Nandkumar Baghel Dies At The Age Of 89 : सैद्धांतिक अंतर के बावजूद बड़े दाऊ को अपने हाथों से भोजन कराकर ही दम लेते थे भूपेश

Nandkumar Baghel Dies At The Age Of 89 : सैद्धांतिक अंतर के बावजूद बड़े दाऊ को अपने हाथों से भोजन कराकर ही दम लेते थे भूपेश

Nandkumar Baghel Dies At The Age Of 89 :

Nandkumar Baghel Dies At The Age Of 89 :

बेटी के विदेश से आने के बाद 10 जनवरी को गृह ग्राम कुरुदडीह में होगा अंतिम संस्कार, नंदकुमार बघेल की पार्थिव देह पाटन सदन में अंतिम दर्शन के लिए रखी गई है

रायपुर/नवप्रदेश। Nandkumar Baghel Dies At The Age Of 89 : पिता और पुत्र में चाहे जितना भी सैद्धांतिक व वैचारिक अंतर रहा हो, लेकिन बड़े दाऊ यानि कि नंदकुमार बघेल को खासी व्यस्तता के बाद भी खाना खिलाने समय पर अस्पताल पहुंच जाते थे छोटे दाऊ पूर्व CM भूपेश बघेल। जिद करके कुछ कौर अपने हाथों से खिलाकर ही दम लेते थे भूपेश। धर्म, राजनीति और सिद्धांतों की बड़ी खाई के बावजूद पुत्र का अपने पिता को भोजन कराने की ज़िद भी आज सभी जानने वालों की जुबान पर थी।

बताते हैं कि अस्पताल में तीन महीने से भर्ती पिता नंदकुमार को प्रायः रात का खाना खिलाने भूपेश ही जाते थे। पूर्व मुख्यमत्रीं की व्यस्तता के बाद भी भूपेश इसलिए जाते थे क्योंकि बड़े दाऊ जी से जिद में पुत्र भूपेश भी कुछ कम नहीं माने जाते। इसलिए पिता जल्दी स्वस्थ्य हो जाएं करके भूपेश उन्हें भोजन कराने पहुंच जाते थे। बताते हैं जब वो दौरे पर रहते तब यह जिम्मा पत्नी और बेटे को सौंपकर बकायदा फोन कर भोजन करने के लिए कहते।

आज छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल के पिता नंदकुमार बघेल की पार्थिव देह चीर निद्रा में पाटन सदन में अंतिम दर्शन के लिए रखी गई है। भूपेश बघेल भी दिल्ली से रायपुर आते ही पिता की पार्थिव देह के दर्शन करने पहुँच गए। बता दें नंदकुमार बघेल का 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। सोमवार सुबह 6 बजे उन्होंने रायपुर के बालाजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे पिछले 3 महीने से बीमार चल रहे थे।

निवास पर परिवार के लोगों के साथ बड़ी संख्या में कांग्रेस नेता भी मौजूद हैं। बेटी के विदेश से आने के बाद 10 जनवरी को गृह ग्राम कुरुदडीह में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

बसपा और जनता दल से जुड़े रहे नंद कुमार बघेल की पहचान, पिछड़े वर्ग के कट्टर समर्थक और ब्राह्मणवाद के कट्टर विरोधी नेता के तौर पर रही है और अपनी सैद्धांतिक लड़ाइयों को लेकर वे बेहद गंभीर माने जाते रहे। पिता पुत्र की धार्मिक मान्यता में मतभेद देखने को मिलता था।

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