33 लाख से अधिक बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित, शीर्ष पर ये राज्य…कोंडागांव ने पेश की मिसाल
UNESCO : शिक्षा ढांचे में जलवायु परिवर्तन पर्याप्त रूप से शामिल नहीं
नई दिल्ली/नवप्रदेश। UNESCO : जी हां, 33 लाख से अधिक बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित है, जिसमें शीर्ष पर महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात शामिल है। ये हम नहीं, बल्कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक आरटीआइ के जवाब में कहा। इस जवाब में कहा गया है कि भारत में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं और उनमें से आधे से अधिक गंभीर रूप से कुपोषित श्रेणी में आते हैं। इनमें महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात शीर्ष पर हैं।
जबकि छत्तीसगढ़ में कोरोना काल के दौरान कुपोषण में व्यापक कमी आई है। धुर नक्सल प्रभावित एवं आदिवासी बाहुल्य कोंडागांव जिले में कुपोषण के खिलाफ जंग लड़ी जा रही है। कोरोना काल के दौरान मात्र डेढ़ वर्ष में ही जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या में 41.54 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। कम समय में ही जिले ने विभागों के समन्वित प्रयास, बेहतर रणनीति और मॉनिटरिंग के साथ उपलब्धि हासिल कर एक उदाहरण प्रस्तुत किया है।
कोरोना महामारी में बढ़ा पोषण संकट
मंत्रालय ने कहा कि कोरोना महामारी से गरीबों में सबसे गरीब व्यक्ति में स्वास्थ्य और पोषण संकट और बढ़ सकता है। मंत्रालय का अनुमान है कि 14 अक्टूबर, 2021 तक देश में 17.76 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। इसके अलावा 15.46 लाख बच्चे मध्यम तीव्र कुपोषित हैं।प्रेट्र द्वारा आरटीआइ के तहत पूछे गए एक सवाल के जवाब में मंत्रालय ने कहा कि 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से संकलित आंकड़ों के मुताबिक कुल मिलाकर 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। पोषण के नतीजों की निगरानी के लिए पिछले साल बनाए गए पोषण ट्रैकर एप के जरिये कुपोषित बच्चों की संख्या का पता चला है। मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, आंगनबाड़ी प्रणाली में 8.19 करोड़ बच्चों में से केवल 33 लाख कुपोषित हैं, जो महज 4.04 प्रतिशत हैं।
एक साल में 91% की बढ़ोतरी
कुपोषित बच्चों के आंकड़ों का पिछले साल से तुलना करने पर पता चलता है कि गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या में एक साल में 91 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। नवंबर 2020 में गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या 9.27 लाख थी, जो 14 अक्टूबर, 2021 को बढ़कर 17.76 लाख हो गई। हालांकि, यहां ध्यान देने की बात यह है कि ये दोनों आंकड़े डाटा संग्रह की अलग-अलग प्रणालियों पर आधारित हैं।
यूनेस्को ने यह कहा
यूनेस्को (UNESCO) की ‘ग्लोबल एजुकेशन मानिटरिंग’ (जीईएम) रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन को अभी तक पर्याप्त रूप से शिक्षण ढांचे में शामिल नहीं किया गया है और केवल 50 प्रतिशत देश अपने राष्ट्रीय स्तर के कानूनों, नीतियों या शिक्षण योजनाओं में इस विषय पर जोर देते हैं। जीईएम टीम ने ग्लासगो में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की पृष्ठभूमि में ‘प्रोफाइल्स एनहांसिंग एजुकेशन रिव्यूज’ (पीईईआर) जारी किए हैं। इनका उद्देश्य शिक्षा में प्रमुख विषयों पर देशों की नीतियों एवं कानूनों की व्याख्या करना है ताकि राष्ट्रीय शिक्षण रणनीतियों के क्रियान्वयन पर साक्ष्य आधार को सुधारा जा सके।
कोंडागांव ने प्रस्तुत किया उदाहरण
भारत में कुपोषण अब भी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। कोविड महामारी ने भी देश में कुपोषण की स्थिति को और चिंताजनक बना दिया है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 की रिपोर्ट के अनुसार भारत 27.2 के स्कोर के साथ 107 देशों की लिस्ट में 94वें नंबर पर है, जिसे बेहद गंभीर माना जाता है।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अनुसार देश में 9.3 लाख से अधिक ‘गंभीर कुपोषित’ बच्चों की पहचान की गई है। वहीं, देश के आदिवासी बाहुल्य राज्य (UNESCO) छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के एक छोटे से जिले कोंडागांव ने दिखाया है कि कैसे विभिन्न विभागों के परस्पर समन्वय और एक दूरदर्शी माध्यम से कुपोषण से लडऩे की दिशा में एक व्यवस्थित दृष्टिकोण अच्छा प्रभाव डाल सकता है और एक बेंचमार्क स्थापित कर सकता है।