Makar Sankranti : हमारे उत्सवों की पताकाएं
प्रयाग शुक्ल। Makar Sankranti : मकर संक्रांति दरअसल वसंत की आहट ही नहीं है, वसंत के आगमन की सूचना भी है। हमारे जितने भी पर्व-त्योहार हैं, किसी न किसी प्रसंग से जुड़े हुए हैं, साथ ही, बहुतेरे त्योहार ऋतुओं से भी जुड़े हैं। आदिकाल से आज तक मकर संक्रांति जैसे व्यापक त्योहार का तो विशेष महत्व है। कुरुक्षेत्र में तीरों की शय्या पर लेटे भीष्म पितामह ने भी कभी इस संक्रांति काल की प्रतीक्षा की थी। कह दिया था कि जब सूर्य उत्तरायण को जाएंगे, तभी मैं इस देह का त्याग करूंगा, उसके पहले नहीं जाऊंगा। ऐसे अनेक पौराणिक प्रसंग हमें पुस्तकों में मिल जाते हैं, जो त्योहारों से गहरे जुड़े हुए हैं।
हमारी फसलों का भी त्योहारों से जुड़ाव है। हमारे देश में उत्तर में लोहड़ी से लेकर दक्षिण में पोंगल तक, पश्चिम में उत्तरायण से लेकर पूरब में बिहू तक मकर संक्रांति के विविध रूप हैं। यह त्योहार वसंत से बहुत ज्यादा जुड़ा है। पूरे देश भर में यह ऋतु जब भव्य रूप में अपने दर्शन कराती है, तब यह त्योहार प्रगट होता है। यहां प्रगट होना कहना ज्यादा अच्छा लग रहा है, क्योंकि ऋतुओं की कृपा से ही स्वत: उत्सव या त्योहार का आभास होने लगता है। मकर संक्रांति को मनाने की विधि भी अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग है। ध्यान, स्नान, दान से लेकर खान-पान तक, हर क्षेत्र की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं।
समग्रता में जो रूप है मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का, वह तमाम अन्य त्योहारों के बीच भी बहुत विशिष्ट है। एक ही समय, एक ही कारण से मनाया जाने वाला त्योहार कितने अलग-अलग रूपों में प्रगट होता है। इस पर्व की कितनी बड़ी खूबी है कि जहां-जहां यह मनाया जाता है, वहां-वहां यह व्यंजनों से भी जुड़ता है, यह बहुत सुंदर बात है। असम के व्यंजन अलग हैं, दक्षिण और उत्तर भारत में अलग हैं। पंजाब में लोहड़ी के अपने व्यंजन हैं, तो बिहार, उत्तर प्रदेश के अपने व्यंजन हैं, दही-चूड़ा, खिचड़ी। पर्व के जितने रूप हैं, उससे कहीं ज्यादा प्रकार के उससे जुड़े व्यंजन हैं। इस दिन उड़द की दाल की खिचड़ी घर-घर सुगंध फैलाती है।
वैसे भी, अपने देश में व्यंजनों का हर त्योहार में महत्व बढ़ जाता है, होली हो या दिवाली, खान-पान की जो संस्कृति हमारे त्योहारों के साथ-साथ चलती है, वह दुनिया को बहुत लुभाती है। सच पूछिए, तो आज के जमाने में त्योहारों के इस पहलू को इसलिए भी याद करना चाहिए, क्योंकि इनके जरिये हम स्वयं को पुन: पहचानते हैं। गांवों, कस्बों, शहरों में बनने वाले पारंपरिक व्यंजन फिर चर्चा और चलन में आ जाते हैं, बाजार भी ऐसे आयोजनों में साथ खड़ा हो जाता है। त्योहारों की वजह से नई पीढिय़ों को भी पता चलता है कि अच्छा, यह त्योहार है, तो यह व्यंजन बनेगा। युवा पारंपरिक खान-पान को समझते हैं कि सदियों पहले से हमारे पूर्वज किन व्यंजनों को क्यों पकाते-खाते आए हैं।
