Joshimath : जोशीमठ की ज्यादातर मिट्टी भूस्खलन का है मलबा…सुनें और क्या बोले एक्सपर्ट
नई दिल्ली/नवप्रदेश। Joshimath : जमीन धंसने के कारण जोशीमठ की कई सड़कों और घरों में दरारों का दिखना इस क्षेत्र में के लिए कोई नई घटना नहीं है। इस तरह की दरारें शहर में और उसके आसपास कई वर्षों से देखी जा रही हैं। हालांकि इस बार विशेषज्ञों का कहना है, दरारें पहले से अधिक गहरी हैं इसलिए यह चिंताजनक है।
देहरादूनस्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (Wadia Institute of Himalayan Geology) के निदेशक कलाचंद सेन का कहना है कि, “आज की स्थिति अनेक कारणों का परिणाम है। यह प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों है।”
वह कहते हैं, ”जोशीमठ की मिट्टी कमजोर है। यहां की मिट्टी में ज्यादातर भूस्खलन द्वारा लाया गया मलबा है। यह क्षेत्र एक अत्यधिक भूकंपीय क्षेत्र भी है। अनप्लांड कंस्ट्रक्शन जनसंख्या का दबाव, टूरिस्ट इंफ्रास्ट्रक्चर, पानी के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा, जल विद्युत परियोजनाएँ, विकास गतिविधियाँ सभी ने वर्तमान स्थिति में योगदान दिया है। सवाल यह है कि अब क्या किया जा सकता है? ये ऐसी प्रक्रियाएं नहीं हैं जिन्हें उलटा किया जा सकता है।”
50 साल पहले दी गयी थी चेतावनी
कलाचंद सेन बताते हैं कि जोशीमठ को लेकर पहली चेतावनी 50 साल पहले दी गयी थी। वह कहते हैं, ”लगभग 50 साल पहले एमसी मिश्रा समिति की रिपोर्ट में जोशीमठ को लेकर चेतावनी जारी की गयी थी। रिपोर्ट में अनियोजित विकास के खतरों को रेखांकित किया था। साथ ही प्राकृतिक कमजोरियों की भी पहचान की गयी थी। उसके बाद कई अध्ययन हुए और सभी ने लगभग समान चिंताएं व्यक्त की। लेकिन तब से शहर कई गुना बढ़ गया है।
अब यह कम से कम तीन महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों – बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब और शंकराचार्य मंदिर की ओर जाने वाले पर्यटकों का केंद्र है। इसके मद्देनजर बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का काम हुआ। समस्या सिर्फ इतनी नहीं है कि इन गतिविधियों को अंजाम दिया गया है बल्कि यह भी है कि ये काम अनप्लान्ड और अक्सर अवैज्ञानिक तरीके से किए गए।”
जोशीमठ की मुख्य समस्या यह है कि यह शहर ढीली मिट्टी पर बसा है। ये मिट्टी कभी भूकंप के कारण हुए भूस्खलन से जमा हुई थीं। ग्लेशियोलॉजिस्ट डीपी डोभाल कहते हैं कि यह क्षेत्र कभी ग्लेशियरों के अधीन था। इसलिए यहां की मिट्टी बड़े निर्माणों को सपोर्ट नहीं करती है।
उत्तराखंड के कई शहरों को खतरा
डोभाल कहते हैं, “जोशीमठ इन समस्याओं का सामना करने वाली अकेली बस्ती नहीं है। उत्तराखंड में कई क्षेत्र ऐसी समस्याएं हैं। खासकर उन कस्बों में जो समुद्र तल से 5,000 फीट ऊपर हैं। सालों-साल लोग इन क्षेत्रों में बसते रहे क्योंकि ये भूस्खलन के मलबे के जमाव के कारण अपेक्षाकृत सपाट थे। दरारों का आना कोई नई बात नहीं है। लेकिन इस बार जो हम देख रहे हैं वह निश्चित तौर पर पहले से कहीं ज्यादा गंभीर और खतरनाक नजर आ रहा है।”
जल निकासी की व्यवस्था नहीं होने से समस्या और बढ़ गई है। अनियमित निर्माण प्राय: जल के प्राकृतिक प्रवाह में आड़े आता है, जिससे पानी को नया रास्ता बनाना पड़ता है।