Navpradesh Impact : एमपीपीएससी की सहायक प्राध्यापक भर्ती में हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी मप्र सरकार
- मप्र शासन के उच्च शिक्षा विभाग ने आदेश जारी कर सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दाखिल करने का लिया निर्णय
- नवप्रदेश ने इस मुद्दे से जुड़ी खबरों व विशेष आलेखों को प्रमुखता से किया था प्रकाशित
- फैसले से आरक्षण नियमों को बचाने सक्रिय हुए एससी, एसटी व ओबीसी समाज के संगठनों में खुशी की लहर
- मप्र के उपाधि महाविद्यालयों में नियमानुसार आरक्षित सीटों में चयनित व सेवा में आ चुकीं गरीब, साधारण परिवारों की 92 महिला सहायक प्राध्यापिकाओं में भी खुशी का माहौल
भोपाल/नवप्रदेश। मध्यप्रदेश शासन (Madhya Pradesh Government) ने एमपीपीएससी (MPPSC) की 2700 सहायक प्राध्यापक भर्ती (Recruitment Of Assistant Professors) प्रक्रिया में नौकरी ज्वाइन कर चुकीं आरक्षित वर्ग (Reserved Category ) की 92 (ओबीसी 71, एससी 18 व एसटी 03) सहायक प्राध्यापिकओं (Women Assistant Professors) के विरुद्ध आए जबलपुर हाईकोर्ट (Jabalpur High Court) के फैसले को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चुनौती (Challenge) देने का निर्णय लिया है।
शासन (Madhya Pradesh Government) के उच्च शिक्षा विभाग ने हाईकोर्ट के ‘पूरी सूची रद्द करने व 2700 उम्मीदवारों की नई चयन सूची बनाने’ के फैसले के विरुद्ध विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर करने का निर्णय लिया है।
उल्लेखनीय है कि अखिल भारतीय अनुसूचित जाति, जन जाति, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक अधिकारी कर्मचारी संगठन(अपाक्स), भोपाल की ओर से लगातार ये मांग की जा रही थी कि उच्च न्यायालय के 29 अप्रैल के आदेश के विरुद्ध स्वयं मध्यप्रदेश शासन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जाए। अपाक्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष इंजी. एपी पटेल संगठन की ओर से बीते एक माह से लगातार यह मांग मप्र शासन के मुख्यमंत्री, उच्च शिक्षा विभाग, एमपीपीएससी (MPPSC), राज्य व राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से कर रहे थे। इस मुद्दे से जुड़ी खबरों व विशेष आलेखों को दैनिक नव प्रदेश अपने डिजिटिल व प्रिंट एडिशन में प्रमुखता से प्रकाशित करते आ रहा है।
ऐसे समझें पूरा मामला
बता दें कि याचिका क्रमांंक 19630/2019 में दिनांक 29 अप्रैल 2020 को जबलपुर हाईकोर्ट (Jabalpur High Court)का फैसला सहायक प्राध्यापक भर्ती (Recruitment Of Assistant Professors) प्रक्रिया में नौकरी ज्वाइन कर चुकीं आरक्षित वर्ग (Reserved Category) की उक्त 92 आरक्षित महिला सहायक प्राध्यापिकाओं (Women Assistant Professors) के विरुद्ध आया था।
अब इसको चुनौती (challenge) दी जाएगी। इसके विरुद्ध मप्र शासन के उच्च शिक्षा विभाग ने बुधवार दिनांक 3 जून, 2020 को अपने आदेश क्रमांक 1-45/2019/38-1 से सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में SLP (विशेष अनुमति याचिका) दायर करने का निर्णय लिया है।
इसके लिए उच्च शिक्षा विभाग ने क्षेत्रीय अतिरिक्त संचालक, उच्च शिक्षा जबलपुर को प्रकरण का प्रभारी अधिकारी नियुक्त किया है। तथा मध्यप्रदेश शासन के विधि और विधाई कार्य विभाग ने अर्जुन गर्ग को पत्र दिनांक 02 जून 2020 द्वारा डिजिटली हस्ताक्षरित वकालतनामा प्रेषित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता नियुक्त किया है।
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शासन, सहायक प्राध्यापिकाओं व एमपीपीएससी की ये है मांग
इस प्रकरण में नियमानुसार मध्यप्रदेश शासन, एमपीपीएससी व आरक्षित वर्ग की पीडि़त 92 महिला प्राध्यापिकाओं की मुख्य मांग यह है कि ‘अनारक्षित (महिला) सीटों में योग्यता (प्राप्तांकों) के आधार पर चयनित आरक्षित वर्ग की 92 सहायक प्रध्यापिकाओं को अनारक्षित (महिला) सीटों में ही यथावत रखा जावे व आरक्षण नियमों को बचाया जाए।’ इस भर्ती प्रक्रिया में मप्र लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) एवं मप्र शासन का उच्च शिक्षा विभाग हॉरिजन्टल आरक्षण के समस्त नियमों का सही-सही पालन कर दो बार (उच्च न्यायालय के 2019 के निर्णय के बाद भी) ऐसी चयन सूची बना भी चुके हैं।
