संपादकीय: आतंकवाद पर मोदी का प्रहार

Modi's attack on terrorism
Editorial: चीन में आयोजित संघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय वार्ता की जिसमें उन्होंने आतंकवाद पर जमकर प्रहार करते हुए कहा कि आतंकवाद पूरी दुनिया और मानवता के लिए खतरा है और आतंकवाद से लडऩे में चीन को भी भारत के साथ सहयोग करना चाहिए। पीएम मोदी ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जिक्र करते हुए कहा कि भारत आतंकवाद का दंश झेलता रहा है लकिन अब उसने आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई तेज कर दी है और इसमें जिन-जिन देशों ने भारत का समर्थन किया है उनका वे धन्यवाद ज्ञापित करते हैं उन्होंने बगैर किसी देश का नाम लिये बिना कहा कि आतंकवाद पर दोहरा रवैया अब नहीं चलेगा।
जाहिर है पीए मोदी का इशारा अमेरिका और चीन की तरह ही रहा है। जिन्होंने भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ आपरेशन सिंदूर चलाये जाने के दौरान पाकिस्तान की मदद की थी। बहरहाल चीन ने अपनी गलती स्वीकार कर ली है और शी जिनपिंग ने भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत किये जाने की बात कही है। गौरतलब है कि गलवान घाटी में भारतीय सेना और चीनी सेना के बीच हुई झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्व हो गये थे।
किन्तु एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान नरेन्द्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच लगभ 40 मिनट तक हुई बैठक के बाद अब इनके रिश्तों में जमीं बर्फ पिघलने की संभावना बलवति हो गई है। चीन में पीएम मोदी का जिस गर्म जोशी के साथ स्वागत हुआ उसे देखकर यह साफ नजर आया कि अब चीन भी भारत के साथ अपने संबंध सुधारने का इच्छुक है। शी जिनपिंग ने पीएम मोदी के साथ बातचीत के दौरान यह भी कहा कि चीन और भारत एक दूसरे के दुश्मन नहीं बल्कि दोस्त है। दोनों देश एक दूसरे के लिए खतरा नहीं बल्कि विकास के लिए अवसर है।
अब दोनों देश अपने रिश्तों को सुधारने की दिशा में काम करते रहेंगे। उन्होंने कहा कि ड्रैगन और हाथी को अब एक साथ काम करना होगा। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी शी जिनपिंग की बातों से सहमति जताई और उनके सुझावों ंपर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर भी सार्थक चर्चा हुई और द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने पर भी सहमति कायम हुई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शी जिनपिंग के सामने जिस दमदारी के साथ आतंकवाद का मुद्दा उठाया और चीन को अपनी गलती मानने पर विवश किया वह भारत की एक बड़ी कूटनीतिक जीत मानी जानी चाहिए।