते में चाचा भतीजा होने के बावजूद वैचारिक तौर पर दोनो एक-दूसरे के घोर विरोधी हैं। दोनों की पारिवारिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि अलग-अलग दलीय विचारधारा की है। लेकिन दोनों नेताओं के राजनीतिक गुरू चन्दूलाल चन्द्राकर और वासुदेव चन्द्राकर रहे हैं।
अलबत्ता सांसद विजय बघेल के पिता नम्मूलाल बघेल जनंसघ से जुड़े थे जबकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिता नंदकुमार बघेल खाटी समाजवादी विचारधारा के हैं। 90 के दशक में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का राजनीतिक उद्भव युवक कांग्रेस की राजनीति से हुआ, वहीं विजय बघेल बीएसपी में नौकरी करते हुए 1985 से ही ब्लाक कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारी बन गए थे।
1993 में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पहली बार विधायक चुने जाने के बाद से ही दोनों परिवारों या यू कहे भूपेश बघेल और विजय बघेल के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंन्दिता परवान चढ़ रही थी । 1993 और 1998 के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भूपेश इतने ताकतवर तो हो ही गए थे कि अपने राजनीतिक प्रतिद्वन्दी को नाको चने चबवा सके। जून 1999 में अविभाजित मध्यप्रदेश की सरकार ने चरौदा नगर पालिका का चुनाव घोषित किया तो उसमें विजय बघेल ने कांग्रेस से टिकिट मांगी लेकिन नहीं मिली। नतीजतन निर्दलीय लड़े और जीत भी गए।
नये राज्य में पहला विधानसभा चुनाव 2003 में हुआ और एनसीपी की टिकिट से विजय बघेल चुनाव लड़े लेकिन भूपेश बघेल सें हार गए। इस समय पाटन में भाजपा की सबसे बुरी हार हुई। एनसीपी दूसरे और भाजपा तीसरे नंबर पर थी। लेकिन 2004 में पूर्व सांसद ताराचंद साहू की पहल पर विजय बघेल भाजपा में शामिल हुए। उन्होंने दूसरा विधानसभा चुनाव भाजपा से 2008 में लड़ा और जीत गए। तीन चुनावों के बाद यह भूपेश बघेल की पहली हार थी।
हालांकि 2013 में फिर दोनों आमने-सामने लड़े लेकिन इस बार फिर भूपेश बघेल चुनाव जीते और 2013 में प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष बन गये । उन पांच सालों में भूपेश बघेल ने पूरे प्रदेश की राजनीतिक नब्ज को पकड़ा और 2018 के चुनाव परिणाम के बाद बनी बम्पर जनादेश वाली कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री बन गए। 15 साल के भाजपाई तिलिस्म को नेस्तनाबूद करके भूपेश बघेल बतौर टीम लीडर 2023 के चुनाव में पूरी सत्ता और संगठन के साथ फिर मैदान में है।
इधर विजय बघेल का असल राजनीतिक उद्भव कांग्रेस से बाहर निकलने के बाद हुआ। भले ही वे 2013 का विधानसभा चुनाव हार गए और 2018 में उन्हें भाजपा ने कहीं से भी टिकिट नहीं दी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में दुर्ग लोकसभा सीट से सबसे अधिक 3 लाख 93 हजार वोट से चुनाव जीते। लेकिन भाजपा के फ्रन्टलाईनर अगड़े वर्ग के नेताओ की जमात ने विजय बघेल को पनपने ही नहीं दिया। लेकिन पिछले पांच साल में भूपेश बघेल के मुख्यमंत्रीत्व काल में स्थानीय मुद्दों को लेकर जो जागृति आई उसमें उन्होंने अपने को मूल छत्तीसगढ़ नेता के रूप में स्थापित कर दिया।
इधर भाजपा का अन्दरूनी सर्वे बार बार इस बात को बता रहा है कि जब तक किसी स्थानीय नेता को सामने नहीं लाया जाता चुनाव जीतना मुश्किल है । हालांकि भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अरूण साव (साहू) और नेता प्रतिपक्ष के रूप में नारायण चन्देल (कुर्मी) को सामने किया है । लेकिन अब तक कोई करिश्मा होता नहीं दिख रहा है।
अब भाजपा ने सांसद विजय बघेल को घोषणा पत्र समिति का संयोजक बना दिया है। इस पर कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी महासचिव शैलजा से पत्रकारों ने सवाल पूछा तो उनका एक जवाब था कि ”लगता है भाजपा प्रदेश में बघेल वर्सेस बघेल करना चाहती है लेकिन हमारे बघेल भाजपा के बघेल से बेहतर हैं।” बस सवाल यही से खड़ा होता है कि आखिर बघेल वर्सेस बघेल का ये नरेटिव सेट कौन कर रहा है ?