Kerala Highcourt : वर्चुअल मोड में गवाह का एग्जामिनेशन आरोपी के अधिकारों को प्रभावित नहीं करती : केरल हाईकोर्ट
केरल, नवप्रदेश। केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अदालतों (केरल) के लिए इलेक्ट्रॉनिक वीडियो लिंकेज नियम, 2021 के प्रावधानों के अनुसार वर्चुअल मोड में गवाह का एग्जामिनेशन आरोपी के अधिकारों को प्रभावित नहीं करती है।
जस्टिस ए बदरुद्दीन की एकल पीठ ने कहा कि नियम 8(25) के तहत अदालतों (केरल) के लिए इलेक्ट्रॉनिक वीडियो लिंकेज नियम, 2021 के तहत वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गवाह का एग्जामिनेशन को दंड प्रक्रिया संहिता 1973, सिविल प्रक्रिया, 1908, क्रिमिनल रूल्स ऑफ प्रैक्टिस, केरल एंड सिविल रूल्स ऑफ प्रैक्टिस, केरल के प्रावधानों के अनुपालन के रूप में माना जाना (Kerala Highcourt) है।
अदालत ने कहा कि ये किसी भी अन्य कानून पर भी लागू होता है, जिसमें किसी भी जांच, मुकदमे या किसी अन्य कार्यवाही के संबंध में अधीनस्थ न्यायालयों या न्यायाधिकरणों में पार्टियों की व्यक्तिगत उपस्थिति की आवश्यकता होती है।
आगे कहा, “गवाह का एग्जामिनेशन या तो फिजिकल मोड में या वीडियो लिंकेज मोड में होती है, जहां तक आरोपी के गवाह से जिरह करने के अधिकार का सवाल है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता (Kerala Highcourt) है।”
अदालत एक विशेष अदालत (सीबीआई) के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें वास्तविक शिकायतकर्ता को वीडियो लिंकेज सुविधा के माध्यम से जांच की अनुमति दी गई थी, क्योंकि वह दुबई में काम कर रहा था और अदालत में वो फिजिकल मोड में उपस्थित नहीं हो सकता था।
अदालत ने इस संबंध में नियम 8(23) का हवाला दिया जो यह प्रावधान करता है कि अगर कोई व्यक्ति बीमारी या शारीरिक दुर्बलता के कारण या किसी वास्तविक कारण से अदालत में शारीरिक रूप से उपस्थित होने में सक्षम नहीं है, तो अदालत संबंधित व्यक्ति को उपस्थित होने के लिए वीडियो मोड के माध्यम से अधिकृत कर सकती (Kerala Highcourt) है।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि एग्जामिनेशन प्रभावी ढंग से आगे बढ़ने के लिए गवाह को शारीरिक रूप से उपस्थित होना चाहिए क्योंकि यह गवाह के आचरण और दृष्टिकोण का पता लगाने का एकमात्र तरीका है।
यह तर्क दिया गया कि अभियुक्तों के हितों की रक्षा के लिए, वास्तविक शिकायतकर्ता की भौतिक उपस्थिति को सुरक्षित करना अनिवार्य है।
भारत के उप सॉलिसिटर जनरल (DSGI) ने इस आधार पर इसका विरोध किया कि अदालतों (केरल) के लिए इलेक्ट्रॉनिक वीडियो लिंकेज नियम, 2021 का उद्देश्य अमान्य होगा अगर हर परिस्थिति में गवाह की फिजिकल उपस्थिति पर जोर दिया गया।
अदालत ने इस पहलू पर डीएसजीआई से सहमति जताते हुए कहा, “अगर याचिकाकर्ता के वकील की प्रस्तुतियां स्वीकार की जाती हैं, तो यह न्यायालयों (केरल) के लिए इलेक्ट्रॉनिक वीडियो लिंकेज नियम, 2021 को बेमानी बनाने के समान है। व्याख्या को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत कानून के प्रावधान या अधिनियमन की व्याख्या को अनावश्यक बनाने की अनुमति नहीं देते हैं।”
इस मामले में अदालत ने विशेष न्यायाधीश के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया जिसमें 11 साल से लंबित एक मामले में और देरी को रोकने के लिए वीडियो लिंकेज के माध्यम से वास्तविक शिकायतकर्ता का एग्जामिनेशन की अनुमति दी गई थी।
अदालत ने फैसले में कहा, “अदालतों (केरल) के लिए इलेक्ट्रॉनिक वीडियो लिंकेज नियम, 2021 के अधिनियमन का उद्देश्य उन गवाहों की जांच करना है, जिनकी उपस्थिति अनुचित देरी या खर्च के बिना और नियम 8(23) में बताए गए अन्य कारणों से सुरक्षित नहीं की जा सकती है,
एक व्यक्ति जो दुबई में है, जिसकी उपस्थिति बिना देरी के सुरक्षित नहीं की जा सकती है और नियमों के अनुसार वीडियो लिंकेज के माध्यम से जांच की अनुमति दिए जाने पर यात्रा और अन्य खर्चों के बिना, ऐसे मामले में याचिकाकर्ता को यह कहने का कोई अधिकार नहीं है कि जिरह वीडियो लिंकेज द्वारा प्रभावी और भौतिक मोड जितना अच्छा नहीं है और इसलिए, ऐसे एग्जामिनेशन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।“