Maoist Surrender : भूपति के झुकते ही टूटा लाल किला : बस्तर में 170 माओवादियों का सामूहिक आत्मसमर्पण, हथियारों के ढेर से कांपा जंगल

Maoist Surrender : दशकों से दंडकारण्य के सघन जंगलों में सक्रिय माओवादी संगठन को उस समय सबसे बड़ा झटका लगा, जब उसके शीर्ष नेता भूपति उर्फ सोनू के आत्मसमर्पण के बाद संगठन का पूरा ढांचा मानो बिखरने लगा। गुरुवार को माड़ डिविजन के करीब 120 माओवादी हथियारों के साथ आत्मसमर्पण की तैयारी में हैं, जबकि कोयलीबेड़ा क्षेत्र से भी 50 माओवादी पहले ही सुरक्षा बलों के सामने हथियार डाल चुके हैं।
सुरक्षा एजेंसियों के सूत्र बताते हैं कि यह पूरा समूह संगठन के प्रवक्ता और 25 लाख के इनामी रूपेश की अगुवाई में इंद्रावती नदी पार कर भैरमगढ़ क्षेत्र में पहुंच चुका है। वहां से उन्हें सुरक्षा घेरे में जगदलपुर लाया जा रहा है, जहाँ शुक्रवार को मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और गृहमंत्री विजय शर्मा की मौजूदगी में सामूहिक आत्मसमर्पण होगा।
भूपति का आत्मसमर्पण सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक विचार की पराजय के रूप में देखा जा रहा है। यह वही भूपति है जिसने माओवाद के केंद्रीय क्षेत्रीय ब्यूरो (CRB) की बागडोर संभाल रखी थी और जो वर्षों तक पोलित ब्यूरो सदस्य के रूप में संगठन की नीति तय करता रहा। गढ़चिरौली में उसके 60 साथियों के साथ आत्मसमर्पण के बाद, दंडकारण्य का पूरा नेटवर्क जैसे डगमगा गया है।
स्थानीय सुरक्षा अधिकारियों के मुताबिक़, दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (DKSZC) के तीन बड़े सब-डिवीजन अब लगभग निष्क्रिय हो चुके हैं। कई कैडर या तो जंगल छोड़ चुके हैं, या संपर्कविहीन हो गए हैं। भूपति के प्रभाव क्षेत्र में आने वाले बस्तर, गढ़चिरौली और सुकमा इलाकों में संगठनात्मक इकाइयाँ आपसी मतभेद और संसाधनों की कमी से जूझ रही हैं।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि “यह केवल हथियार डालने का नहीं, बल्कि वैचारिक टूटन का क्षण है। जिस विचार को लेकर ये लोग दशकों से लड़े, वही आज धराशायी हो रहा है।”
सूत्रों का कहना है कि भूपति के बाद संगठन का नेतृत्व तय करने को लेकर आंतरिक संघर्ष भी उभर आया है, जिसकी वजह से कई कमांडर असमंजस में हैं।
इधर, सुरक्षा बलों ने दावा किया है कि यह आत्मसमर्पण दंडकारण्य के पूरे इलाके में संगठन के अंत की शुरुआत साबित होगा। हाल के महीनों में सुरक्षा ऑपरेशनों और विकास गतिविधियों की बढ़ोतरी ने भी स्थानीय युवाओं को वैकल्पिक रास्ते अपनाने के लिए प्रेरित किया है।
राज्य सरकार ने इस सामूहिक समर्पण को लेकर पुनर्वास नीति पर भी काम तेज कर दिया है। समर्पित माओवादियों को मुख्यधारा में लाने के लिए आर्थिक सहायता, शिक्षा और पुनर्वास योजनाओं की समीक्षा की जा रही है। हालांकि सुरक्षा एजेंसियों ने स्पष्ट किया कि “सच्चा समर्पण तभी माना जाएगा जब वे संगठन के नेटवर्क की जानकारी साझा करें।”
भूपति के हथियार डालने से माओवाद का वह आदर्शवादी ढाँचा, जो पांच दशकों से जंगलों में खड़ा था, अब लगभग ढहने की स्थिति में है। यह न केवल सुरक्षा की जीत है, बल्कि बस्तर की सामान्य जनता के लिए शांति की नई शुरुआत का संकेत भी।