साहस से अंधेपन को दी मात, संघर्ष से संवारी जिन्दगी
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अदम्य साहस से अक्षमता को सक्षमता में परिवर्तित करने वाला- खेम सिंह निर्मलकर
सुशील शुक्ला
मुंगेली। जहां एक ओर प्रशासन द्वारा आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वावलंबन योजना के तहत कौशल उन्नयन योजना जैसी योजना का संचालन किया जा रहा है वहीं हितग्राहियों को आत्म निर्भर बनाने का प्रयास वर्षो पूर्व से प्रारंभ किया जा चुका है। अविभाजित बिलासपुर जिले के सबसे बड़ी तहसील मुंगेली में संचालित मिशन अस्पताल के संचालकों के द्वारा यह योजना संचालित की जाती थी जिसमें लोगों को आत्म निर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता था। वर्षो पूर्व दाऊपारा निवासी खेमसिंह निर्मलकर 6 वर्ष की उम्र में अपनी आंखों की रोशनी खो देने के बाद भी इन्होंने हार नही मानी और ब्लाइंड स्कूल में अध्यन करते हुए केनिंग का कार्य सीखा। अंग्रेजों द्वारा संचालित इस प्रशिक्षण शिविर में हुनर सीखकर आज भी अपना जीवन यापन कर रहा है।
जीवन की महत्वपूर्ण विभूतियों में एक साहस भी है। जीवन के लिये शरीर बल, मनोबल, धन बल की तुलना में भी प्रगतिशीलता एवं सफलता के लिए साहस को अधिक आवश्यक माना गया है। डरपोक प्रकृति के कायर, भयभीत, आशंका ग्रस्त व्यक्ति अवसर रहने पर भी असमंजस की स्थिति में सही निर्णय नही ले पाते और लाभ हानि की जोड़ बाकी करते कराते ऐसे ही दिन गुजारते रहते हैं। जब कभी भी एक कदम आगे बढऩे की हिम्मत होती है, तो दूसरे ही क्षण दो कदम पीछे हटने के विचार से ग्रसित होकर आगे नही बढ़ पाते है। जबकि साहसी व्यक्ति आत्मविश्वास पूर्वक आगे बढ़ते हैं और खतरों से खेलते हुए नाव को भंवर वाली नदी पार करते हुए इस पार से उस पार तक धकेल ले जाने में सफल हो जाते है। ऐसे प्रसंगों में उसका सच्चा साथी और सहायक एकमात्र साहस ही होता है। ऐसी ही एक शख्सियत छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के दाऊपारा में है जो शारीरिक रूप से अक्षम होने के बाद भी मानसिक रूप से सशक्त है। यह शख्स जो मन की आंखों से दुनिया को देखता है फिर परखता है। इनका नाम है खेमसिंह निर्मलकर। 6 वर्ष की उम्र में अपनी आंखों की रोशनी खो देने के बाद भी इन्होंने हार नही मानी और ब्लाइंड स्कूल में अध्यन करते हुए केनिंग का कार्य सीख कर इसी को ही आपनी आजीवका का साधन बना लिया। ईश्वर ने उनकी आंखें जरूर छीन ली मगर आत्म सम्मान के साथ जीने का जज्बा उनमे आज भी कायम है। दाऊपारा के रहने वाले 65 वर्ष खेम सिंह निर्मलकर की पढ़ाई लिखाई ब्लाइंड स्कूल में हुई है। 1964 में पहली क्लास से 8 वी तक ही पढ़ाई हो पाई। उस समय मुंगेली 8 वी तक का ही स्कूल था। इस कारण से आगे नही पढ़ पाये। वह हाथ केनिंग एंव कृष्ण साव धर्मशाला में केयर टेकर की नौकरी भी करते हैं। नगर में आज वह पहचान के मोहताज नहीं हैं। खेम सिंह निर्मलकर का कहना है कि मेरी उम्र 6 वर्ष की थी ,जब मुझे चेचक माता आया तो मेरी आँख की रोशनी चली गई । उसके बाद मैं मुंगेली ब्लाइंड स्कूल पढ़ाई किया। पढ़ाई करते करते मैं केनिंग का काम भी सीखा। असक्षमता को अदम्य साहस के चलते सक्षमता में परिवर्तित कर मिशाल कायम कर रहे।