Maoist Surrender : माओवादी कमांडर सुनील ने साथियों को दी एक हफ्ते की मोहलत, कहा: “हथियार डाले हैं, जनता की आवाज उठाना बंद नहीं करेंगे”
Maoist Surrender
गरियाबंद जिले की उदंती एरिया कमेटी (Maoist Surrender Gariaband) के कमांडर सुनील उर्फ जगतार (Maoist Commander Sunil) ने शुक्रवार को अपनी पत्नी अरेना उर्फ सुगरो सहित कुल सात माओवादी साथियों के साथ आत्मसमर्पण (Maoist Surrender) कर दिया।
इस दौरान उन्होंने पुलिस को छह हथियार सौंपे। आत्मसमर्पण के बाद मीडिया से बातचीत में सुनील ने कहा कि उन्होंने “हथियार तो डाल दिए हैं, लेकिन जनता की आवाज उठाना बंद नहीं करेंगे।” सुनील ने 25 साल के माओवादी जीवन (Maoist Movement Experience) के अपने अनुभव साझा किए और कहा कि अब हिंसा नहीं, बल्कि समाजसेवा के रास्ते से बदलाव लाया जाएगा।
सरकार नीतियों पर ईमानदारी से अमल करे
सुनील ने कहा कि सरकार अगर माओवादी पुनर्वास योजना (Maoist Rehabilitation Policy) पर ईमानदारी से अमल करती है, तो कई और साथी भी मुख्यधारा में लौट आएंगे। उन्होंने कहा कि वे सरकार के वादों पर नजर रखेंगे कि वास्तव में सरेंडर करने वालों को सुरक्षा, रोजगार और सम्मानजनक जीवन मिल रहा है या नहीं। सुनील ने यह भी कहा कि वे अब क्षेत्र की समस्याओं और जनता की आवाज (Public Rights and Maoist Reforms) को राजनीतिक माध्यमों से उठाने पर विचार कर रहे हैं।
साथियों को एक हफ्ते का अल्टीमेटम
सुनील ने जंगल में बचे अपने साथियों को एक हफ्ते का अल्टीमेटम (Maoist Ultimatum) दिया। उन्होंने कहा कि यदि वे इस अवधि में आत्मसमर्पण करते हैं, तो उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी वे खुद लेंगे। उन्होंने गरियाबंद के गोबरा, सीनापाली और सीतानदी इलाकों में सक्रिय नक्सलियों से भी अपील की कि अब शांति का रास्ता अपनाएं। उन्होंने कहा अब इस क्षेत्र में कोई बड़ा लीडर नहीं बचा है। मैं चाहता हूं कि मेरे साथी हथियार छोड़कर जनता के बीच लौटें। अगर वे नहीं लौटे, तो जिम्मेदारी उनकी खुद की होगी।
‘गद्दार’ कहे जाने पर दिया जवाब
जब उनसे यह पूछा गया कि क्या आत्मसमर्पण करने वाले माओवादी गद्दार (Maoist Betrayal Allegation) हैं, तो उन्होंने जवाब दिया जो लोग जनता के हक की लड़ाई बिना हथियार के जारी रखते हैं, वे गद्दार नहीं, बल्कि सच्चे योद्धा हैं। हमने 20–25 साल तक हथियार के साथ संघर्ष किया, लेकिन अब हालात बदल गए हैं न हथियार हैं, न कैडर। अब लड़ाई जनता के हक़ के लिए कलम और संवाद से होगी।
सुनील ने केंद्र और राज्य सरकार दोनों से अपील की कि शांति वार्ता (Peace Talks with Maoists) के लिए द्विपक्षीय सीजफायर लागू किया जाए। उन्होंने कहा कि केवल संवाद और विकास ही बस्तर के लोगों को स्थायी शांति दे सकता है।
