Local Language : छत्तीसगढ़ में स्थानीय बोली में होगी स्कूलों में पढ़ाई, इन भाषाओं की किताबें…
कोर्ट में सुनवाई होने से पहले ही सरकार ने बनाई नीति
रायपुर/नवप्रदेश। Local Language : छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में अब पहली से लेकर 5वीं तक बच्चे अपने ही इलाके की स्थानीय भाषा और बोली में पढ़ाई कर सकेंगे। स्कूल शिक्षा विभाग ने विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाने वाली सादरी, भतरी, दंतेवाड़ा गोंड़ी, कांकेर गोंड़ी, हल्बी, कुडुख, और उडिय़ा के जानकारों से बच्चों के लिए पठन सामग्री, वर्णमाला चार्ट और रोचक कहानियों की पुस्तकें तैयार करवाकर स्कूलों में भिजवा दी हैं। इसके अलावा छत्तीसगढ़ी, अंग्रेजी और हिन्दी में भी बच्चों के लिए पठन सामग्री स्कूलों को उपलब्ध कराई है।
स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव ने बताया कि राज्य में अलग-अलग हिस्सों जैसे बस्तर, सरगुजा और ओडिशा से लगे सीमावर्ती इलाके के लोग दैनिक जीवन में स्थानीय बोली-भाषा का उपयोग करते हैं। इन इलाकों में प्राथमिक स्कूल के बच्चों को उनकी भाषा में शिक्षा दी जाए तो यह ज्यादा सरल और सहज होगा।
स्कूल शिक्षा विभाग व माध्यमिक शिक्षा मंडल से मांगा जबाव
आपको बता दें कि अब छत्तीसगढ़ी भाषा (Local Language) को प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम बनाने के लिए दायर जनहित याचिका पर डिवीजन बेंच में सुनवाई 4 अगस्त को हुई। जिसमें डिवीजन बेंच ने स्कूल शिक्षा विभाग व माध्यमिक शिक्षा मंडल को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। अब सरकार की ओर से 26 अगस्त को होने वाली सुनवाई में कोर्ट को जवाब दिया जाएगा, जिसमें छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने की अवधारणा पर सुनवाई होगी।
इन बोली-भाषा में तैयार की पुस्तकें
इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर धुर्वा भतरी, संबलपुरी, दोरली, कुडुख, सादरी, बैगानी, हल्बी, दंतेवाड़ा गोड़ी, कमारी, ओरिया, सरगुजिया और भुंजिया बोली-भाषा में पुस्तकें और पठन सामग्री तैयार कराई गई हैं। सभी प्राथमिक स्कूलों को तैयार किया पठन सामग्री के साथ-साथ छत्तीसगढ़ी और अंग्रेजी में वर्णमाला पुस्तिका, मोर सुग्घर वर्णमाला एवं मिनी रीडर इंग्लिश बुक दी गई है। यह पुस्तकें उन्हीं इलाके के स्कूलों में भेजी गई हैं, जहां लोग अपने बात-व्यवहार में उस बोली-भाषा का उपयोग करते हैं।
मैदानी इलाकों के लिए छत्तीसगढ़ी कहानियां
स्कूल शिक्षा विभाग के अनुसार, प्रदेश के जिन जिलों में छत्तीसगढ़ी बहुतायत से बोली जाती है उन जिलों के चयनित प्राथमिक स्कूलों में चित्र कहानियों की किताबें भेजी गई हैं। इनमें सुरीली अउ मोनी, तीन संगवारी, गीता गिस बरात, बेंदरा के पूंछी, चिडिय़ा, मुर्गी के तीन चूजे और सोनू के लड्डू जैसी पुस्तकें शामिल हैं। हिंदी और छत्तीसगढ़ी भाषाओं में लिखी इन कहानियों को लैंग्वेज लर्निंग फाउंडेशन (language learning foundation) ने तैयार किया है।
6 भाषाओं में उपलब्ध कराई गई 8 कहानी की पुस्तकें
विभाग ने एक भाषा से दूसरी भाषा सीखने के लिए सहायक पठन सामग्री उपलब्ध कराई है। यह बस्तर क्षेत्र, केन्द्रीय जोन में रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर और सरगुजा जोन में सभी प्राथमिक कक्षा पहली-दूसरी के बच्चों को दी जा रही है। इसमें बच्चे चित्र देखकर उनके नाम अपनी स्थानीय भाषा में लिखने का अभ्यास करेंगे। कक्षा पहली-दूसरी के बच्चों के लिए विभिन्न छह भाषा छत्तीसगढ़ी, गोंड़ी कांकेर, हल्बी, सादरी, सरगुजिहा, गोंडी दंतेवाड़ा में आठ कहानी पुस्तिकाएं- अब तुम गए काम से, चींटी और हाथी, बुलबुलों का राज, पांच खंबों वाला गांव, आगे-पीछे, अकेली मछली, घर, नटखट गिलहरी पढऩे के लिए उपलब्ध कराई गई हैं।
