BIG BREAKING: मेडिकल के ऑल इंडिया कोटे की सीटों में ओबीसी आरक्षण शून्य, आयोग का केंद्र को नोटिस
- AIOBC महासचिव जी करुणानिधि की शिकायत पर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से 15 दिन में मांगा जवाब
- राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने मामले की जांच भी की शुरू
नई दिल्ली/नवप्रदेश। मेडिकल (Medical) की ऑल इंडिया कोटा (All India Quota) की यूजी व पीजी पाठ्यक्रम की सीटों में ओबीसी (OBC) को आरक्षण (Reservation) नहीं मिलने के मुद्दे ने तूल पकड़ लिया है। ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ अदर बेकवर्ड क्लासेस एंप्लाइज वेलफेयर एसोसिएशन (AIOBC) के महासचिव जी करुणानिधि की शिकायत पर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने अब केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर इस मामले पर 15 दिन के भीतर जवाब तलब किया है।
यहीं नहीं आयोग ने मेडिकल (Medical) प्रवेश के इस ऑल इंडिया कोटे (All India Quota) की सीटों में ओबीसी (OBC) आरक्षण (Reservation) शून्य होने के मामले की संविधान के आर्टिकल 338 बी के तहत जांच भी प्रारम्भ की है।
आयोग ने नोटिस में लेख किया है कि समय सीमा में उत्तर न मिलने की दशा में भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सचिव को आयोग व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होने का समन भी जारी करेगा। वर्ष 2008 से अखिल भारतीय अपाक्स भी इस मामले को प्रमुखता से उठा रहा है।
अपने हक की बांट जोह रहा ओबीसी समाज
राज्य सरकारों के मेडिकल कॉलेजों के यूजी प्रवेश के 15 फीसदी ऑल इण्डिया कोटे की 10,000 सीटों व पीजी प्रवेश के 50 फीसदी ऑल इंडिया कोटे की 8,000 सीटों में आरक्षण मिलने की बांट जोह रहा है, क्योंकि अभी इन सीटों में ओबीसी आरक्षण शून्य है।
सिर्फ सेंट्रल मेडिकल कॉलेजों में मिल रहा आरक्षण
देश के सेन्ट्रल मेडिकल कॉलेजों में तो 2008 से तत्कालीन एचआरडी मंत्री अर्जुन सिंह वाला 27फीसदी आरक्षण ओबीसी को मिल रहा है। लेकिन भारत सरकार के स्वयं के मेडिकल कॉलेज गिनती के 10 हैं, जैसे एम्स, पीजीएमआईआर, मौलाना आजाद, सफदरजंग मेडिकल कॉलेज आदि। जबकि देश के अधिकतर मेडिकल कॉलेजों की मालिक राज्य सरकारें होती हैं।
ऑल इंडिया कोटे का ये है पेंच
यूजी के परिप्रेक्ष्य में
कई वर्षों से राज्यों के इन मेडिकल कॉलेजों (जैसे रायपुर, बिलासपुर, भोपाल, इंदौर, नागपुर, जयपुर, पटना, इलाहबाद ……आदि) की यूजी की 15फीसदी सीटें केन्द्र सरकार ने अपने पास रखी हैं। जिसे ऑल इंडिया कोटा कहा जाता है। जो ऑल इंडिया लेवल पर परीक्षा (पहले एआईपीएमटी अब एनईईटी) लेकर भरी जाती हैं। इसका उद्देश्य है- जिन राज्यों में मेडिकल कॉलेज नहीं हैं या कम हैं वहां के बच्चे भी एमबीबीएस व बीडीएस कर सकें। लेकिन पूरे देश से इकट्ठा की गई इन 15 फीसदी एमबीबीएस व बीडीएस की सीटों में अब तक ओबीसी आरक्षण नहीं है। जबकि इन्हीं कॉलेजों की बाकि 85फीसदी सीटों में राज्य अपने अपने प्रतिशत के अनुसार ओबीसी आरक्षण लम्बे समय से दे रहे हैं। एससी एसटी को भी इस ऑल इण्डिया कोटे में 22.50 फीसदी आरक्षण 2008 से ही मिल पाया, जिसके लिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा था।
पीजी के परिप्रेक्ष्य में
ओबीसी के लिए यह मामला पीजी (एमडी- एमएस) प्रवेश में और पीड़ादायक हो जाता है क्योंकि इन पाठ्यक्रमों में यह आल इंडिया कोटा यूजी की 15 फीसदी की जगह 50 फीसदी है और इसमें भी ओबीसी आरक्षण शून्य है। यानी राज्य सरकारों के सभी मेडिकल कॉलेजों की पीजी (एमडी-एमएस) की आधी सीटों में प्रवेश भारत सरकार देती है। जिसकी प्रवेश परीक्षा पहले एआई प्री पीजी कहलाती थी अब नीट पीजी कहलाती है।
इन दो कारणों से लागू नहीं हो पाया आरक्षण
ऑल इंडिया कोटे की इन सीटों में 2007-08 का एचआरडी मंत्री अर्जुन सिंह वाला 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण इन 2 कारणों से लागू नहीं हो पाया:- (1) ये मेडिकल कॉलेज सेन्ट्रल के न होकर राज्यों के थे। (2) अर्जुन सिंह के केंद्रीय प्रवेश आरक्षण एक्ट-2007 के तहत 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण लागू करने के पहले जनरल (अनारक्षित) सीटें कम नहीं करने व यथावत रखने के लिए पहले हर कॉलेज में 54 फीसदी सीटें बढ़ाना अनिवार्य था। यह काम राज्यों के मुख्यमंत्रियों व एमसीआई को करना था, लेकिन यह काम आज भी नहीं हो सका।
गलतफहमी में ओबीसी
पूरे मामले का एक पहलू यह भी है कि ओबीसी समाज को जानकारी का अभाव है। ओबीसी बच्चों व अभिभावक ये कहते कहते 2 – 3 साल गुजार देते हैं कि इन सीटों में भी आरक्षण है, जो वास्तव में एक गलतफहमी व झूठ होता है। ओबीसी को कभी कभी ऐसा भी लगने लगता है कि क्या ये सीटें भारत के संविधान से नियंत्रित नहीं होती?