सहायक प्राध्यापिकाएं भी बना रहीं याचिका दाखिल करने का मन
अब म. प्र. के उपाधि महाविद्यालयों में नियमानुसार आरक्षित सीटों (कोटे) में चयनित व सेवा में आ चुकीं गरीब, साधारण परिवारों की 92 (ओबीसी-71, एससी 18 व एसटी 03) महिला सहायक प्राध्यापिकायें भी मध्यप्रदेश शासन की इस एसएलपी के साथ सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली में याचिका दायर करने का मन बना रही हैं।
अपाक्स अध्यक्ष पटेल ने फैसले पर ऐसे आकृष्ट कराया था सभी का ध्यान
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा रिट पिटीशन नंबर 19126/2019 पिन्की असाटी विरुद्ध मप्र शासन में 29 अप्रैल 2020 को
सुनाए गए निर्णय के अन्तिम (कनक्लूसिव) पैरा क्रमांक 39 से पैरा क्रमांक 44 में लिखी घोर कमियों की ओर अखिल भारतीय अपाक्स के अध्यक्ष इंजीनियर एपी पटेल, भोपाल ने सबका ध्यान आकृष्ट कराया था।
यह बताया था पटेल ने
- पटेल ने बताया था कि उच्च न्यायालय के उक्त निर्णय में लिखी यह बात कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी की महिला उम्मीदवारों को मेरिट (अधिक प्राप्तांकों) के आधार पर अनारक्षित (महिला) सीटों में चयनित नहीं किया जा सकता नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है। और यह बात उसी निर्णय में उद्धृत राजेश दारिया व ममता बिष्ट के सर्वोच्च न्यायालय के दोनों ही निर्णयों में कहीं भी नहीं लिखी है।
- राज्य सरकार, भारत सरकार, उच्च न्यायालयों व सर्वोच्च न्यायालय का यह स्थापित नियम है कि मेरिट के आधार पर अनारक्षित सीटों में चयनित आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को अनारक्षित सीटों में ही गिना जाएगा व उन्हें उनके लिए आरक्षित सीटों में समायोजित नहीं किया जायेगा। जिसे लागू करने में वर्टिकल या हॉरिजंटल आरक्षण नियम कोई बाधा नही हैं।
- किसी भी भर्ती प्रक्रिया में अनारक्षित कम्पार्टमेन्ट (डब्बे) में आरक्षित श्रेणी की भी कोई भी महिला उम्मीदवार मेरिट (यानी प्राप्तांकों) के आधार पर चयनित हो सकती है। जैसे नगर निगम दिल्ली या भोपाल के महापौर का पद यदि अनारक्षित (महिला) हो तो उस पद हेतु आरक्षित वर्ग की कोई भी महिला बेरोक-टोक चुनाव लड़ सकती है.
राजेश दारिया प्रकरण एक ही कंपार्टमेंट के महिला पुरुष का मामला
पटेल ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय का राजेश दारिया प्रकरण राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा अनुमत महिला आरक्षण की मात्रा से अधिक महिला उम्मीदवारों को चयनित कर लेने के कारण कुछ पात्र पुरुष उम्मीदवारों के चयनित नहीं होने से संबन्धित था। (अर्थात झगड़ा एक ही कम्पार्टमेन्ट (केटेगरी) के महिला व पुरुष अभ्यर्थियों के बीच का आपस का था)।
ममता बिष्ट प्रकरण भी एक ही कंपार्टमेंट की दो महिलाओं का मामला
पटेल के मुताबिक इसी तरह सर्वोच्च न्यायालय का ममता बिष्ट प्रकरण भी उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग की चयन सूची में अनारक्षित (ओपन) मेरिट में आई नीतू जोशी (मेरिट क्र. 09) को अनारक्षित (महिला) कोटे की 5 आरक्षित सीटों में न गिनने व ऐसे अनारक्षित (महिला) कोटे की 1 सीट रिक्त कर उस पर ममता बिष्ट को अनारक्षित (महिला) के रूप में नियुक्त करने की मांग से संबंधित था। जो हॉरिजंटल आरक्षण के नियमों के विरुद्ध था। (यानी यह झगड़ा एक ही कंपार्टमेंट (केटेगरी) की 2 महिला अभ्यर्थियों के बीच का आपस का था)। दोनों ही प्रकरणों में कहीं भी किसी आरक्षित महिला उम्मीदवार के मेरिट के आधार पर अपनी केटेगरी से अनारक्षित सीटों में चयनित होने या प्रवजन (माइग्रेशन) होने पर तो कोई प्रश्न ही नहीं था।
नियुक्ति यथावत रखने में समस्या नहीं
पटेल के मुताबिक, उच्च न्यायालय जबलपुर के आदेश दिनांक 29.04.2020 में मुख्य न्यायाधीश अजय कुमार मित्तल व न्यायाधीश विजय कुमार शुक्ला ने निर्णय के अन्तिम पैराग्राफ नंबर 43 में यह भी लिख दिया है कि पुनरीक्षित चयन सूची में अनारक्षित सीटों में महिलाओं हेतु आरक्षित 33 फीसदी सीटों में अनारक्षित महिलाओं (UNRF) को ही लिया जाए। जिससे पुन: अनारक्षित (महिला) सीटों में मेरिट (प्राप्तांकों) के आधार पर आईं 92 आरक्षित श्रेणी (एससी, एसटी,ओबीसी) की महिलाओं को यथावत रखने में कोई समस्या आज भी नहीं दिखती।