मकर संक्रांति जैसे त्योहार के समय पता चलता है कि भारतीय समाज का खान-पान पक्ष आज भी बहुत संरक्षित और समृद्ध है। भारत के अलग-अलग अंचल, अलग-अलग भाषाएं, सबका अपना-अपना स्वायत्त रूप भी है, ये सब मिलकर जो भारत बनाते हैं, वह देश और दुनिया को बहुत आकर्षित करता है। यह बात छिपी नहीं है कि लोग फिर से पुराने त्योहारों को जानने लगे हैं, एक-दूसरे के त्योहार आगे बढ़कर मनाने लगे हैं। अचानक कोई आकर बता देता है कि आज तो फलां त्योहार है और इसकी यह विशेषता है, आज ऐसा करते हैं, यह खाते हैं। जिन त्योहारों को हम भूलने लगे हैं, उनकी भी अब कोई न कोई याद दिला ही देता है।
कुछ दिनों पहले छठ का आयोजन हुआ, उसमें भी यही होता है, खास तरह के व्यंजन बनते हैं। त्योहार न जाने कितनी चीजों से जुड़े हैं, अग्नि, जल से भी जुड़े हैं। जीवन के लिए मूलभूत जो पांच तत्व हैं, उनकी याद भी किसी न किसी रूप में ये दिलाते हैं। मकर संक्रांति (Makar Sankranti) भी ऐसे त्योहारों में से एक है। यह त्योहार भी हमें सूर्य और नदियों से जोड़ता है। वास्तव में, प्रकृति ही तो हमारी प्रेरणादायी शक्ति है, वही तो हमें कुछ रचने के लिए प्रेरित करती है। सुखी जीवन को ऊर्जा देती है।
पहले पर्व-त्योहार पर लोगों की चिट्ठियां आती थीं, विदेश में भी रहो, तो घर की याद दिलाती थीं, लेकिन अब तो आप कहीं भी रहिए, ऐसे अवसरों पर संदेश का आदान-प्रदान बहुत आसान हो गया है। लोग तरह-तरह के संदेश और आयोजन के चित्र साझा करते हैं, तो खुशी बढ़ जाती है। अब तो लोग सोशल मीडिया पर यह बताने के लिए बेताब रहते हैं कि किस त्योहार को कैसे मनाया। मकर संक्रांति के दिन भी सोशल मीडिया पर खूब हलचल होने वाली है। लगता है, बदलते दौर में भी त्योहारों की गूंज बढ़ती जाएगी। सोशल मीडिया पर छोटी-छोटी खुशी भी साझा करने का चलन ऐसे तेज हुआ है कि छोटे त्योहारों को भी लोग जानने, समझने और मनाने लगे हैं।
हम यह भी देखते हैं कि भारतीय परिवारों का जैसे-जैसे विस्तार हुआ है, वैसे-वैसे खुशियां भी बढ़ी हैं। जैसे मेरी बेटी ने दक्षिण भारतीय से विवाह किया, तो हमारे जीवन में पोंगल का भी सहज प्रवेश हुआ। बेटी ने अपनी सास से सब कुछ सीखा और उसे आगे बढ़ाया। पोंगल के प्रति मेरे पूरे परिवार की श्रद्धा बढ़ गई। आज कोई परिवार पंजाब से जुड़ रहा है, कोई गुजरात से, तो कोई महाराष्ट्र से, भारतीय परिवारों का विविध विस्तार और जुड़ाव विगत वर्षों में देखने लायक है।
पहले लोग दूसरे प्रदेश में तभी जाते थे, जब सरकारी नौकरी लगती थी, लेकिन अब तो हर जगह हर प्रदेश के लोग मिल जाते हैं। हर जगह हर क्षेत्र के त्योहार मिल जाते हैं। हम गौर करें, तो हमारी सोसायटी या कॉलोनी में हर तरह के पर्व-त्योहार (Makar Sankranti) आ बसे हैं। छठ पूजा को ही पहले कितने लोग जानते हैं, लेकिन अब सब जानने लगे हैं। कॉलोनी में जब छठ का आयोजन होता है, तब बिहार के लोगों के साथ पंजाब, गुजरात, तमिलनाडु के लोग आ खड़े होते हैं। यह भारतीय समाज का नया खुशनुमा रूप है। हमारे उत्सवों की पताकाएं आकाश में शोभायमान हैं।