संपादकीय: हंगामों की भेंट चढ़ता संसद का मानसून सत्र

संपादकीय: हंगामों की भेंट चढ़ता संसद का मानसून सत्र

Monsoon session of Parliament marred by uproar

Monsoon session

Monsoon session: पिछले कई सत्रों की तरह ही संसद का मानसून सत्र भी हंगामों की भेंट चढ़ता नजऱ आ रहा है। नई लोकसभा का यह पहला सत्र जिसमें बजट पेश किया गया है।

इसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बजट पर सार्थक चर्चा होने की उम्मीद थी लेकिन अब तक बजट पर चर्चा होने की जगह सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच नूरा कुश्ती ही देखने को मिल रही है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने बजट पर अपने विचार व्यक्त करते हुए बजट में भी जातिवाद ढूंढ निकाला।

नतीजतन सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जाति जनगणना को लेकर तिखी नोकझोंक हो गई। भाजपा सांसद पूर्व मंत्री अनुराग ठाकुर ने यह कहकर विवाद को और बढ़ा दिया कि जिनकी जाति का पता नहीं है वे जातिय जनगणना की बात कर रहे है।

अनुराग ठाकुर ने किसी का नाम नहीं लिया था लेकिन नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने उनकी इस टिप्पणी को अपने उपर कटाक्ष समझ लिया और यह बयान दिया कि यह उनका अपमान है। यही नहीं उन्होंने इसे गाली भी करार दिया और कहा कि उन्हें चाहे जितनर भी गालियां दी जाए वे इसे खुशी खुशी स्वीकार करेंगे लेकिन जाति जनगणना की मांग उठाते रहेंगे।

राहुल गांधी के समर्थन में समाजवादी पार्टी के सांसद अखिलेश यादव ने भी मोर्चा संभाला और उन्होंने अनुराग ठाकुर के बयान की निंदा करते हुए यह तक कह डाला की आप कौन होते है ।

किसी की जाति पूछने वाले इसके बाद मामले ने उस समय और तूल पकड़ लिया जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनुराग ठाकुर के बयान को अपने ट्विटर हैंडल पर जारी कर दिया। इससे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिाकार्जुन खडग़े भड़क गए और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर जमकर निशाना साधा।

कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी ने तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस जारी कर दिया। जाहिर है अब यह मामला और भी विवादास्पद बनेगा और संसद सत्र में इसी मुद्दे को लेकर हंगामा होता रहेगा। ऐसा होना उचित नहीं है।

संसद को सुचारू रूप से चलाया जाना चाहिए और यह तभी संभव संभव है जब सत्ता पक्ष और विपक्ष नूरा कुश्ती में अपना समय बर्बाद न करें। और जनहित से जुड़े मुद्दो पर संसद में सार्थक चर्चा करें। माननीय सांसदो को यह नहीं भूलना चाहिए की मानसून सत्र में बजट पेश हुआ है इसलिए उन्हें बजट पर ही चर्चा करनी चाहिए।

क्योंकि बजट का सीधा असर आम जनता पर पड़ता है। बजट मेें यदि किसी की उपेक्षा हुई है तो विपक्षी पार्टियों को उस पर खुलकर अपनी राय रखनी चाहिए। जैसा की आईएनडीआईए में शामिल विपक्ष के कई नेता और गैर भाजपा शासित राज्यो के मुख्यमंत्री यह आरोप लगा रहे है की इस बजट में उनके प्रदेश को कुछ नहीं मिला है।

केन्द्र सरकार ने बजट में उनके राज्य की उपेक्षा की है। इस मामले को विपक्ष के नेता संसद में पूरजोर ढंग से उठाए ताकि गैर भाजपा शासित राज्यों के लिए बजट में उचित आबंटन हो सके। उम्मीद की जानी चाहिए की ससंद का यह महत्वपूर्ण सत्र हंगामों की भेंट नहीं चढ़ेगा।

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