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हल्कट राजनीति का चिरकुट चेहरा नवजोत सिंह सिद्धू

Navjot Singh Sidhu, the face of Halkat politics

Navjot Singh Sidhu

यशवंत धोटे, रायपुर/नवप्रदेश। क्रिकेट से कामेडी और कामेडी से राजनीति में आए नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) हल्कट राजनीतिज्ञों के चिरकुट चेहरे के रूप में नए ब्रांड एम्बेसडर बनकर उभरे हैं। उनकी निम्न कोटी की चंचल वृति और राजनीतिक दलों की बौद्धिक निर्धनता हल्कट राजनीति का एक नया काक्टेल वर्जन है।

लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदलने की राजनीतिक कवायद में दलों की बौद्धिक निर्धनता का उतना ही अहम रोल है जितना कि सिद्धू जैसे चंचल वृति के अगंभीर, अवसरवादी तत्वों का।

क्रिकेट में असफल हो चुके इस सख्श ने पहले कामेडी और फिर राजनीति में हाथ आजमाया। कभी कपिल शर्मा के कामेडी शो तो कभी क्रिकेट के कमेन्ट्री बाक्स में अपने फूहड़ जुमलों से एक अगंभीर किस्म के वर्ग में लोकप्रियता पा चुके सिद्धू को राजनीति में वह संभावना दिखी जो आमतौर पर अपनी फील्ड में नाकाम हो चुके लोगो को दिखती है।

Navjot Singh Sidhu

अजहरूददीन की कप्तानी में ओपनर बैट्समैन रहे सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) की अपनी ही क्रिकेट टीम के साथ बदतमीजी की शुरूआत 1996 में हुई। टेस्ट सीरीज खेलने इंग्लैंड पंहुची भारतीय क्रिकेट टीम को बिना बताए स्वदेश वापस लौटे सिद्धू ने न केवल देश बल्कि पूरे क्रिकेट बिरादरी की भद्द पिटवा दी थी। दरअसल सीरीज के पहले होने वाले प्रैक्टिस मैच में ही फेल हो चुके सिद्धू को सीरिज में खेलने का अवसर नहीं मिला तो नाराज सिद्धू टीम को बिना बताए स्वदेश वापस आ गए थे।

अपनी चंचल वृति के चलते गैर इरादतन हत्या के आरोपी भी रहे। उन्हें कोर्ट से 3 साल की सजा मिली। 2004 में भाजपा की टिकिट से अमृतसर से चुनाव लड़े जीते भी लेकिन सजा के बाद 2006 में इस्तीफा दे दिया। इसी दरम्यान सुप्रीम कोर्ट ने जब उनकी सजा पर रोक लगाई तो 2007 में फिर उपचुनाव में जीते। 2009 मे आम चुनाव में जीते। लेकिन 2014 में जब भाजपा ने टिकिट नहीं दी तो अपनी ही पार्टी के प्रत्याशी अरूण जेटली को हराने के लिए पूरी ताकत लगाई और सफल हुए।

Navjot Singh Sidhu

इसके बावजूद भाजपा ने 2016 में सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को राज्यसभा में भेजा लेकिन अस्थिर चित्त के इस सख्श को भाजपा रास नहीं आई और कांग्रेस में शामिल हो गए। दरअसल वे पंजाब के मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने उन्हें अपने मंत्रीमंडल में शामिल किया। साल आते-आते मंत्रीमंडल से इस्तीफा देकर कैप्टन को हटाकर मुख्यमंत्री बनने की मुहिम में जुटे। अन्ततः कांग्रेस ने उन्हें पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाकर आसन्न चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी। लेकिन दलित वर्ग के चरणसिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने से अरमानों पर पानी फिरता देख फिर कांग्रेस को ठीक चुनाव के मुहाने पर गच्चा देकर इस्तीफा दे दिया।

हालांकि कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने सिद्धू के कांग्रेस प्रवेश के साथ ही कहा था कि अस्थिर चित्त वाला यह आदमी न केवल कांग्रेस का नुकसान करेगा बल्कि ज्यादा दिन कांग्रेस में भी नहीं रहेगा। फिलहाल सिद्धू तो कांग्रेस में है लेकिन और कितना नुकसान करेगा न कांग्रेस जानती है और न ही अमरिन्दर सिंह । मीडिया की भाषा में सिद्ध को यह कह सकते है कि विवादों से उनका पुराना नाता है लेकिन अब मीडिया कह रहा है कि सिद्धू अपने आप में एक विवाद है।

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