संपादकीय: कर्नाटक सरकार का आत्मघाती फैसला
Karnataka government’s suicidal decision: कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने कर्नाटक में कार्यरत निजी क्षेत्र की कंपनियों में स्थानीय लोगों को पचास से सौ प्रतिशत आरक्षण देने का विवादास्पद फैसला कर अपने हाथों अपने पांव में कुल्हाड़ी मारने का काम किया है।
कर्नाटक सरकार ने ऐसा विधेयक पारित भी कर लिया था। लेकिन जब निजी क्षेत्र की कंपनियों ने इस फैसले पर आपत्ति उठाई तो कर्नाटक सरकार ने अपना यह निर्णय स्थगित कर दिया। गौरतलब है कि इसके पूर्व हरियाणा के सरकार ने भी ऐसा ही फैसला किया था।
किन्तु मनोहर लाल खट्टर की सरकार के उक्त फैसले पर निजी क्षेत्र की कंपनियों ने ना सिर्फ आपत्ति दर्ज कराई थी बल्कि उन्होंने कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था । निजी क्षेत्र की कंपनियों ने यह भी धमकी दी थी कि यदि उन्हें आरक्षण देने के लिए बाध्य किया जाएगा तो वे हरियाणा से अपना कारोबार समेट लेंगे।
इसके बाद खट्टर सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा। अब कर्नाटक सरकार ने भी वही गलती की है। कर्नाटक में कई नामी गिरामी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के मुख्यालय हैं। अब निजी क्षेत्र की ऐसी कंपनियां आगे चलकर कर्नाटक से पलायन के लिए बाध्य हो जाएं तो कोई ताज्जुब नहीं होगा क्योंकि कर्नाटक सरकार ने अपना फैसला स्थगित किया है उसे निरस्त नहीं किया।
ऐसे में निजी क्षेत्र की कंपनियों को यह आशंका सता सकती है कि कर्नाटक सरकार कभी भी आरक्षण लागू कर देगी। वहीं दूसरी ओर अब निजी क्षेत्र की कंपनियां कर्नाटक में पूंजी निवेश करने से भी कतराने लगेंगी। ऐसी निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए आंध्रप्रदेश एक आदर्श राज्य साबित हो सकता है।
जहां के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने निजी क्षेत्र की कंपनिया के लिए अनुकूल वातावरण बनाना शुरू कर दिया है। उनकी सरकार ने कर्नाटक से पलायन का मन बना रही निजी क्षेत्र की कंपनियों को अपने यहां आमंत्रित भी किया है। कुल मिलाकर कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने आत्मघाती निर्णय लेकर कर्नाटक के विकास के मार्ग में अवरोध खड़ा कर दिया है।
बेहतर होगा कि कर्नाटक सरकार ने आरक्षण के जिस फैसले को स्थगित किया है उसे निरस्त कर दें अन्यथा वहां से निजी क्षेत्र की कंपनियों का बोरिया बिस्तर बंधना तय है। उम्मीद की जानी चाहिए की कर्नाटक सरकार अपनी इस भूल को जल्द से जल्द सुधार लेगी।