Lok Sabha Elections : 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव में विपक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उसके पास मौजूदा एनडीए सरकार के खिलाफ कोई मुद्दा नहीं मिल रहा है। महंगाई, बेरोजगारी और कथित भ्रष्टाचार को विपक्षी पार्टियों ने अपने अपने स्तर पर मुद्दा बनाने की कोशिश जरूर की लेकिन देश की जनता का अपेक्षित समर्थन नहीं मिला। यही वजह है कि अब विपक्षी पार्टियों ने जाति की राजनीति शुरू कर दी है। जिस तरह नब्बे के दशक में विश्वप्रताप सिंह ने कमंडल का मुकाबला मंडल से किया था कुछ उसी तरह अब जातिय जनगणना की आवाज बुलंद कर विपक्षी पार्टियां पिछड़ा वर्ग के वोटों पर अपना कब्जा जमाने की कवायद कर रही है। इसकी शुरूआत जदयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने की है।
प्रधानमंत्री पद के स्वयंभू उम्मीद्वार बने हुए है। उन्होंने बिहार में जातिय सर्वेक्षण शुरू करा दिया है। जाति की जनगणनना कोई भी राज्य सरकार नहीं करा सकती क्योंकि ऐसा करने का अधिकार केन्द्र सरकार को ही है। किन्तु आजादी के बाद से अब तक जातिय जनगणनना नहीं की गई। यदि की भी गई तो उसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए। 2011 में जब जनगणनना हुई थी। तो तात्कालीन यूपीए सरकार ने उसके आकड़े सार्वजनिक करने से इंकार कर दिया था। इसकी एक बड़ी वजह तो यह थी कि पिछड़े वर्ग की जातियों को लेकर एक राय नहीं बन पाई थी। कुछ राज्यों में जिस जाति को पिछड़े वर्ग में रखा गया है वहीं जातियां कुछ राज्यों में अमान्य वर्ग में रखी गई है।
ऐसी स्थिति में पिछड़े वर्ग की जातियों को लेकर संशय बना हुआ है। जाहिर है कि ऐसी स्थिति में जाति जनगणनना नहीं हो सकती। इसके बावजूद वोट बैंक की राजनीति के चलते नीतिश कुमार सहित कुछ पिछड़े वर्ग के नेता लगातार जाति जनगणनना की मांग को हवा देकर इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी हालिया कर्नाटक दौरे के दौरान वहां के पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को रिझाने के लिए जाति जनगणाना की मांग का समर्थन कर दिया है। विपक्षी की यह कवायद क्या रंग लाती है और इसका उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में कितना लाभ मिल पाता है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन मुद्दा उतना कारगर सिद्ध नहीं हो पाएगा।
जिनती विपक्षी दलों ने उम्मीद (Lok Sabha Elections) बान रखी है। इसकी वजह यह है कि मौजूदा एनडी सरकार ने अपने नौ साल के कार्यकाल के दौरान एक नया हितग्राही वोट बैंक खड़ा कर लिया है जिसमें अजा जजा और पिछड़े वर्ग की जातियों के लोग ही ज्यादा शामिल है। जिन्हें केन्द्र सरकार की जनकल्याण कारी योजनाओं का लाभ मिला है और उनका भरोसा एनडीए सरकार के प्रति और ज्यादा बढ़ा है। जबकि भाजपा विरोधी पार्टियों के नेताओं के सामने विश्वसनीयता का ही संकट मंडरा रहा है। ऐसे में जाति को लेकर राजनीति करने से उन्हें कोई खास फायदा शायद ही मिल पाए।