संपादकीय: यूपी में सियासी उठा पटक के मायने
Meaning of political turmoil in UP: लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा। इसे लेकर यूपी में अब सियासी उठापटक चल रही है। जिसे लेकर अटकलों का बजार गर्म होने लगा है। जहां तक की आईएनडीआईए में शामिल विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने यह दावा करना शुरू कर दिया है कि उत्तरप्रदेश में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।
समाजवादी पार्टी के नेता तो यहां तक अटकलें लगा रहे हैं कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री पद से योगी आदित्यनाथ की छुट्टी हो सकती है। गौरतलब है कि उत्तरप्रदेश में भाजपा को लगे झटके के बाद से लगातार यूपी के चुनाव परिणामों को लेकर मंथन किया जा रहा है।
इसी सिलसिले में उत्तरप्रदेश के भाजपा अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी को दिल्ली तलब किया गया। जहां उन्होंने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के अलावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ भी लंबी चर्चा की। उन्होंने उत्तरप्रदेश में भाजपा के प्रदर्शन के बारे में विस्तृत ब्यौरा दिया और भाजपा की सीटें कम होने कारण भी बताए।
इसके बाद अब भाजपा हाई कमान ने उत्तरप्रदेश की दस विधानसभा सीटों के लिए होने जा रहे उपचुनाव को लेकर नई रणनीति बनाने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को फ्री हैंड दे दिया गया है। इससे स्पष्ट है कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटाने की आशंका निर्मूल है।
भले ही विपक्ष ऐसी अफवाह उड़ाकर भाजपा में असमंजस की स्थिति बनाने का प्रयास कर लें लेकिन सच तो यही है कि योगी आदित्यनाथ पर भाजपा हाई कमान को पूरा भरोसा है। योगी आदित्यनाथ ने अभी से दस सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर रणनीति बनानी शुरू कर दी है।
उन्होंने हर विधानसभा क्षेत्र के लिए तीन तीन मंत्रियों की टीम बना ली है और उन्हें निर्देश दिया है कि वे सप्ताह में दो दिन अपने प्रभार वाले विधानसभा क्षेत्रों में रूके और भाजपा कार्यकर्ताओं से सतत् संपर्क बनाए रखें। जो भाजपा कार्यकर्ता नाराज हैं उन्हें मनाने की कोशिश करें।
जाहिर है योगी आदित्यनाथ इस उपचुनाव में कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते और लोकसभा चुनाव में भाजपा को जो झटका लगा है उसकी भरपाई वे विधानसभा उपचुनाव के नतीजो से करना चाहते हैंंं। यद्यपि ऐसा करना आसान नहीं होगा। समाजवादी पार्टी का पीडीए फार्मूला जो लोकसभा चुनाव में कारगर सिद्ध हो चुका है।
वह विधानसभा के उपचुनाव में भी भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। अलबत्ता यदि इन उपचुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन नहीं रहता और दोनों ही चुनाव समर में अपने प्रत्याशी उतारते हैं तो इसका भाजपा को लाभ मिल सकता है