मातृभाषा से पढ़ने की बढ़ेगी इच्छा : लता राठौर
स्थानीय भाषा में स्कूली बच्चों की पढ़ाई हो, सरकार का ये फैसला बिल्कुल सही है। ये बात एक्सपर्ट भी मानते है। किसी भी क्षेत्र हो लेकिन पढ़ाई वहां की मातृभाषा में होना चाहिए। शिक्षा का अधिकार का कानून भी यह अधिकार स्कूली विद्यार्थियों को देता है। छत्तीसगढिय़ा महिला क्रांति सेना की प्रदेशाध्यक्ष लता राठौर का कहना है कि, भाषा अगर मर जाती है तो संस्कृति भी मृतप्राय हो जाती है।
किसी भी चीज को सीखना हो, तो उसकी नींव बचपन से ही डाली जाती है, इसलिए हमारी संस्कृति को आने वाले जनरेशन को जानने-समझने के लिए उन्हें मातृ भाषा में ही पढ़ाई करना बेहद जरूरी है। तभी वह हमारी संस्कृति-सभ्यता, हमारे पूर्वजों के बलिदान, उनके कार्य, गतिविधियां जान पाएंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश बड़े-बुढ़े, बच्चे अपने दैनिक दिनचर्या में अपनी ही बोली का इस्तेमाल कर रहा है, फिर पढ़ाई क्यों नहीं? इस लिहाज से उसी भाषा में पढ़ाई होने से बच्चे आसानी से समझेंगे भी और आगे भी बढ़ पाएंगे।
हिंदी व्याकरण से पहले आया छत्तीसगढ़ी व्याकरण
छत्तीसगढ़ी व्याकरण (Local Language) का इतिहास काफी समृद्ध है। एक्सपर्ट की माने तो छत्तीसगढ़ी भाषा का साहित्य, इतिहास, व्याकरण, हिन्दी व्याकरण से पहले का है। छत्तीसगढ़ी भाषा के इतिहास को बताते हुए लता राठौर बोली कि हिंदी व्याकरण से पहले छत्तीसगढ़ी व्याकरण को हीरालाल काव्योपाध्याय ने सबसे पहले लिखा था। जिसका संपादन और अनुवाद प्रसिद्ध भाषाशास्त्री जार्ज ए. ग्रियर्सन ने किया था, जो सन 1890 में जर्नल ऑफ द एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल में प्रकाशित हुआ था। यही नहीं, छत्तीसगढ़ का विपुल और स्तरीय साहित्य उपलब्ध है और इसमें लगातार वृद्धि हो रही है।
छत्तीसगढ़ी मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने की मांग को लेकर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने वाली छत्तीसगढ़ महिला क्रांति सेना की प्रदेश अध्यक्ष लता राठौर कहती हैं, व्याकरण-लीपी होने के बावजूद स्थानीय भाषा में शिक्षा की कमी उन लोगों को चिंतित करती है जो कई वर्षों से स्थानीय बोलियों में प्राथमिक शिक्षा की मांग कर रहे हैं। वे अब तक इसे न्यायसंगत नहीं मान रहे थे। उनका कहना है कि मोदी की नई शिक्षा नीति में भी प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में रखने का फैसला किया गया था, लेकिन कई राज्यों में ऐसा हो रहा है, लेकिन छत्तीसगढ़ में ऐसा नहीं हो रहा है। अब वे घर पर भी बच्चों को पढ़ा सकते हैं।
दिनचर्या की भाषा पढ़ाई में शामिल करने से विद्यार्थी जल्दी सीखेंगे
दिनचर्या की भाषा (Local Language) पढ़ाई में शामिल करने से विद्यार्थी न सिर्फ जल्दी सीख पाएंगे बल्कि उनका बौद्धिक व मानसिक विकास भी तेजी से होगा। ये कहना है छत्तीसगढिय़ा महिला क्रांति सेना की प्रदेशाध्यक्ष लता राठौर का। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ में जिस क्षेत्र की भाषा हो चाहे हल्बी, गोड़ी या अन्य कोई भी भाषा हो उस भाषा के साथ क्षेत्रिय भाषा को प्रमोट कर बच्चों को शिक्षा का माध्यम बनाए। उनका कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर बच्चे अपनी मातृभाषा का प्रयोग दिनचर्य में घर-बाहर नियमित रूप से करते हैं, यदि वे दूसरी भाषा में पढ़ते हैं तो उनका न केवल मानसिक बल्कि बौद्धिक विकास भी कमजोर होगा। माता-पिता भी स्थानीय बोली बोलते हैं।