जातिवाद के जंजाल से जूझती मोदी की गारंटी
यशवंत धोटे
राज्य की 11 लोकसभा सीटों में से 6 सामान्य सीटों पर मोदी की गारंटी (modi ki garanti) को जातिगत समीकरण से दो चार होना पड़ रहा हैं। रायपुर लोकसभा सीट को यदि छोड़ दिया जाय तो बाकि पांच सामान्य सीटों पर जबरदस्त जातिगत समीकरण हावी हैं। ऐसा नही है कि इन सभी सीटों पर मोदी की गारंटी को ही जूझना पड़ा रहा हैं। बिलासपुर जैसी लोकसभा सीट पर राहुल का न्याय भी मात खाता दिख रहा हैं। भिलाई से जाकर कांग्रेस की टिकिट पर चुनाव लड़ रहे विधायक देवेन्द्र यादव को भाजपा के तोखन साहू के रूप में मोदी की गारंटी की चुनौती का डबल डोज मिल रहा हैं।
दरअसल सामाजिक बैठकों से निकले सन्देशों के सामने स्वनामधन्य राजनीतिक दल बेबस हैं। पिछली सरकार में हुई अघोषित जातिगतगणना बनाम क्वांटिफायबल डाटा आयोग की अनौपचारिक हेडकाउन्ट रिपोर्ट पर यदि भरोसा करे तो राज्य की एक करोड़ 25 लाख 7 हजार 169 की संख्या वाली पिछड़ी आबादी में साहू जाति सर्वाधिक 30 लाख 5 हजार 661 हैं जो 24.0315 फीसदी बैठती हैं। दूसरे नंबर की जाति यादवों की हैं जिसकी संख्या 22 लाख 67 हजार 500 है। जो 18.296 फीसदी हैं। बिलासपुर में साहू और यादव आमने सामने हैं।
अखबारी पन्नो, सोशल मीडिया और जुबानी राजनीतिक बहसों में भले ही भाजपा और कांग्रेस की रीति नितियों पर चर्चा हो रही हो लेकिन अन्दरखाने पक रही जातिवाद, स्थानीय और बाहरी की खिचड़ी की महक मोदी की गारंटी (modi ki garanti) और राहुल के न्याय में से किसी एक को परेशान करती दिख रही। राजनांदगाव लोकसभा सीट की बात करे तो पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और संतोष पांडे आमने सामने हैं यहा गारंटी और न्याय से ज्यादा अगड़े और पिछड़े पर दांव लगा हुआ हैं। खैरागढ़ विधानसभा क्षेत्र के लोधी भूपेश के लिए एकमुश्त लामबन्द हैं। कांग्रेस के पांच विधायकों वाले इस क्षेत्र में विधानसभावार वोटों के लिहाज से तीन विधायको वाली भाजपा भले ही बढ़त पर हैं लेकिन कई फिरकों में बंटी अलग-अलग जातियों की लामबन्दी से परेशान संतोष पांडे को क्षेत्र में घना संघर्ष करना पड़ रहा हैं।
राज्य में 8 लाख 37 हजार 225 की संख्या वाली और 6.694 फीसदी वाली कुर्मी जाति पंडरिया क्षेत्र में भूपेश के लिए संकटमोचक का काम कर रही है। हालांकि जातियों के इस चक्रव्यूह को भेदने भाजपा का थिंक टैंक लगा हुआ हैं। पड़ोस के दुर्ग लोकसभा क्षेत्र में 2014 की मोदी लहर में सरोज पांडे की हार के रूप में जातीय लामबन्दी का दंश झेल चुकी भाजपा के लिए 2024 और भी चुनौती पूर्ण हो गया हैं। क्योकि अब यहा क्वांटिफायबल डाटा आयोग की रिपोर्ट काम कर रही हैं।
तीन लाख 91 हजार वोटो से चुनाव जीतने वाले कूर्मि विजय बघेल को राजेन्द्र साहू की कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा हैं और वह भी तब जब शहरी क्षेत्र वैशाली नगर, दुर्ग शहर दुर्ग ग्रामीण और अहिवारा जैसे क्षेत्रों से विधानसभा में भाजपा की अच्छी खासी लीड है। भाजपा (modi ki garanti) के रणनीतिकारों ने कांग्रेस से राजेन्द्र साहू की टिकिट फायनल होते ही 2019 की तीन लाख 91 हजार की लीड को सीधे तीन लाख घटाकर काम करना शूरू किया है। दरअसल इस लोकसभा क्षेत्र की तासीर ही यही है कि किसी राष्ट्रीय राजनीतिक दल से किसी साहू को टिकिट मिले तो सभी समीकरण ध्वस्त होते रहे है। कोरबा और महासमुन्द लोकसभा क्षेत्र में भी मोदी की गारंटी पर जातिगत समीकरण भारी पड़ रहे हैं। 2008 के परिसीमन में अस्तित्व में आई आदिवासी बहुल कोरबा जैसी सामान्य सीट पर पिछले तीन चुनावों पर नजर डाले तो वहां सवर्ण प्रत्याशी चुनाव ही नहीं जीता हैं।
2009 में भाजपा की करूणा शुक्ला कांग्रेस के पिछड़े ड़ॉ चरणदास महंत से चुनाव हार गई। 2014 में भाजपा के पिछड़े बंशीलाल महतों से कांग्रेस के महंत हार गए लेकिन 2019 की मोदी लहर में भाजपा के सवर्ण प्रत्याशी ज्योतिनंद दुबे डॉ. चरणदास महंत की पत्नी ज्योत्सना महंत से चुनाव हार गए। 2024 के लिए प्रयोगधर्मी भाजपा ने फिर एक नया प्रयोग सरोज पांडे को टिकिट देकर किया हैं और कांग्रेस ने ज्योत्सना महंत को फिर से मैदान में उतारा हैं। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी खासियत है कि यहा के पाली तानाखार से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का विधायक भी हैं।
लेकिन जातिगत समीकरण के लिहाज से सवेंदनशील यह क्षेत्र समस्त राजनीतिक दाव पेंचो के बावजूद लहर या गारंटी को मात देता रहा हैं। राज्य बनने के बाद से 2004 में महासमुन्द लोकसभा से कांग्रेस के अजीत जोगी की जीत को यदि छोड़ दे तो उसके पहले और बाद में यहा से साहू सांसद बनते रहे है। चन्दशेखर साहू 98 तक जीतते रहे। 99 में श्यामाचरण शुक्ल से हारे। 2009 और 2014 में चन्दूलाल और 2019 में चुन्नीलाल साहू भाजपा से सांसद बनें।
लेकिन इस बार भाजपा ने यहा भी नया प्रयोग कर 2024 में अघरिया समाज की रूप कुमारी चौधरी को प्रत्याशी बनाया। कांग्रेस ने दुर्ग के पूर्व सांसद ताम्रध्वज साहू को प्रत्याशी बनाया हैं। यहां भी जातिगत समीकरण कुछ इस तरह काम करने लगे है कि किसी समय अपने आप को मुकाबले से बाहर मान चुकी कांग्रेस अब मुकाबले में दिखने लगी है।