Kharge ka Balance : मल्लिकार्जुन खड़गे चुनाव तो जीते पर अब है परीक्षा…कैसे बनाएंगे बैलेंस…पढें
नई दिल्ली/नवप्रदेश। Kharge ka Balance : मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान संभाल ली है और इसके साथ ही बड़ा फैसला लेते हुए कांग्रेस वर्किंग कमेटी को भंग कर दिया है। उसकी जगह पर खड़गे ने 42 सदस्यों की एक स्टीयरिंग कमेटी का गठन किया है।
इसके अलावा वह गुजरात के नवसारी से अपने अभियान की भी शुरुआत करने जा रहे हैं और प्रचार में हिस्सा लेंगे। साफ है कि मल्लिकार्जुन खड़गे अब ऐक्टिव नजर आएंगे और गांधी परिवार की छाया से निकलकर काम करने की कोशिश करेंगे। हालांकि 80 साल के खड़गे के लिए कांग्रेस की अध्यक्षी आसान नहीं होगी। एक तरफ उनके आगे बदलाव की चुनौती होगी तो दूसरी तरफ सबको साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी (Kharge ka Balance) भी है।
पार्टी के अंदर थरूर का है जनाधार
खासतौर पर कांग्रेस में जी-23 के नेताओं को भी साधना एक जरूरत बन पड़ा है। इसकी वजह यह है कि गुलाम नबी आजाद समेत कई बड़े नेता पार्टी से अलग हो गए हैं। लेकिन हरियाणा में हुड्डा, हिमाचल में आनंद शर्मा, पंजाब में मनीष तिवारी, केरल में शशि थरूर समेत कई नेता ऐसे हैं, जो अच्छा खासा प्रभाव पार्टी में रखते हैं। ऐसे में राज्यों में उनकी मदद से पार्टी को मजबूत करना और एकता का संदेश देना खड़गे के लिए जरूरी होगा। शशि थरूर को 1000 से ज्यादा वोट अध्यक्ष के चुनाव में हासिल करके अपना दम भी दिखा चुके हैं। साफ है कि उनके पास भी एक जनाधार पार्टी के अंदर है।
जी-3 के बीच बैलेंस बनाना भी एक मुश्किल
इसके अलावा मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने चुनौती होगी कि वह जी-3 यानी राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी के बीच भी बैलेंस बनाकर रखें। तीनों ही नेता भले ही एक ही परिवार के सदस्य हैं, लेकिन कई मौकों पर उनकी राय अलग-अलग रही है। तीनों नेताओं के अपने-अपने करीबी हैं और सभी टीमों में कई बार तालमेल की कमी भी दिखती है। ऐसे में सबकी राय लेते हुए एक सही निर्णय लेना खड़गे के लिए चुनौती होगी। गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव में अब कम ही वक्त बचा है, ऐसे में खड़गे यहां कुछ करिश्माई नहीं कर पाते हैं तो समझ में आता है।
असली परीक्षा तो राजस्थान में
लेकिन राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट (Kharge ka Balance) में खींचतान के बीच अगले साल होने वाले चुनाव से पहले उन्हें कुछ हल निकालना होगा। कांग्रेस जिस तरह से राज्य में पंजाब की तरह कलह की ओर बढ़ रही है, वह उसकी जमीन कहीं ज्यादा खिसका सकता है। कैसे सचिन पायलट नाराज न हों और अशोक गहलोत को भी साध लिया जाए, यह खड़गे के लिए एक सियासी परीक्षा होगा। हालांकि खड़गे के जरिए कांग्रेस परिवारवाद के टैग और दलितों को प्रतिनिधित्व न देने की छवि से जरूर मुक्ति पाई है, जिसे वह आने वाले वक्त में भुनाना चाहेगी।